सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

HAEMOPHILIA AWARENESS



 [2/27, 01:59] Dr.J.k Pandey: ये एक आनुवांशिक बीमारी है जिसमें ख़ून का थक्का बनना बंद हो जाता है. जब शरीर का कोई हिस्सा कट जाता है तो ख़ून में थक्के बनाने के लिए ज़रूरी घटक खून में मौजूद प्लेटलेट्स से मिलकर उसे गाढ़ा कर देते हैं. इससे ख़ून बहना अपने आप रुक जाता है. जिन लोगों को हीमोफीलिया होता है उनमें थक्के बनाने वाले घटक बहुत कम होते हैं.

[2/27, 02:05] Dr.J.k Pandey: हीमोफीलिया को ब्‍लीडिंग डिसऑर्डर (रक्तस्राव विकार) भी कहते हैं, यह एक जेनेटिक रोग है जो बहुत कम लोगों में पाया जाता है। हीमोफीलिया रोग में शरीर के बाहर बह रका खून जल्‍दी नहीं रुकता है। यही कारण है कि सामान्य व्यक्तियों की तुलना में हीमोफीलिया के मरीजों में रक्‍त के थक्के बनने में अधिक समय लगता है। गंभीर मामलों में, यह आंतरिक रक्तस्राव (Internal Bleeding) का कारण हो सकता है। ऐसी स्थिति में उपचार न मिलने पर व्‍यक्ति की मृत्‍यु भी हो सकती है। महिलाओं की तुलना में हीमोफीलिया पुरुषों को ज्‍यादा होता है। भारत में जन्‍मे प्रत्येक 5,000 पुरुषों में से 1 पुरुष को हीमोफीलिया रोग होता है। यानि कि हमारे देश में हर साल लगभग 1300 बच्चे हीमोफीलिया के साथ जन्‍म लेते ह

हीमोफीलिया के कारण, लक्षण, इलाज व बचाव, 

हीमोफीलिया के प्रकार (typs Of Haemophilia In Hindi)

हीमोफीलिया के लक्षण (symptoms Of Haemophilia In Hindi)

हीमोफीलिया के कारण और जोखिम कारक (haemophilia Causes And Risk Factors)

हीमोफीलिया का रोकथाम (haemophilia Prevention In Hindi)

हीमोफीलिया का निदान (diagnosis Of Haemophilia In Hindi)

हीमोफीलिया का उपचार (treatment Of Haemophilia In Hindi)

जीवन शैली / प्रबंधन

रोग का निदान और जटिलताएं

वैकल्पिक उपचार

हीमोफीलिया के प्रकार (typs Of Haemophilia In Hindi)

हीमोफीलिया के कई अलग-अलग प्रकार हैं, लेकिन दो सबसे आम प्रकार हैं: हीमोफीलिया टाइप ए (Haemophilia type A) इस प्रकार के हीमोफीलिया को क्लासिक हीमोफीलिया के रूप में भी जाना जाता है। यह रोग VIII ब्‍लड क्‍लॉटिंग फैक्‍टर की कमी के कारण होता है। हीमोफीलिया टाइप बी (Haemophilia type B) इसे क्रिसमस रोग (Christmas Disease) के रूप में भी जाना जाता है। यह IX क्लॉटिंग के उत्पादन में कमी या गिरावट के कारण होता है।


हीमोफीलिया के लक्षण (symptoms Of Haemophilia In Hindi)

ब्‍लीडिंग हीमोफीलिया का एक प्राथमिक लक्षण है। जो निम्‍न रूपों में दिख सकती है-


त्वचा के नीचे ब्‍ली‍डिंग होना,  जो हेमेटोमा (शरीर के नरम ऊतकों में रक्त का निर्माण) का कारण बन सकता है।

मुंह में या मसूड़ों में ब्‍लीडिंग होना। आमतौर पर यह समस्‍या किसी दंत प्रक्रिया या दांत खराब होने के बाद होती है।

वैक्‍सीनेशन या इंजेक्शन लेने के बाद खून निकलना।

जोड़ों में ब्‍लीडिंग होने से प्रभावित जोड़ों में सूजन या दर्द हो सकता है। इससे सबसे ज्‍यादा प्रभावित कोहनी, घुटने और टखने होते हैं।

मल या मूत्र में ब्‍लड दिखना।

बार-बार नाक से खून बहना जिसे रोकना मुश्किल हो सकता है।

मुश्किल डिलीवरी के बाद नवजात के सिर से ब्‍लड निकलना।

आंतरिक पाचन तंत्र में ब्‍लीडिंग होने से मल या उल्टी में खून दिख सकता है।

मस्तिष्क में ब्‍लीडिंग होने के कारण सिरदर्द, उल्टी या दौरे की समस्‍या हो सकती है।

हीमोफीलिया के कारण और जोखिम कारक (haemophilia Causes And Risk Factors)

कारण जैसा कि हमने आपको बताया कि हीमोफीलिया एक ब्‍लीडिंग डिसऑर्डर है, जिसमें रक्‍त के थक्‍के नहीं बनते हैं और यह आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से ब्‍लीडिंग का कारण बन सकता है। यह इस बात का संकेत है कि किसी बाहरी चोट के बिना भी हीमोफीलिया में आंतरिक रक्तस्राव हो सकता है। इस स्थिति में आंतरिक अंगों को नुकसान पहुंचता है। हीमोफीलिया में आंतरिक रक्तस्राव के कारण स्वास्थ्य संबंधी कुछ जटिलताएं उत्‍पन्‍न हो सकती हैं:


क्‍लॉटिंग न होने के कारण ब्लड एक जगह इकट्ठा हो जाता है जिससे जोड़ों की मांसपेशियों को नुकसान पहुंच सकता है

सिर के अंदर ब्‍लीडिंग होने से ब्रेन डैमेज हो सकता है

शरीर के अन्य अंगों को नुकसान होना (जो मौत का कारण बन सकता है) रोग का आनुवंशिक आधार: हीमोफीलिया के लिए जिम्मेदार जीन विशेष रूप से X क्रोमोसाम पर निर्भर होता है। सभी जानते हैं कि पुरुषों के पास XY क्रोमोसाम होते हैं और महिलाओं के पास XX क्रोमोसाम होते हैं। ऐसे में जिन पुरुषों के जीन में ये ब्‍लीडिंग डिसऑर्डर होता है, उनके हीमोफीलिया से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है। जबकि महिलाओं में अगर एक X दोषपूर्ण भी है तो दूसरा X क्रोमोसाम उन्‍हें काफी हद तक हीमोफीलिया से बचा लेता है। हालांकि, जिन महिलाओं में दोषपूर्ण जीन होता है, उन्हें 'carriers' के रूप में जाना जाता है।

रिस्‍क फैक्‍टर हालांकि हीमोफीलिया एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, लेकिन ये बिना फैमिली हिस्‍ट्री वाले लोगों को भी हो सकता है। हाल ही में करीब 33 प्रतिशत बच्‍चे ऐसे हैं जिनमें हीमोफीलिया की पुष्टि हुई है लेकिन उनकी फैमिली हिस्‍ट्री में किसी को भी ये ब्‍लीडिंग डिसऑर्डर नहीं था। इन मामलों को क्लॉटिंग फैक्टर प्रोटीन के उत्पादन के लिए जिम्मेदार जीन के परिवर्तन का कारण माना गया है। यह परिवर्तन क्लॉटिंग प्रोटीन को ठीक से काम करने या पूरी तरह से गायब होने से रोक सकता है। 'फीमेल हीमोफिलिया' नामक एक बहुत ही दुर्लभ स्थिति होती है जब महिला के दोनों क्रोमोसाम में दोषपूर्ण जीन होता है। इस स्थिति में महिला हीमोफीलिया से पीड़ित होती है।

हीमोफीलिया का रोकथाम (haemophilia Prevention In Hindi)

यदि हीमोफीलिया का पारिवारिक इतिहास है, तो आप अपने नवजात शिशु को जन्म के समय या जन्म से पहले, गर्भावस्था के पहले तीन महीनों में जांच करा सकते हैं। इसके अलावा, हीमोफीलिया के मरीजों को स्वस्थ जीवन जीने के लिए कुछ बातों का ध्‍यान रखना आवश्‍यक है। उनमें से कुछ निम्‍नलिखित है:


Nonsteroidal anti-inflammatory drugs (NSAIDs) लेने से बचें

जोड़ों पर ज्‍यादा दबाव न पड़े इसलिए नियमित एक्‍सरसाइज कर उनकी देखभाल करें।

अपना पहचान पत्र साथ रखें, जिसमें आपका ब्‍लड ग्रुप लिखा हो।

यात्रा के दौरान सावधानी बरतें।

हेपेटाइटिस ए और बी का टीका जरूर लगवाएं, इससे रोकथाम किया जा सकता है।

यदि किसी को हीमोफिलिया है तो उसे किसी भी तरह ब्‍लीडिंग होने पर तुरंत इलाज करना चाहिए।

खून संबंधी संक्रमण और अन्‍य संक्रमण से बचने के लिए नियमित जांच कराएं। कम से कम वर्ष में एक बार जांच जरूर कराएं।

हीमोफीलिया का निदान (diagnosis Of Haemophilia In Hindi)

हीमोफीलिया का पता लगाने (निदान) में स्क्रीनिंग टेस्ट और क्लॉटिंग फैक्टर टेस्ट शामिल हैं। स्क्रीनिंग टेस्ट एक ब्‍लड टेस्‍ट है जो दिखाता है कि क्या रक्त ठीक से थक्का बना रहा है या नहीं। क्लॉटिंग फैक्टर टेस्ट को फैक्टर एसेज़ (Factor Assays) भी कहा जाता है; इस परीक्षण का उपयोग यह जांचने के लिए किया जाता है कि रक्त को थक्का बनने में कितना समय लगता है। इसका उपयोग हेमोफिलिया के प्रकार और रोग की गंभीरता को पहचानने करने के लिए किया जाता है। गंभीर हीमोफीलिया का पता एक वर्ष की आयु तक किया जाता है और रोगी के रक्त पर क्‍लॉटिंग प्रोफ़ाइल के एक पैनल के बाद निदान की पुष्टि की जाती है। हीमोफीलिया के होने की पुष्टि निम्‍नलिखित लैब रिजल्‍ट के माध्‍यम से की जाती है-


नॉर्मल प्लेटलेट काउंट

नॉर्मल ब्‍लीडिंग टाइम

सामान्य प्रोथ्रोम्बिन का समय (PT)

सामान्य थ्रोम्बिन का समय (TT)

लंबे समय तक सक्रिय थ्रोम्बोप्लास्टिन का समय

VIII या IX क्‍लॉटिंग का निम्‍न स्‍तर

हीमोफीलिया का उपचार (treatment Of Haemophilia In Hindi)

हीमोफीलिया के इलाज का सबसे अच्‍छा तरीका है कि रक्त के थक्के जमने वाले कारक को इस तरह से बदला जाए कि रक्त ठीक से थक्का बना सके। इसके लिए व्यावसायिक रूप से तैयार की गई क्लॉटिंग फैक्टर को किसी व्यक्ति की नसों में डाला जाता है। हाल ही में कई शोधकर्ताओं ने हीमोफिलिया के सही इलाज की पहचान करने के लिए जीन थेरेपी पर ध्यान केंद्रित किया है। फैक्टर कॉन्सन्ट्रेट थेरेपी- पेशेंट को फैक्टर कॉन्सन्ट्रेट थेरेपी दी जाती है। इसमें प्लाज्मा से फैक्टर को कॉन्‍सन्‍ट्रेट किया जाता है। हालांकि, इन प्लाज्मा फैक्‍टर के साथ कई समस्याओं का समाधान करना होता है। हीमोफिलिया का इलाज करने का सबसे अच्छा तरीका मिसिंग क्‍लॉटिंग फैक्‍टर्स रिप्‍लेस किया जाता है ताकि रक्त ठीक से थक्का बना सके। यह उपचार आमतौर पर उत्पादों को इंजेक्ट करके किया जाता है, जिसे क्‍लॉटिंग फैक्‍टर कहा जाता है, जो व्यक्ति की नस में केंद्रित होता है। रिकॉम्बिनैंट क्लॉटिंग फैक्टर- क्योंकि फैक्टर कॉन्संट्रेट थेरेपी में कई कमियां हैं, वर्तमान में उपचार का मुख्य आधार रिकॉम्बिनैंट क्लॉटिंग फैक्टर पर केंद्रित है। इसे रिकॉम्बिनेंट के रूप में भी जाना जाता है, यह उपचार बहुत बेहद महंगा है क्योंकि रिकॉम्बिनेंट की प्रत्येक यूनिट की कीमत लगभग दस रुपये है। इंट्राक्रेनियल ब्लीड (intracranial bleed) वाले 10 किलो के बच्चे को हर 8 घंटे के बाद एक खुराक की आवश्यकता होती है, और प्रत्येक खुराक की कीमत 5000 रुपये होती है। हीमोफीलिया के कुछ अन्य उपचार विकल्प निम्‍न हैं:


इंजेक्शन या नेजल स्प्रे की मदद से हीमोफीलिया से ग्रस्‍त मरीज को क्‍लॉटिंग फैक्‍टर की बढ़ी हुई मात्रा को रिलीज किया जा सकता है।

कुछ दवाएं हैं जो क्‍लॉटिंग को रोकने में मदद करती हैं और उनके टूटने में सहायता करती हैं।

फाइब्रिन सीलेंट भी उपयोगी हो सकते हैं, खासकर दांत से जुड़ी प्रक्रियाओं में, क्योंकि यह घाव के जमाव और उसके उपचार में सक्षम हैं।

जोड़ों में हल्के ब्‍लीडिंग के मामले में फिजिकल थेरेपी की जरूरत पड़ सकती है। यदि ब्‍लीडिंग ज्‍यादा है और जोड़ों को नुकसान हुआ है, तो सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।

त्वचा के नीचे मामूली ब्‍लीडिंग में आइस पैक लगाने से मदद मिल सकती है। मुंह में ब्‍लीडिंग होने पर बर्फ के टुकड़े मदद कर सकते हैं।

जीन थेरेपी भी इसमें काफी हद तक मददगार है।

क्या उपचार में कोई जटिलताएं हैं? महज 10% से 15% लोग ही हीमोफीलिया एंटीबॉडी के लिए एक रेजिस्‍टेंस (प्रतिरोध) विकसित करते हैं, जिसे अवरोधक के रूप में जाना जाता है। ऐसे मामलों में उपचार अत्यंत कठिन हो जाता है क्योंकि दवाई देने के बाद शरीर उस तरह से रिस्‍पॉंस नहीं करता है जैसे करना चाहिए। अवरोधक वाले लोग अक्सर जोड़ों में दर्द और अन्य समस्‍याओं के बढ़ने का अनुभव कर सकते हैं। हीमोफीलिया एक जानलेवा बीमारी नहीं है और यह जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित नहीं करती है। लेकिन रक्‍त के माध्‍यम से संचारित रोगों (Transmitted disease) के जाने के कारण हीमोफीलिया से पीड़ित रोगियों की मृत्यु हो सकती है। यदि प्लाज्मा का ठीक से टेस्‍ट नहीं किया जाता है और गाइडलाइंस का पालन नहीं किया जाता है, तो रोगी की मौत होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।

जीवन शैली / प्रबंधन

हीमोफीलिया एक जीवन भर चलने वाली बीमारी है, इसलिए जीवनशैली में कुछ बदलाव करके आप इसे कंट्रोल कर सकते हैं- नियमित एक्‍सरसाइज: वॉकिंग और स्‍वीमिंग जैसी एक्‍सरसाइज मांसपेशियों को मजबूत बनाती हैं और शरीर को सुरक्षा प्रदान करती हैं। कुश्ती और फुटबॉल जैसे स्‍पोर्ट्स को खेलने से बचें। कुछ दवाओं से बचें: एस्पिरिन aspirin और आइबुप्रोफेन ibuprofen जैसी दवाओं से ब्‍लीडिंग बढ़ सकती है और इससे रक्त के थक्के बनने में भी रुकावट आती है, इसलिए इन दवाओं के सेवन से बचें। दांतों की स्‍वच्‍छता बनाए रखें: अगर आपको हीमोफीलिया है तो कैविटी और दांतों से जुड़ी समस्‍याओं से बचें। ये ब्‍लीडिंगका कारण बन सकता है। बच्चों के लिए सेफ्टी टिप्‍स: घर का फर्नीचर किनारे से गोल शेप में होना चाहिए और एकसमान होना चाहिए। इससे बच्‍चों को चोट लगने और ब्‍लीडिंग से बचाने में मदद मिलती है। कोहनी पैड, हेलमेट, सेफ्टी बेल्ट और नीपैड जैसी चीजें बच्‍चों को चोट लगने से बचा सकती हैं। बच्‍चों को नुकीली चीजों के संपर्क में आने से बचाएं। मेडिकल अलर्ट ब्रेसलेट: मेडिकल अलर्ट ब्रेसलेट पहनने से चिकित्साकर्मियों को सूचित किया जाएगा कि बच्चे को हीमोफीलिया है और साथ ही यह भी बताया जाएगा कि इलाज के लिए जरूरी क्लॉटिंग फैक्टर क्‍या है। यह बच्‍चे का जीवन बचा सकता है। काउंसलिंग: एक चिकित्सक या काउंसलर यह तय करने में मदद कर सकता है कि हीमोफीलिया से ग्रसित बच्चा किस प्रकार की गतिविधियों में अच्‍छा प्रदर्शन कर सकता है ताकि वे सामाजिक रूप से खुद को अलग-थलग महसूस न करें। हीमोफीलिया की स्थिति के बारे में सूचना: जो भी बच्चे की देखभाल करता है (रिश्‍तेदार, टीचर्स, दोस्त या कोई और), उन्‍हें बच्‍चे की हेमोफिलियक स्थिति के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।


रोग का निदान और जटिलताएं

रोग का निदान हीमोफीलिया का प्रकार और इसकी गंभीरता ही वो कारक हैं जो हीमोफीलिया के निदान का निर्धारण करते हैं। क्लॉटिंग फैक्‍टर्स के उपयोग के कारण, हीमोफिलिया के मरीज एक सामान्य और व्यावहारिक जीवन जी सकते हैं। जटिलताएं आंतरिक ब्‍लीडिंग- इस ब्‍लीडिंग से नसें सुन्न पड़ जाती हैं या दर्द महसूस हो सकता है। जोड़ों का डैमेज होना- यदि ब्‍लीडिंग बहुत ज्‍यादा है तो इससे जोड़ों पर अधिक दबाव पड़ सकता है जिससे गठिया या ज्‍वाइंट्स खराब हो सकते हैं। संक्रमण का खतरा- बार-बार रक्त चढ़ाने की वजह से रक्‍त दूषित हो सकता है जिससे संक्रमण का खतरा होता है। क्‍लॉटिंग फैक्‍टर्स के इलाज के दौरान प्रतिकूल प्रतिक्रिया- कुछ मामलों में इम्‍यून सिस्‍टम अवरोधकों का उत्पादन कर सकती है जो क्‍लॉटिंग फैक्‍टर्स के कार्य को खराब कर देती हैं, जिससे क्‍लॉटिंग फैक्‍टर्स ट्रीटमेंट अप्रभावी हो जाता है।


वैकल्पिक उपचार

वैकल्पिक उपचार तनाव को कम करने, दर्द में सुधार करने, नींद की क्‍वॉलिटी को बढ़ाने और संपूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य को बेहतर करने में मदद करते हैं। किसी भी वैकल्पिक दवाओं को शुरू करने से पहले डॉक्‍टर की सलाह जरूर लें। ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ वैकल्पिक दवाएं क्‍लॉटिंग के उपचार में मदद कर सकती हैं, लेकिन उन्‍हें सिर्फ डॉक्‍टर की सलाह पर ही लें। जैसे कि- मेडिटेशन और ताई ची- जोड़ों में ब्‍लीडिंग होने के कारण ये मन को शांत करने और दर्द से निपटने में मदद करती है। योगा- स्ट्रेचिंग, मांसपेशियों को मजबूत बनाने और संतुलन में सुधार करने वाले योगासन गठिया के रोगियों के लिए फायदेमंद होते हैं। हालांकि हीमोफीलिया के मरीजों को योगा करते वक्‍त सावधानी बरतनी चाहिए। मसाज थेरेपी- मालिश इस तरह से की जानी चाहिए कि मांसपेशियों पर ज्‍यादा दबाव न पड़े। नहीं तो ब्‍लीडिंग हो सकती है। मालिश से शरीर के दर्द में कमी, तनाव से राहत और मांसपेशियों की ऐंठन को दूर करने में मदद मिलती है। एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर- एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर दोनों ही मांसपेशियों की ऐंठन और पुराने दर्द को कम करने में मददगार साबित होते हैं। हालांकि, एक्यूपंक्चर का उपयोग केवल रिप्‍लेसमेंट ट्रीटमेंट के फर्स्‍ट डोज के बाद किया जाना चाहिए। एक्यूप्रेशर हिमोफिलिया रोगियों के लिए एक्यूपंक्चर से अधिक फायदेमंद हो सकता है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कैनुला क्या है?कैनुला कैसे लगाते हैं ? Cannulation in Hindi

 कैनुला कैसे लगाते हैं ? Cannulation in Hindi कैनुला क्या है? कैनुला एक पतली ट्यूब है, जिसे शरीर में नसों के जरिए इंजेक्ट किया जाता है, ताकि जरूरी तरल पदार्थ को शरीर से निकाला (नमूने के तौर पर) या डाला जा सके। इसे आमतौर पर इंट्रावीनस कैनुला (IV cannula) कहा जाता है। बता दें, इंट्रावीनस थेरेपी देने के लिए सबसे आम तरीका पेरिफेरल वीनस कैनुलेशन (शरीर के परिधीय नसों में कैनुला का उपयोग करना) है। इंट्रावीनस (नसों के अंदर) प्रबंधन का मुख्य लक्ष्य ऊतकों को नुकसान पहुंचाए बिना, सुरक्षित और प्रभावी ढंग से उपचार प्रदान करना है। जब किसी मरीज का लंबे समय तक उपचार चलता है, तो ऐसे में इंट्रावीनस थेरेपी की विशेष जरूरत पड़ती है। शोध से पता चला है कि जिन मामलों में इंट्रावीनस कैनुला की जरूरत नहीं होती है, उनमें भी इसका प्रयोग किया जाता है, जबकि कुछ मामलों में इसे टाला जा सकता है। जनरल वार्डों में भर्ती 1,000 रोगियों पर हाल ही में एक शोध किया गया, इस दौरान इन सभी मरीजों के नमूने लिए गए। अध्ययन में पाया गया कि लगभग 33% रोगियों में इंट्रावीनस कैनुला का प्रयोग सामान्य से अधिक समय के लिए किया जा रहा है। जबकि

Pleural Effusion in Hindi

 फुफ्फुस बहाव - Pleural Effusion in Hindi प्लूरल इफ्यूजन एक ऐसी स्थिति है, जिसमें फेफड़ों के बाहर असामान्य मात्रा में द्रव इकट्ठा हो जाता है। ऐसे कई रोग हैं जिनके कारण यह समस्या होने लग जाती है और ऐसी स्थिति में फेफड़ों के आस-पास जमा हुऐ द्रव को निकालना पड़ता है। इस इस स्थिति के कारण के अनुसार ही इसका इलाज शुरु करते हैं।  प्लूरा (Pleura) एक पत्ली झिल्ली होती है, जो फेफड़ों और छाती की अंदरुनी परत के बीच में मौजूद होती है। जब फुफ्फुसीय बहाव होता है, प्लूरा की परतों के बीच की खाली जगह में द्रव बनने लग जाता है। सामान्य तौर पर प्लूरा की परतों के बीच की खाली जगह में एक चम्मच की मात्रा में द्रव होता है जो आपके सांस लेने के दौरान फेफड़ों को हिलने में मदद करता है। फुफ्फुस बहाव क्या है - What is Pleural Effusion in Hindi प्लूरल इफ्यूजन के लक्षण - Pleural Effusion Symptoms in Hindi फुफ्फुस बहाव के कारण व जोखिम कारक - Pleural Effusion Causes & Risk Factors in Hindi प्ल्यूरल इफ्यूजन से बचाव - Prevention of Pleural Effusion in Hindi फुफ्फुस बहाव का परीक्षण - Diagnosis of Pleural Effusion in Hind

शीघ्रपतन की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment for Premature Ejaculation in Hindi

 शीघ्रपतन की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment for Premature Ejaculation in Hindi शीघ्र स्खलन एक पुरुषों का यौन रोग है, जिसमें दोनों यौन साथियों की इच्छा के विपरीत सेक्स के दौरान पुरुष बहुत जल्दी ऑर्गास्म पर पहुंच जाता है यानि जल्दी स्खलित हो जाता है। इस समस्या के कारण के आधार पर, ऐसा या तो फोरप्ले के दौरान या लिंग प्रवेश कराने के तुरंत बाद हो सकता है। इससे एक या दोनों साथियों को यौन संतुष्टि प्राप्त करने में परेशानी हो सकती है। स्खलन को रोक पाने में असमर्थता अन्य लक्षणों जैसे कि आत्मविश्वास में कमी, शर्मिंदगी, तनाव और हताशा आदि को जन्म दे सकती है। ज्यादातर मामलों में, हो सकता है कि स्खलन को नियंत्रित करने में असमर्थता किसी जैविक कारण से न पैदा होती हो, हालांकि उपचार के किसी भी अन्य रूप की सिफारिश करने से पहले डॉक्टर इसकी संभावना का पता लगाते हैं। तनाव, चिंता, अवसाद, यौन अनुभवहीनता, कम आत्मसम्मान और शरीर की छवि जैसे मनोवैज्ञानिक कारक शीघ्र स्खलन के सबसे आम कारण हैं। विशेष रूप से सेक्स से संबंधित अतीत के दर्दनाक अनुभव भी शीघ्र स्खलन का संकेत दे सकते हैं। अन्य