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लू लगने के लक्षण और बचाव के घरेलू उपाय

 जानिये लू लगने के लक्षण और बचाव  जानिये लू लगने के लक्षण और बचाव के घरेलू उपाय गर्मियों के दिनों में अपने देश के कई शहरों में तापमान इतना ज्यादा हो जाता है कि घर से बाहर निकलना ही मुश्किल होने लगता है। इन दिनों दोपहर के समय बाहर बहुत तेज गर्म हवाएं चलती हैं, इन गर्म हवाओं को ही लू (Heat stroke) कहते हैं। मजबूत इम्युनिटी वाले लोग इन गर्म हवाओं को सहन कर लेते हैं लेकिन अधिकांश लोग इन हवाओं को सहन नहीं कर पाते हैं और इनके संपर्क में आते ही बीमार पड़ जाते हैं। अपने देश में हर साल काफी बड़ी तादात में लोग लू की चपेट में आ जाते हैं।    लू लगने के कारण (HEAT STROKE CAUSES IN HINDI) : ये गर्म हवाएं जब आपके शरीर के संपर्क में आती हैं तो शरीर का तापमान बढ़ा देती हैं और इस वजह से कई समस्याएं होने लगती हैं। ज्यादा देर तक धूप में काम करना और शरीर में पानी की कमी होना लू लगने के प्रमुख कारण हैं। बच्चे और बूढ़े लोग लू की चपेट (Sunstroke) में जल्दी आ जाते हैं। अधिकांश मामलों में लोगों को यह जल्दी पता ही नहीं चल पाता है कि उन्हें लू लग गयी है। हालांकि इसका सटीक अंदाज़ा लू के लक्षणों को देखकर लगाया जा सकता ह

20 टिप्स को अपनाकर पूरे दिन रहें एक्टिव

 इन 20 टिप्स को अपनाकर पूरे दिन रहें एक्टिव अगर आप एकस्ट्रा वजन कम करना चाहते हैं और पूरे दिन एक्टिव रहना चाहते हैं तो दिनभर में इन 20 टिप्स का ध्यान रखें।  अगर आप एकस्ट्रा वजन कम करना चाहते हैं और पूरे दिन एक्टिव रहना चाहते हैं तो दिनभर में इन 20 टिप्स का ध्यान रखें। दरअसल डायट से जुड़ी कई छोटी-छोटी बातों पर हम ध्यान नहीं दे पाते और कई चीजों को खाते हैं जो हमारे शरीर फायदा नहीं पहुंचाती हैं। यहां हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसी ही चीजों के बारे में: 1. रोज खूब सारा पानी पिएं और कैलोरी फ्री चीजें खाएं।  2. सुबह-सुबह ब्रेकफास्ट जरूर करें। ब्रेकफास्ट न करने से कई बीमारियां होती हैं।  3. रात के स्नैक्स को लेते समय थोड़ा चूजी बनें।  4. दिन भर में कुछ कुछ खाते रहें, खाने के बीच लंबा गेप नहीं होना चाहिए।  5. कोशिश करें कि खाने में प्रोटीन जरूर हो 2/3खाने में मसालेदार चीजों को कम करें 6. खाने में मसालेदार चीजों को कम करें। 7. खाने के दौरान लाल, हरे संतरी रंग की चीज जरूर लें। इस तीन नंबर के नियम को जरूर मानें और खाने में इन रंगों की खाने की चीजें जैसे गाजर, संतरा और हरी सब्जियों को शामिल करें।  8.

ब्रेस्टफीडिंग से जुड़ी समस्या के लिए होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment Lactation problems in Hindi

 ब्रेस्टफीडिंग से जुड़ी समस्या के लिए होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment Lactation problems in Hindi नवजात शिशु के पोषण के लिए स्तनपान न सिर्फ एक प्राकृतिक बल्कि स्वस्थ विकल्प है। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चे के जन्म के बाद कम से कम 6 महीने तक उसे स्तनपान कराना चाहिए। जब तक बच्चा 1 से 2 वर्ष का नहीं हो जाता है, तब तक नियमित रूप से उसके आहार में मां का दूध शामिल होना चाहिए। हालांकि, कुछ महिलाओं को स्तनपान से चुनिंदा समस्याएं हो सकती हैं, जैसे मैस्टाइटिस (स्तन का संक्रमण), निप्पल में दर्द और पीड़ा, पर्याप्त मात्रा में दूध न आना, या थ्रश (यीस्ट इंफेक्शन)। यदि बच्चा स्तनपान करते समय उधम (नखरे करना या असहज) मचाता है, तो इससे स्तनपान में परेशानी (दूध न पीने की वजह से दूध जम जाना) हो सकती है। ऐसे में प्रभावित हिस्से पर गर्म सिकाई करने, पर्याप्त आराम करने, उचित समय पर स्तनपान कराने और आरामदायक ब्रा पहनने से इन समस्याओं को दूर करने में मिल सकती है। स्तन में संक्रमण के इलाज के लिए एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारक दवाएं भी लेनी पड़ सकती हैं। पारंपरिक दवाओं के अलावा होम्यो

पल्स ऑक्सीमीटर क्या है ? Pulse Oximeter Meaning in Hindi.

 पल्स ऑक्सीमीटर क्या है ? Pulse Oximeter Meaning in Hindi. पल्स ऑक्सीमीटर एक तरह का उपकरण है जो जांच करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस उपकरण का उपयोग करने से कोई दर्द नहीं होता है क्योकि इसमें केवल उंगली रखनी होती है और उंगली रखते उपकरण रीडिंग करने लगता है। यह उपकरण आपके रक्त में ऑक्सीजन के स्तर को मापने का काम करती है। इसके अलावा शरीर में हो रहे अन्य समस्या का पता लगा सकता है। जैसा की आपको पता है कोरोना महामारी हमारे देश में बहुत तेजी से अपना पैर पसार रहा है। देखते ही देखते कोरोना संक्रमित लोगो की संख्या 680680 हो चुकी है। इसके अलावा हर दिन नये मामले सामने आ रहे है और आकड़ो में सबसे ज्यादा संक्रमित मरीज महाराष्ट्र में है और दूसरा दिल्ली में है। हालांकि लोगो के जागरूक होने से कोरोना की दर में कमी आ रही है। पल्स ऑक्सीमीटर उपकरण का लोग अपने शरीर की ऑक्सीजन के स्तर को मापने के लिए इस्तेमाल कर रहे है। पल्स ऑक्सीमीटर को लोग अपना सुरक्षा सहायक मानने लगे है। इस उपकरण का फायदा यह है की अगर आपका ऑक्सीजन का लेवल कम बता रहा है तो आप नजदीकी चिकिस्तक से संपर्क कर सकते हैं। पल्स ऑक्सीमीटर का उपयो

आर्टेरियल ब्लड गैस टेस्ट (एबीजी) - Arterial Blood Gas (ABG) in Hindi

 आर्टेरियल ब्लड गैस टेस्ट (एबीजी) - Arterial Blood Gas (ABG) in Hindi आर्टेरियल ब्लड गैस टेस्ट (एबीजी) क्या है? एबीजी टेस्ट धमनियों के रक्त की अम्लता और उनमें मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड व ऑक्सीजन के स्तर का पता लगाने के लिए किया जाता है। इसकी मदद से यह पता लगाया जाता है, कि फेफड़े कितने अच्छे से ऑक्सीजन को खून में पहुंचा पा रहे हैं और सीओ 2 को बाहर निकाल रहे हैं। फेफड़ों की जांच करके और खून में रक्त के स्तर की जांच करके मेटाबॉलिज्म संबंधी विकारों का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा इन परीक्षणों की मदद से गुर्दे और फेफड़ों के कार्य की जांच की जा सकती है।  आमतौर पर एबीजी टेस्ट निम्न को मापता है: पीएच पार्शियल प्रेशर ऑफ़ ऑक्सीजन (पीएओ2) रक्त में घुला हुआ।  पार्शियल प्रेशर ऑफ़ सीओ2 (पीएसीओ2) रक्त में मौजूद।  ऑक्सीजन कंटेंट (ओ 2 सीटी) या 100 मिलीलीटर रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा। ऑक्सीजन सेचुरेशन (ओ 2 एसएटी) या ऑक्सीजन को ले जाने में प्रयुक्त हीमोग्लोबिन का प्रतिशत। लाल रक्त कोशिकाओं में मौजूद हीमोग्लोबिन रक्त में ऑक्सीजन ले जाता है।  बाईकार्बोनेट: अम्ल-क्षार के मेटाबॉलिक घटक को भी मापा जा सकता है

रूमेटाइड आर्थराइटिस की होम्योपैथिक दवा और इलाज

 रूमेटाइड आर्थराइटिस की होम्योपैथिक दवा और इलाज रूमेटाइड आर्थराइटिस सबसे आम ऑटोइम्यून बीमारियों में से एक है, जो मुख्य रूप से जोड़ों को प्रभावित करती है। बता दें, कोई भी ऑटोइम्यून रोग तब होता है, जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली उचित तरीके से कार्य नहीं करती है। अब समझते हैं कि ऑटोइम्यून रोग क्या होता है? जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ ऊतकों पर हमला करने लगती है, तो ऐसी स्थिति को ऑटोइम्यून रोग कहा जाता है। ऑटोइम्यून बीमारियों के उदाहरण में सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, एलोपेसिया इत्यादि शामिल हैं। रूमेटाइड आर्थराइटिस में होने वाली सूजन जोड़ों के अंदरूनी ऊतकों (टिशू) को मोटा कर देती है, जिसकी वजह से जोड़ों में दर्द और सूजन हो जाती है। इसके अलावा फेफड़ों में नोड्यूल्स और त्वचा में भी सूजन देखी जाती है। बता दें, नोड्यूल्स का मतलब फेफड़ों में एक स्पॉट या शैडो से है। यह स्पॉट दिखने में गोल होते हैं, जो सामान्य फेफड़ों के ऊतकों की तुलना में अधिक घने होते हैं। रूमेटाइड आर्थराइटिस (आरए) पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक आम है। यह किसी भी उम्र

बिच्छू के डंक मारने पर क्या करें - Bichu ke katne par kya karna chahiye

 बिच्छू के डंक मारने पर क्या करें - Bichu ke katne par kya karna chahiye दुनिया के लगभग हर क्षेत्र में बिच्छू पाए जाते हैं। बिच्छू इंसानों को अपनी पूंछ से डंक मारते हैं, हालांकि ऐसे मामले बहुत कम होते हैं। इनके काटने पर घाव या प्रतिक्रिया होती है, जिससे सूजन और लाली जैसे लक्षण होते हैं। बिच्छू के काटने पर कुछ गंभीर लक्षण भी हो सकते हैं, जो डंक मरने के कुछ समय बाद दिखने लगते हैं। इनके डंक से आमतौर पर कोई गंभीर प्रभाव नहीं होता है, लेकिन कुछ तरह के बिच्छुओं के काटने से गंभीर लक्षण और मौत भी हो सकती है। इस लेख में क्या बिच्छू का काटना खतरनाक होता है, बिच्छू के काटने पर क्या होता है, क्या करना चाहिए और बिच्छू के काटने पर डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए के बारे में बताया गया है। क्या बिच्छू का काटना खतरनाक होता है - Kya bichhoo ka katna gambhir samasya hai बिच्छू के काटने पर क्या होता है - Bichu ke katne par kya hota hai बिच्छू के डंक मारने पर क्या करना चाहिए - Bichu katne par kya kare बिच्छू के काटने पर डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए - Bichhoo ke dank marne par doctor ke pas kab jaye क्या बिच्छू