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CKD,RENAL FAILUR

 क्रोनिक किडनी फेल होना क्या होता है?


जब कई वर्षों तक धीरे-धीरे ​गुर्दे की कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है, तो उसे क्रोनिक किडनी फेल होना कहा जाता है। इस बीमारी का अंतिम चरण स्थायी रूप से किडनी की विफलता (kidney failure) होता है। क्रोनिक किडनी फेल होने को क्रोनिक रीनल विफलता (chronic renal failure), क्रोनिक रीनल रोग (chronic renal disease) या क्रोनिक किडनी विफलता (chronic kidney failure) के रूप में भी जाना जाता है।


जब गुर्दे की कार्य क्षमता धीमी होने लगती है और स्थिति बिगड़ने लगती है, तब हमारे शरीर में बनने वाले अपशिष्ट पदार्थों और तरल की मात्रा खतरे के स्तर तक बढ़ जाती है। इसके उपचार का उद्देश्य रोग को रोकना या धीमा करना होता है - यह आमतौर पर इसके मुख्य कारण को नियंत्रित करके किया जाता है।


क्रोनिक किडनी रोग लोगों की सोच से कहीं अधिक विस्तृत है। जब तक यह रोग शरीर में अच्छी तरह से फैल नहीं जाता, तब तक इस रोग या इसके लक्षणों के बारे में कुछ भी पता नहीं चलता। जब किडनी अपनी क्षमता से 75 प्रतिशत कम काम करती है, तब लोग यह महसूस कर पाते हैं कि उन्हें गुर्दे की बीमारी है।


किडनी फेल होने के चरण -:

किडनी फेल होने के लक्षण :

किडनी फेल होने के कारण -:

किडनी फेल होने से बचाव:

किडनी फेल होने का परीक्षण :







किडनी फेल होने के चरण - Stages of Chronic Kidney Disease (CKD) in Hindi

किडनी फेल होने के चरण इस प्रकार हैं –


किडनी फेल होने को पाँच चरणों में बाँटा गया है। जब चिकित्सक किसी व्यक्ति की गुर्दे की बीमारी का चरण पता लगा लेते हैं, तब वो उसका अच्छी तरह से इलाज कर सकते हैं। इस बीमारी के प्रत्येक चरण में अलग-अलग परीक्षणों और उपचार की आवश्यकता होती है।


 


ग्लोमेरुलर  निस्पंदन दर (Glomerular Filtration Rate - GFR)


ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर (जीएफआर) गुर्दे की कार्य क्षमता को मापने का सबसे अच्छा उपाय है। जीएफआर एक संख्या है, जो किसी व्यक्ति की गुर्दे की बीमारी के चरण को समझने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। व्यक्ति की आयु, जाति, लिंग और उनके सीरम क्रिएटिनाइन (serum creatinine) का उपयोग करके एक गणित सूत्र बनता है, जिसके द्वारा जीएफआर की गणना की जाती है। सीरम क्रिएटिनाइन के स्तर को मापने के लिए डॉक्टर रक्त परीक्षण का सुझाव देते हैं। क्रिएटिनाइन एक अपशिष्ट उत्पाद है, जो मांसपेशियों द्वारा की जाने वाली गतिविधियों से निकलता है। जब गुर्दे अच्छी तरह से काम करते हैं तो रक्त से क्रिएटिनाइन को अच्छी तरह से साफ कर देते हैं।  जैसे ही गुर्दों की काम करने की शक्ति धीमी हो जाती है, वैसे ही रक्त में क्रिएटिनाइन का स्तर बढ़ जाता है। 


नीचे प्रत्येक चरण के लिए सीकेडी (CKD) और जीएफआर (GFR) के पाँच चरण हैं –


   चरण​ 1 सामान्य या उच्च जीएफआर (जीएफआर > 90 एमएल /मिनट) 

   चरण 2 अल्प सीकेडी (जीएफआर = 60-89 एमएल / मिनट)

   चरण 3 ए मध्यम सीकेडी (जीएफआर = 45-59 एमएल / मिनट)

   स्टेज 3 बी मध्यम  सीकेडी (जीएफआर = 30-44 एमएल / मिनट)

   चरण 4 गंभीर सीकेडी (जीएफआर = 15-29 एमएल / मिनट)

   स्टेज 5 अंतिम चरण सीकेडी (जीएफआर <15 एमएल / मिनट)


एक बार जब आप जीएफआर को समझ लेते हैं तो आप गुर्दे की बीमारी का चरण निर्धारित कर सकते हैं। 


किडनी फेल होने के लक्षण - Chronic Kidney Disease (CKD) Symptoms in Hindi

किडनी फेल होने के लक्षण 


क्रोनिक किडनी विफलता, एक्यूट गुर्दे की विफलता के विपरीत, एक धीरे-धीरे बढ़ने वाली बीमारी है। यहाँ तक ​​कि अगर एक किडनी काम करना बंद कर देती है, तो दूसरी किडनी सामान्य रूप से कार्य कर सकती है। इसके लक्षण तब तक दिखाई नहीं देते, जब तक यह बीमारी अपने उच्च चरण में नहीं पहुँच जाती। इस चरण में बीमारी से हुई क्षति को ठीक नहीं किया जा सकता।


यह बहुत महत्वपूर्ण है कि जिन लोगों में किडनी फेल होने की अधिक सम्भावना हो, उन्हें अपने गुर्दों की नियमित रूप से जाँच करानी चाहिए। बीमारी का शुरुआत में ही पता चल जाने पर गुर्दों में होने वाली गंभीर क्षति को रोका जा सकता है।


किडनी फेल होने के सामान्य लक्षणों में शामिल हैं –


एनीमिया (खून की कमी)

मूत्र में रक्त आना

मूत्र का रंग गहरा होना

मानसिक सतर्कता में कमी 

मूत्र की मात्रा में कमी आना

एडिमा – सूजे हुए पैर, हाथ और टखने  (एडिमा के गंभीर होने पर चेहरा भी सूज जाता है।)

थकान 

उच्च रक्तचाप

अनिद्रा 

त्वचा में लगातार खुजली होना

भूख काम लगना 

स्तंभन दोष

जल्दी जल्दी पेशाब आना (विशेष रूप से रात में)

मांसपेशियों में ऐंठन

मांसपेशियों में झनझनाहट होना (muscle twitches)

जी मिचलाना

पीठ के मध्य से निचले हिस्से में दर्द

हाँफना

मूत्र में प्रोटीन आना

शरीर के वजन में अचानक बदलाव आना

अचानक सिरदर्द होना

किडनी फेल होने के कारण - Chronic Kidney Disease (CKD) Causes in Hindi

सीकेडी (CKD) के क्या कारण होते हैं?


हमारे शरीर में फिल्ट्रेशन (filtration) की जटिल प्रणाली को गुर्दे पूरा करते हैं। ये अतिरिक्त अपशिष्ट और तरल पदार्थों को रक्त से अलग करके शरीर से उत्सर्जित करने का काम करते हैं। प्रत्येक किडनी में लगभग 1 मिलियन सूक्ष्म फ़िल्टरिंग इकाइयां होती हैं, जिन्हें नेफ्रोन कहा जाता है। कोई भी बीमारी जो नेफ्रॉन को नुकसान पहुँचाती है, उससे किडनी की बीमारी भी हो सकती है। मधुमेह और उच्च रक्तचाप दोनों ऐसी बीमारियाँ हैं, जो नेफ्रोन को नुकसान पहुँचा सकती हैं। (ज़्यादातर किडनी की बीमारी मधुमेह और उच्च रक्तचाप की वजह से ही होती है।)


अधिकतर मामलों में, गुर्दे हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाले ज़्यादातर अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करते हैं। हालाँकि, यदि गुर्दों तक पहुँचने वाला रक्त प्रवाह प्रभावित हो जाता है, तो ये अच्छी तरह से काम नहीं करते। ऐसा होने का कारण कोई क्षति या बीमारी होती है। यदि मूत्र विसर्जन में बाधा आती है, तो समस्याएँ हो सकती हैं। 


अधिकांश मामलों में, किसी जीर्ण बीमारी का परिणाम होता है सीकेडी, जैसे:


मधुमेह – किडनी फेल होने को मधुमेह के प्रकार 1 और 2 से जोड़ा गया है। यदि रोगी का मधुमेह सही तरह से नियंत्रित नहीं है तो चीनी (ग्लूकोज) की अत्यधिक मात्रा रक्त में जमा हो सकती है। किडनी की बीमारी मधुमेह के पहले 10 सालो में आम नहीं होती है। यह बीमारी आमतौर पर मधुमेह के निदान के 15-25 साल बाद होती है।

उच्च रक्तचाप –  उच्च रक्तचाप गुर्दों में पाए जाने वाले ग्लोमेरुली भागों को नुकसान पहुँचा सकता है।  ग्लोमेरुली शरीर में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थों को छानने में मदद करते हैं। 

बाधित मूत्र प्रवाह – यदि मूत्र प्रवाह को रोक दिया जाता है तो वह मूत्राशय (वेसिकुरेटेरल रिफ्लक्स- vesicoureteral reflux)  से वापस किडनी में जाकर जमा हो जाता है। रुके हुए मूत्र का प्रवाह गुर्दों पर   दबाव बढ़ाता है और उसकी कार्य क्षमता को कम कर देता है। इसके संभावित कारणों में बढ़ी हुई पौरुष ग्रंथि (enlarged prostate), गुर्दों में पथरी या ट्यूमर शामिल है।

अन्य गुर्दा  रोग – इसमें पॉलीसिस्टिक (polycystic) किडनी रोग, पाइलोनेफ्रिटिस (pyelonephritis) या ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (glomerulonephritis) शामिल हैं।

गुर्दा धमनी स्टेनोसिस (Kidney artery stenosis) – गुर्दे में प्रवेश करने से पहले गुर्दे की धमनी परिसीमित हो जाती या रुक जाती है।

कुछ विषैले पदार्थ – इनमें  ईंधन, सॉल्वैंट्स (जैसे कार्बन टेट्राक्लोराइड), सीसा (lead ) और इससे बने पेंट, पाइप और सोल्डरिंग सामग्री) शामिल हैं। यहाँ तक ​​कि कुछ प्रकार के गहनों में विषाक्त पदार्थ होते हैं, जो कि गुर्दे की विफलता का कारण बन सकते हैं।

भ्रूण के विकास सम्बन्धी समस्या – अगर गर्भ में विकसित हो रहे शिशु के गुर्दे सही प्रकार से विकसित नहीं होते हैं। 

सिस्टमिक लुपस एरीथमैटोसिस (Systemic lupus erythematosis) –  यह एक स्व-प्रतिरक्षित (autoimmune) बीमारी है। इसमें शरीर की अपनी ही प्रतिरक्षा प्रणाली गुर्दों की गंभीर रूप से प्रभावित करती है जैसे कि वे कोई बाहरी ऊतक हों।

मलेरिया और पीला बुखार – गुर्दों के कार्य में बाधा डालने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। 

कुछ दवाएँ – उदाहरण के लिए एनएसएआईडीएस (NSAIDs) का अत्यधिक उपयोग। 

अवैध मादक द्रव्यों का सेवन – जैसे हेरोइन या कोकेन।

चोट – गुर्दों पर तेज़ झटका या चोट लगना।

किडनी फेल होने से बचाव - Prevention of Chronic Kidney Disease (CKD) in Hindi

किडनी फेल होने को कैसे रोका जा सकता है?


आप सीकेडी (CKD) की रोकथाम हमेशा नहीं कर सकते। हालाँकि उच्च रक्तचाप और मधुमेह को नियंत्रित करके किडनी रोग के खतरों को कम किया जा सकता है। यदि आपको किडनी की गंभीर समस्या है तो इसके लिए आपको नियमित जाँचकरानी चाहिए। सीकेडी (CKD) का निदान शीघ्र करने पर इसे बढ़ने से रोका जा सकता है।   


इस बीमारी से ग्रसित  व्यक्तियों को अपने डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों और सलाह का पालन करना चाहिए।


आहार


पौष्टिक आहार, जिसमें बहुत से फल और सब्जियां, साबुत अनाज, बिना चर्बी वाला मांस या मछली शामिल हों, उच्च रक्तचाप को कम रखने में मदद करता है। 


शारीरिक गतिविधि


नियमित शारीरिक व्यायाम रक्तचाप के स्तर को सामान्य बनाए रखने के लिए आदर्श माना जाता है। यह मधुमेह और हृदय रोग जैसी दीर्घकालीन बीमारियों को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वे अपनी उम्र, वजन और स्वास्थ्य के लिए अनुकूल व्यायाम के बारे में डॉक्टर से परामर्श लें। 


कुछ पदार्थों से बचें 


शराब और ड्रग्स का सेवन न करें। लीड जैसी भारी धातुओं के साथ अधिक समय तक संपर्क में आने से बचें। ईंधन, सॉल्वेंट्स (solvents) और अन्य विषैले रसायनों (toxic chemicals) से अपने आपको बचाकर रखें। 


किडनी फेल होने का परीक्षण - Diagnosis of Chronic Kidney Disease (CKD) in Hindi

किडनी फेल होने का निदान कैसे होता है?


डॉक्टर लक्षणों की जाँच करेंगे और रोगियों से लक्षणों के बारे में पूछेंगे।  नीचे दिए परीक्षणों का सुझाव भी दिया जा सकता है – 


1. रक्त परीक्षण – चिकित्सक द्वारा रक्त परीक्षण कराने का परामर्श इसलिए दिया जाता है, जिससे ये निर्धारित किया जा सके कि शरीर में उत्पन्न अपशिष्ट अच्छी तरह से फ़िल्टर हो रहे हैं या नहीं। यदि यूरिया और क्रिएटिनिन का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है तो चिकित्सक किडनी की बीमारी के अंतिम चरण का निदान करेंगे।


2. मूत्र परीक्षण – मूत्र परीक्षण यह पता लगाने में मदद करता है कि मूत्र में रक्त या प्रोटीन की मात्रा है या नहीं। 


3. किडनी स्कैन – किडनी स्कैन में मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (magnetic resonance imaging- MRI) स्कैन, कम्प्यूटेड टोमोग्राफी स्कैन (CT scan) या अल्ट्रासाउंड भी शामिल हो सकते हैं। इसका उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि मूत्र प्रवाह में कोई रुकावट आ रही है या नहीं। इन स्कैन के द्वारा गुर्दे के आकार का अनुमान मिल जाता है। गुर्दे की बीमारी के आरंभिक चरणों में किडनी का आकार छोटा और असामान्य हो जाता है। 


4. किडनी बायोप्सी – इसमें गुर्दों के ऊतकों का छोटा सा नमूना लिया जाता है और सेल (cell) की क्षति की जाँच की जाती है। गुर्दों के ऊतकों के विश्लेषण से बीमारी का सटीक निदान करना आसान हो जाता है।


5. छाती का एक्स-रे – इसका उद्देश्य पल्मोनरी एडिमा (pulmonary edema- जो फेफड़ों में तरल पदार्थ बनाए रखते हैं) की जाँच करना होता है।


6. ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर (GFR) – जीएफआर एक ऐसा परीक्षण है जो ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर को मापता है। यह मरीज के रक्त और मूत्र में अपशिष्ट उत्पादों के स्तर को मापने में काम आता है। जीएफआर यह अनुमान लगाता  है कि कितने मिलीलीटर अपशिष्ट किडनी द्वारा प्रति मिनट फिल्टर किया जा सकता है। आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के गुर्दे 90 मिलीलीटर से अधिक अपशिष्ट प्रति मिनट फ़िल्टर कर सकते हैं।


किडनी फेल होने का इलाज - Chronic Kidney Disease (CKD) Treatment in Hindi

किडनी फेल होने का उपचार क्या है?


क्रोनिक किडनी रोग का वर्तमान समय में कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। हालाँकि, कुछ ऐसे उपचार हैं जो इसके लक्षणों को नियंत्रित करने, जोखिमों को कम करने और रोग को बढ़ने से रोकने में मदद करते हैं। 


1. एनीमिया का उपचार – हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक पदार्थ होता है, जो ऑक्सीजन को शरीर के सभी अंगों तक पहुँचाता है। शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाने पर रोगी को एनीमिया हो जाता है। जो लोग गुर्दे की बीमारी के साथ एनीमिया से ग्रसित होते हैं, उन्हें रक्त चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है।  आमतौर पर गुर्दे की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को आयरन पूरक (iron supplements) या तो हर रोज़ फेरस सल्फेट गोलियों के रूप में या कभी-कभी इंजेक्शन के रूप में लेने पड़ते हैं। 


2. फॉस्फेट संतुलन – किडनी के मरीज़ अपने शरीर से फॉस्फेट की मात्रा को पूरी तरह से निष्कासित करने में सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे रोगियों को सलाह दी जाती है कि वो अपने आहार में फॉस्फेट का कम से कम इस्तेमाल करे। मरीज़ डेयरी उत्पादों, लाल मांस, अंडे और मछली का सेवन न करें। 


3. विटामिन डी – गुर्दे के रोगियों में विटामिन डी का स्तर बहुत कम होता है। विटामिन डी स्वस्थ हड्डियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। विटामिन डी हमें सूरज और भोजन से प्राप्त होता है। यह पहले किडनी द्वारा सक्रिय होता है, तब शरीर इस विटामिन का इस्तेमाल कर सकता है। 


4. उच्च रक्तचाप – क्रोनिक किडनी रोगियों में उच्च रक्तचाप एक सामान्य समस्या होती है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि रक्तचाप का स्तर सामान्य बना रहे, जिससे गुर्दों को होने वाले खतरों को कम किया जा सके। 


5. तरल अवरोधन (Fluid retention) – जिन लोगो को किडनी का रोग होता है, उन्हें किसी भी तरह का तरल पदार्थ लेने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए।  यदि मरीज़ के गुर्दे ठीक से काम नहीं करते तो उसके शरीर में तरल पदार्थ बहुत तेज़ी से बनने शुरू हो जाते हैं। इसलिए ज़्यादातर मरीज़ों को तरल पदार्थ का सेवन करने से रोक दिया जाता है। 




6. एंटी सिकनेस मेडिकेशन बीमारी को रोकने वाली दवाइयाँ​ गुर्दों के ठीक तरह से काम न करने पर मरीज़ के शरीर में विषैले पदार्थ बनने शुरू हो जाते हैं। इससे रोगी बीमार (मतली) महसूस कर सकता है। स्यकलीज़ीने (cyclizine) या मेटोक्लोप्रामाइड (metaclopramide) जैसी दवाइयाँ​ इस  बीमारी में मददगार होती हैं।  


8. आहार –  किडनी विफलता (kidney failure)  के प्रभावशाली उपचार के लिए उचित आहार का सेवन करना बहुत महत्वपूर्ण है। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि आहार में प्रोटीन लेना बंद करने से रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है। ऐसा आहार लेने से मतली के लक्षण भी कम हो जाते हैं। उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में रखने के लिए नमक का सेवन सही मात्रा में करना ज़रूरी है। समय के साथ पोटेशियम और फास्फोरस के सेवन को भी धीरे-धीरे बंद कर दिया जाता है।  


9. NSAIDs (नॉनस्टेरॉइडल एंटी इंफ्लेमेटरी ड्रग्स) – एनएसएआईडी (NSAIDs), जैसी दवाइयों से बचना चाहिए और सिर्फ चिकित्सक के सुझाव पर ही इन्हें लेना चाहिए। 


अंतिम चरण के किडनी रोग का उपचार  


ऐसा तब होता है जब गुर्दे सामान्य क्षमता से 10-15 प्रतिशत कम काम कर रहे होते हैं। अभी तक किए गए उपायों में जैसे कि दवाएँ, आहार और इसके मुख्य कारणों को नियंत्रित करने वाले उपचार कुछ समय के बाद इस बीमारी के लिए पर्याप्त नहीं होते हैं। अंतिम चरण में रोगी की किडनी अपशिष्ट और और तरल पदार्थ अपने आप शरीर से बाहर नहीं निकाल पाती हैं। ऐसी स्थिति में रोगी को डायलिसिस या गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। 


ज़्यादातर डॉक्टर, जहाँ तक संभव हो सके डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता को लंबे समय तक टालने की कोशिश करते हैं क्योंकि इससे रोगी को गंभीर जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। 


1. किडनी डायलिसिस

जब गुर्दे ठीक तरह से काम करना बंद कर देते हैं तो यह रक्त से अपशिष्ट पदार्थों और अत्यधिक मात्रा में जमा हुए तरल पदार्थों को नहीं निकल पाते हैं। ऐसी स्थिति में डायलिसिस से इन्हे निकालने में मदद मिलती है। डायलिसिस की प्रक्रिया के कुछ गंभीर खतरे हैं, जैसे कि संक्रमण।  


गुर्दा डायलिसिस के मुख्य दो प्रकार होते हैं –


1. हेमोडायलिसिस (Hemodialysis)

इस प्रकिर्या में रक्त को रोगी के शरीर से बाहर निकाला जाता है और फिर उसे एक डीएलएज़ेर (एक कृत्रिम किडनी) से पारित किया जाता है किया जाता है। ऐसे रोगियों को हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया को एक हफ्ते में तीन बार कराना जरुरी होता है। प्रत्येक प्रक्रिया को करने में कम से कम 3 घंटे लगते हैं।  विशेषज्ञ अब मानते हैं कि हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया को जल्दी जल्दी कराने से रोगियों का जीवन बेहतर गुणवत्ता वाला हो सकता है। घर पर उपयोग की जाने वाली आधुनिक डायलिसिस मशीनों से रोगी हेमोडायलिसिस का अधिक और नियमित उपयोग कर सकते हैं। 


2. पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal dialysis)


पेरिटोनियल गुहा (peritoneal cavity) में छोटी-छोटी रक्त वाहिकाओं का विशाल नेटवर्क होता है। इसके द्वारा रक्त को रोगी के पेट में फ़िल्टर किया जाता है। एक नली (catheter) को पेट में डाला जाता है, जिसके द्वारा डायलिसिस घोल को शरीर के अंदर पहुँचाया जाता है। इसके माध्यम से शरीर में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थ और तरल पदार्थ को बाहर निकाला जाता है। 


2. किडनी प्रत्यारोपण

गुर्दे की विफलता (kidney failure) के अलावा जिन व्यक्तियों को कोई और बीमारी नहीं है, उनके लिए किडनी प्रत्यारोपण, डायलिसिस से अच्छा विकल्प है। फिर भी, गुर्दा प्रत्यारोपण वाले रोगियों को डायलिसिस से गुजरना पड़ता है जब तक कि उन्हें नई किडनी नहीं मिलती। गुर्दा देने वाले और प्राप्तकर्ता दोनों का रक्त समूह (blood type), सेल प्रोटीन और एंटीबॉडीज़ समान होने चाहिए, ताकि नए गुर्दे के प्रत्यारोपण में कोई जोखिम न आये। भाई-बहन या बहुत करीबी रिश्तेदार आमतौर पर सर्वश्रेष्ठ डोनर माने जाते हैं। यदि कोई जीवित डोनर उपलब्ध नहीं है तो किसी मृत व्यक्ति के गुर्दे का उपयोग भी किया जा सकता है। 


किडनी फेल होने के जोखिम और जटिलताएं - Chronic Kidney Disease (CKD) Risks & Complications in Hindi

क्रोनिक किडनी रोग के जोखिम उत्पन्न करने वाले कारक


निम्नलिखित स्थितियों में गुर्दे की बीमारी के जोखिम बढ़ सकते हैं –  


पारिवारिक इतिहास जिसमे किसी सदस्य को किडनी की बीमारी हो 

उम्र –  60 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों में क्रोनिक किडनी रोग होना सामान्य है। 

अथेरोस्क्लेरोसिस (atherosclerosis) 

मूत्राशय में रुकावट

क्रोनिक ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (glomerulonephritis)

जन्मजात किडनी रोग (किडनी रोग जो जन्म के समय से ही मौजूद है)

मधुमेह – सबसे सामान्य जोखिम के कारकों में से एक है। 

उच्च रक्तचाप

ल्यूपस एरीथेमेटोसिस (lupus erythematosis)

कुछ विषाक्त पदार्थों का अत्यधिक प्रभाव

सिकल सेल रोग (इससे शरीर में रक्त की कमी होने लगती है)

कुछ दवाएँ

क्रोनिक किडनी रोग की जटिलतायें


यदि क्रोनिक किडनी रोग के मरीज़ की गुर्दे की विफलता (kidney failure) की संभावना बढ़ जाती है, तो नीचे लिखी समस्याओं का होना संभव है – 


खून की कमी (एनीमिया)

केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) का नष्ट होना 

शुष्क त्वचा या त्वचा का रंग परिवर्तित होना 

तरल अवरोधन (fluid retention)

हाइपरकेलीमिया – रक्त पोटेशियम के स्तर का बढ़ना, जिससे दिल को नुकसान हो सकता है।

अनिद्रा

कामेच्छा की कमी

पुरुषों में स्तंभन दोष

अस्थिमृदुता (osteomalacia) – हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं और आसानी से टूट जाती हैं।

 पेरिकार्डिटिस (pecarditis) – एक थैली जैसी झिल्ली  (पेरीकार्डियम)  जो दिल की अंदरूनी परत को बंद रखती है, सूज जाती है।

पेट में अल्सर होना 

कमजोर रोग प्रतिरोधक प्रणाली  ध्यान रहे कि डॉक्टर से सलाह किये बिना आप कृपया कोई भी दवाई न लें।



टिप्पणियाँ

Aryan pandey ने कहा…
Usefull and important awareness

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