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मार्च 13, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शुक्राणु की कमी,(OLIGOSPERMIA)AND HOMOEOPATHY

 शुक्राणु की कमी, पुरुषों में प्रजनन क्षमता की कमी का एक महत्वपूर्ण कारण है। प्रजनन क्षमता में कमी का मतलब है, शुक्राणु में कुछ नुक्स या शुक्राणु की कमी (2 करोड़ से कम) के कारण बार-बार बिना कंडोम सेक्स करने के बाद भी गर्भधारण न कर पाना। प्रजनन क्षमता में कमी, बांझपन से अलग होती है क्योंकि इसमें बिना डॉक्टर की सहायता के प्रेग्नेंट होने की कुछ संभावना होती है, हालांकि, इसमें समय अधिक लगता है। शुक्राणु की कमी के कई कारण हो सकते हैं, जैसे हार्मोन उत्पादन का विकार, शुक्राणु के रास्ते में रुकावट, वैरीकोसेल, वीर्य का उलटे रास्ते जाना, पुरुष जननांग में सूजन व संक्रमण, गुप्तवृषणता, स्तंभन दोष, अनुवांशिक कारक, सिगरेट पीना, शराब पीना और मानसिक तनाव। होम्योपैथिक उपचार शुक्राणु की कमी के लिए एक असरदार इलाज है, खासकर अगर ये समस्या वैरीकोसेल, संक्रमण, हार्मोन असंतुलन या स्तंभन दोष के कारण हुई है। हालांकि, सर्जरी के कारण हुई शुक्राणु की कमी पर होम्योपैथिक दवाओं का प्रभाव कम होता है। व्यक्ति के लक्षणों व अन्य कारक के आधार पर दिए जाने वाला होम्योपैथिक उपचार व्यक्ति के शुक्राणु व उनकी गुणवत्ता को बढ़ाता ह

JUANDICE(पीलिया)AND HOMOEOPATHY

 रक्त में बिलीरुबिन (Bilirubin) का स्तर बढ़ जाने के कारण व्यक्ति को पीलिया होता है। ये स्तर लिवर, ब्लैडर और पित्त नलिकाओं से संबंधित कई बीमारियों के कारण बढ़ सकता है। पीलिया होने पर रोगी की आंख का सफेद भाग और उसकी त्वचा पीली पड़ने लगती है। अगर पीलिया करने वाले कारण को समय रहते ठीक न किया जाए, तो रोगी के लिए ये जानलेवा साबित हो सकता है। पीलिया कई कारणों से होता है, जैसे बिलीरुबिन मेटाबोलिज्म से संबंधित अनुवांशिक समस्याएं, लिवर रोग, मूत्राशय के रोग, अग्नाशय कैंसर और हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी व ई के कारण हुए लिवर इन्फेक्शन। त्वचा पीली होने के अलावा, पीलिया में त्वचा का फीकापन, रूखी त्वचा, नाखूनों का बीच में से दबकर चम्मच की तरह हो जाना और त्वचा मोटी होने जैसे लक्षण होते हैं। पीलिया का पता लगाने के लिए लिवर फंक्शन टेस्ट जैसे ब्लड टेस्ट या यूरिन टेस्ट किए जा सकते हैं। पीलिया का इलाज करने के लिए और अंदरूनी कारण को ठीक करने के लिए कुछ होम्योपैथिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे शेलिडोनियम (Chelidonium), कार्डुअस मेरियनस (Carduus marianus), लायकोपोडियम (Lycopodium) और फॉस्फोरस (Phosphorus)। क

FATTY LIVER AND HOMOEOPATHY

 [3/11, 23:14] Dr.J.k Pandey: लीवर शरीर का सबसे बड़ा अंग है। यह हमें भोजन को पचाने, ऊर्जा को स्टोर करने और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। फैटी लीवर रोग एक ऐसी स्थिति है, जिसमें लीवर में वसा इकट्ठा होने लगती है। बता दें, लीवर में यदि कुछ मात्रा में वसा मौजूद है तो यह सामान्य बात है, लेकिन यदि लीवर में मौजूद वसा इसके वजन से 5% अधिक है, तो इसे वसायुक्त या फैटी लीवर माना जाता है। यह दो प्रकार के हैं : नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लीवर रोग और अल्कोहोलिक फैटी लीवर रोग। नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लीवर की बीमारी दो तरह की होती है। साधारण फैटी लीवर में, लीवर की कोशिकाओं में सूजन के किसी भी लक्षण के बिना लीवर में वसा इकट्ठा होने लगती है। इसमें जटिलताओं का जोखिम आमतौर पर कम होती है। दूसरा है - नॉन-अल्कोहलिक स्टीटोहैपेटाइटिस, जिसमें लीवर की कोशिकाओं में सूजन व अन्य कोई नुकसान होने लगता है। मोटापा और पेट की सामान्य से ज्यादा चर्बी, इंसुलिन प्रतिरोध, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट का अत्यधिक सेवन और आंतों का स्वास्थ्य बिगड़ने जैसे कारकों से फैटी लीवर हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ि