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ULTRASOUND AWARENESS

 अल्ट्रासाउंड क्या होता है? - What is Ultrasound in Hindi?

अल्ट्रासाउंड क्या होता है?


अल्ट्रासाउंड को 'सोनोग्राफी' भी कहा जाता है, शरीर में हो रही गतिविधियों की तस्वीरे बनाने के लिए इसमें ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है। एक उपकरण जिसे ट्रांसड्यूसर (Transducer) कहा जाता है, यह उच्च आवृत्ति की ध्वनि छोड़ता है, जो कानों को नहीं सुनाई पड़ती। जैसे ही ध्वनि तरंगें नरम ऊतकों व अंगों का आकार, प्रकार और स्थिरता को निर्धारित करने के लिए उछाल या गतिविधि करती है, तो उसको गूँज की मदद से रिकॉर्ड किया जाता है।


सारी जानकारी उस ही समय कंप्यूटर को भेजी जाती है, जो इन जानकारीयों की तस्वीर स्क्रीन पर दिखाता है। यह टेस्ट कैसे करना है, इसके लिए अल्ट्रासाउंड के तकनीशियन या सोनोग्राफरों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। अल्ट्रासाउंड स्कैन कई प्रकार के होते हैं, जो इस पर निर्भर करते हैं कि शरीर के किस हिस्से को स्कैन किया जा रहा है और क्यों। इसके मुख्यत: तीन प्रकार होते हैं:


बाहरी अल्ट्रासाउंड स्कैन (External Ultrasound Scan) -  इसमें प्रोब (Probe) त्वचा के ऊपर घूमता है।

आंतरिक अल्ट्रासाउंड स्कैन (Internal Ultrasound Scan) – इसमें प्रोब को शरीर के अन्दर डाला जाता है।

एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड स्कैन (Endoscopic Ultrasound Scan) – इसमें प्रोब को एक लंबी, पतली और लचीली ट्यूब (Endoscope) के सिरे पर जोड़ा जाता है और उसे शरीर के अंदर भेजा जाता है। 

अल्ट्रासाउंड क्यों किया जाता है - What is the purpose of Ultrasound in Hindi

अल्ट्रासाउंड किस लिए किया जाता है?


गर्भावस्था – अल्ट्रासाउंड तस्वीरें गर्भावस्था के दौरान कई काम आती हैं। शुरुआती दिनों में निर्धारित तिथियों को तय करने, जुड़वां आदि की उपस्थिति का पता करने और अस्थानिक गर्भधारण का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल किया जा सकता है। जन्म दोष जैसी समस्याओं का पता लगाने के लिए भी अल्ट्रासाउंड एक मूल्यावान स्क्रीनिंग उपकरण माना जाता है। 

परीक्षण - शरीर के अंगों और कोमल ऊतकों को प्रभावित करने वाली विभिन्न प्रकार की स्थितियों का परीक्षण करने के लिए भी डॉक्टर अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल कर सकते हैं। इन स्थितियों में हृदय, रक्तवाहिकाएं, लिवर, पित्ताशय की थैली, अग्न्याशय, गुर्दे, मूत्राशय, गर्भाशय, अंडाशय, आंखें, थायराइड और अंडकोष को प्रभावित करने वाली समस्याएं शामिल हैं।

मेडिकल प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल – अल्ट्रासाउंड इमेजिंग कुछ मेडिकल प्रक्रियाओं के दौरान भी डॉक्टरों की मदद करता है, जैसे सुई बायोप्सी  (Needle Biopsy)। क्योंकि इस प्रक्रिया में डॉक्टरो को बहुत ही सटीक क्षेत्र से ऊतकों का सैंपल निकालना होता है, जिसे लैब में टेस्ट किया जाता है।

थेराप्यूटिक एप्लीकेशन (Therapeutic applications) – अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल कभी-कभी नरम ऊतकों में लगी चोट (क्षति) को ढूंढने के लिए भी किया जाता है।

ईकोकार्डियोग्राफी (Echocardiography) – इसके द्वारा हृदय व हृदय वॉल्वों कि गति और उनमें खून के प्रवाह का मूल्यांकन किया जाता है। यह दिल की परत की गति और हृदय द्वारा प्रत्येक स्ट्रोक के साथ पंप किए गए खून की मात्रा का भी मूल्यांकन करता है। 

विशेष परिस्थिति में – जब इंट्रावेनस (Intravenous) की आवश्यकता हो, लेकिन नसें ढूंढने में परेशानी हो रही हो। ऐसे में गर्दन, छाती, या ऊसन्धि (Groin) में बड़ी नसों की पहचान करने के लिए अल्ट्रासाउंड गाइडेंस का इस्तेमाल किया जाता है।



अल्ट्रासाउंड से पहले - Before Ultrasound in Hindi

अल्ट्रासाउंड से पहले क्या किया जाता है?


अल्ट्रासाउंड से पहले की तैयारी डॉक्टर द्वारा बताये गए अल्ट्रासाउंड के प्रकार पर निर्भर करती है। बेहतर तस्वीरें प्राप्त करने के लिए अल्ट्रासाउंड से पहले कुछ तैयारियां भी की जाती हैं, जिनमें निम्न शामिल है:


अल्ट्रासाउंड करवाने से पहले पानी पीना -  जिस दिन अल्ट्रासाउंड किया जाता है, उस दिन डॉक्टर आपको जाँच से पहले 1 लीटर के करीब पानी पीने की सलाह दे सकते हैं।


स्कैन के कुछ घंटे पहले कुछ खाने से बचना – अगर अल्ट्रासाउंड स्कैन पाचन प्रणाली का किया जा रहा है, जिसमें लिवर और पित्ताशय की थैली भी शामिल है, तो स्कैन से कुछ घंटे पहले तक कुछ भी खाने से बचना चाहिए।




अल्ट्रासाउंड के दौरान - During Ultrasound in Hindi

अल्ट्रासाउंड के दौरान क्या किया जाता है?


ज्यादातर अल्ट्रासाउंड स्कैनों में 15 से 45 मिनट तक का समय लगता है लेकिन कुछ अल्ट्रासाउंड ऐसे भी हैं, जिनमें अधिक समय लगता है। ये अक्सर अस्पताल के रेडियोलोजी डिपार्टमेंट में या तो एक रेडियोलोजिस्ट या सोनोग्राफर द्वारा किए जाते हैं।

अल्ट्रासाउंड स्कैन के दौरान मरीज को एक मेज पर पीठ के बल लेटने को कहा जाता है। शरीर का जो हिस्सा स्कैन करना होता है, उसको छोड़कर बाकी के शरीर को कंबल से ढ़क दिया जाता है।

शरीर के जिस हिस्से का अल्ट्रासाउंड करना होता है, उस पर अल्ट्रासाउंड करने वाले कर्मचारी एक विशेष प्रकार जेल लगा देते हैं, जिससे शरीर और प्रोब के बीच अच्छा संपर्क बन जाता है। उसके बाद स्कैनर को हाथ से जेल पर रखा जाता है और क्षेत्र को स्कैन करने के लिए उसे इधर-उधर फेरते हैं। कभी-कभी स्कैनर को फेरने के साथ-साथ दबाने की भी जरूरत पड़ती है, जिससे थोड़ी तकलीफ होती है, हालांकि दर्द नहीं होता।

अल्ट्रासाउंड के दौरान मरीज को अपनी पोजीशन भी बदलनी पड़ सकती है, ताकि तकनीशियन ठीक से स्कैन कर पाए, हालांकि यह इस पर निर्भर करता है कि शरीर के किस भाग का स्कैन किया जा रहा है।

स्कैन पूरा होने के बाद अल्ट्रासाउंड कर्मचारी आपको जेल साफ करने के लिए कुछ दे सकते हैं और जब तक तस्वीरों की जांच ना कर लें इंतजार करने के लिए भी कह सकते हैं। 



अल्ट्रासाउंड के बाद - After Ultrasound in Hindi

अल्ट्रासाउंड के बाद क्या किया जाता है?


अल्ट्रासाउंड की प्रक्रिया पूरी होने के बाद जेल को शरीर से हटा दिया जाता है। सारी प्रक्रिया पूरी होने में लगभग 30 मिनट का समय लगता है, लेकिन यह परीक्षण किए जाने वाले क्षेत्र पर भी निर्भर करता है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद मरीज अपनी रोजाना की गतिविधियां कर सकते हैं। अधिकतर मामलों में अल्ट्रासाउंड के बाद कोई दुष्प्रभाव नहीं होता टेस्ट होने के तुरंत बाद मरीज अपने घर जा सकता है। अगर स्कैन के दौरान किसी शामक (Sedative) दवा आदि का इस्तेमाल नहीं किया गया हो तो स्कैन पूरा होने के तुरंत बाद खाना-पीना व ड्राइव आदि कर सकते हैं।


जिन लोगों का एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड किया जाता है, उनको रिलेक्स रखने के लिए शामक दवाएं दी जाती हैं, इसलिए आमतौर पर उन मरीजों को कुछ घंटे अस्तपाल में रूकने की सलाह दी जाती है, जब तक दवाई का असर खत्म नहीं हो जाता। मरीज को अस्पताल ले जाने और घर लाने के लिए तथा टेस्ट के बाद अगले 24 घंटे तक एक सहायक की आवश्यकता पड़ सकती है। इन 24 घंटों तक मरीज को शराब का सेवन नहीं करना चाहिए और ना ही ड्राइव या कोई मशीन चलानी चाहिए।



अल्ट्रासाउंड के क्या जोखिम होते हैं - What are the risks of Ultrasound in Hindi

अल्ट्रासाउंड के क्या जोखिम हो सकते हैं?


अल्ट्रासाउंड में ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसके जोखिम एक्स-रे व अन्य इमेजिंग टेस्ट जिनमें विकिरणों का इस्तेमाल किया जाता है आदि के जैसे नहीं होता है। वैसे तो अल्ट्रासाउंड को सुरक्षित माना गया है, लेकिन अल्ट्रासाउंड की ऊर्जा में शरीर पर जैविक प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता होती है। अल्ट्रासाउंड की तरंगे ऊतकों को थोड़ा गर्म कर सकती है। कुछ मामलों में अल्ट्रासाउंड शरीर के तरल पदार्थों व ऊतकों में गैस की एक छोटी थैली विकसित कर सकता है। लेकिन ये प्रभाव शरीर के लिए हानिरहित होते हैं।


जैसे कि टेक्नोलॉजी में सुधार हुआ है, अल्ट्रासाउंड की मशीनें छोटी और पोर्टेबल (Portable) हो गई हैं और इसे मरीज के बेड के पास लाकर इस्तेमाल की जा सकती है।




अल्ट्रासाउंड के परिणाम का क्या मतलब होता है - What do the results of Ultrasound mean in Hindi

अल्ट्रासाउंड के रिजल्ट का क्या मतलब होता है?


अल्ट्रासाउंड पूरा होने के बाद, इसके रिजल्ट की तस्वीरों की रिपोर्ट रेडियोलोजिस्ट द्वारा तैयार की जाती है। रेडियोलोजिस्ट एक डॉक्टर होता है, जिसको रेडियोलॉजी परीक्षणों (जैसे कि अल्ट्रासाउंड) की व्याख्या करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। तस्वीरों की व्याख्या करने के बाद वे डॉक्टर के पास एक अपने हस्ताक्षर की हुई रिपोर्ट भेजते हैं। अगर रेडियोलोजिस्ट को अल्ट्रासाउंड के रिजल्ट में कुछ असामान्यता मिलती है, तो असामान्यता के आधार पर अन्य प्रकार के इमेजिंग टेस्ट या एक और विशेष प्रकार के अल्ट्रासाउंड की आवश्यकता हो सकती है। अगर अल्ट्रासाउंड के रिजल्ट चिंता करने योग्य कोई संकेत दिखाता है, तो डॉक्टर जरूरी कदम और उपचार योजनाओं के बारे में आपसे चर्चा कर सकते हैं।




अल्ट्रासाउंड कब करवाना चाहिए - When to get Ultrasound in Hindi

अल्ट्रासाउंड कब करवाना चाहिए?


अल्ट्रासाउंड का उपयोग सबसे अधिक गर्भावस्था के लिए होता है। यह स्कैन गर्भवती मां को अपने अजन्मे बच्चे का पहला दृश्य प्रदान कर सकता है। हालांकि, अल्ट्रासाउंड के अन्य कई उपयोग भी हैं।


अगर आपको सूजन, दर्द या अन्य ऐसे लक्षण हैं जिनमें शरीर के अंदरूनी अंगों को देखने की जरूरत पड़ती है, तो डॉक्टर आपको अल्ट्रासाउंड करवाने का निर्देश दे सकते हैं। अल्ट्रासाउंड की मदद से निम्न चीजें देखी जा सकती हैं:


मूत्राशय

मस्तिष्क (शिशुओं में)

आंखें 

पित्ताशय

गुर्दे 

लिवर 

अंडाशय 

अग्न्याशय 

तिल्ली / प्लीहा (Spleen)

थायराइड 

अंडकोष 

गर्भाशय 

रक्त वाहिकाएं 

बायोप्सी जैसी कुछ मेडिकल प्रक्रियाओं के दौरान अल्ट्रासाउंड सर्जरी करने वाले डॉक्टरों को मार्गदर्शन करने में भी मदद करता है।



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