सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

KIDNEY STRUCTURE,FUNCTION


 KIDNEY STRUCTURE AND FUNCTION

किडनी की संरचना

किडनी (गुर्दा )मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। किडनी की खराबी, किसी गंभीर बीमारी या मौत का कारण भी बन सकता है। इसकी तुलना सुपर कंप्यूटर के साथ करना उचित है क्योंकि किडनी की रचना बड़ी अटपटी है और उसके कार्य अत्यंत जटिल हैं उनके दो प्रमुख कार्य हैं - हानिकारक अपशिष्ट उत्पादों और विषैले कचरे को शरीर से बाहर निकालना और शरीर में पानी, तरल पदार्थ, खनिजों (इलेक्ट्रोलाइट्स के रूप में सोडियम, पोटेशियम आदि) नियमन करना है।


किडनी की संरचना

किडनी शरीर का खून साफ कर पेशाब बनाती है। शरीर से पेशाब निकालने का कायॅ मूत्रवाहिनी (Ureter), मूत्राशय (Urinary Bladder) और मूत्रनलिका (Urethra) द्वारा होता है।


स्त्री और पुरुष दोनों के शरीर में सामान्यत: दो किडनी होती है।

किडनी पेट के अंदर, पीछे के हिस्से में, रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ (पीठ के भाग में), छाती की पसलियों के सुरक्षित तरीके से स्थित होती है ।

किडनी, पेट के भीतरी भाग में स्थित होती हैं जिससे वे सामान्यतः बाहर से स्पर्श करने पर महसूस नहीं होती।

किडनी, राजमा के आकर के एक जोड़ी अंग हैं। वयस्कों में एक किडनी लगभग 10 सेंटीमीटर लम्बी, 6 सेंटीमीटर चौडी और 4 सेंटीमीटर मोटी होती है। प्रत्येक किडनी का वजन लगभग 150 - 170 ग्राम होता है।

किडनी द्वारा बनाए गये पेशाब को मूत्राशय तक पहुँचानेवाली नली को मूत्रवाहिनी कहते हैं। यह सामान्यत: 25 सेंटीमीटर लम्बी होती है और विशेष प्रकार की लचीली मांसपेशियों से बनी होती है।

मूत्राशय पेट के निचले हिस्से में सामने की तरफ (पेडू में) स्थित एक स्नायु की थैली है, जिसमें पेशाब जमा होता है। वयस्क व्यक्ति के मूत्राशय में 400 - 500 मिलीलीटर पेशाब एकत्रित हो सकता है। जब मूत्राशय की क्षमता के करीब पेशाब भर जाता है तब व्यक्ति को पेशाब त्याग करने की तीव्र इच्छा होती है।

मूत्रनलिका द्वारा पेशाब शरीर से बहार आता है। महिलाओं में पुरुषों की तुलना में मूत्रमार्ग छोटा होता है, जबकि पुरुषों में मार्ग लम्बा होता है।

स्त्री और पुरुष दोनों में किडनी की रचना, स्थान और कार्यप्रणाली एक सामान होती है।

किडनी के कार्य

Kidney In Hindi

किडनी की जरूरत और महत्व क्या है ?

प्रत्येक व्यकित द्वारा लिए गए आहार के प्रकार और उसकी मात्रा में हर दिन परिवर्तन होता रहता है।

आहार की विविधता के कारण शरीर में पानी की मात्रा, अम्लीय एवं क्षारिय पदार्थों की मात्रा में निरंतर परिवर्तन होता रहता है।

आहार के पाचन के दौरान कई अनावश्यक पदार्थ शरीर में उत्पन्न हो जाते हैं।

शरीर में पानी, अम्ल, क्षार तथा अन्य रसायनों एवं शरीर के अंदर उत्सर्जित होने वाले पदार्थों का संतुलन बिगडने या बढ़ने पर वह व्यक्ति के लिए जानलेवा हो सकता है।

किडनी शरीर में अनावश्यक द्रव्यों और पदार्थों को पेशाब द्वारा दूर कर खून का शुद्धीकरण करती है और शरीर में क्षार एवं अम्ल का संतुलन कर खून में इनकी उचित मात्रा बनाए रखती है। इस तरह किडनी शरीर को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखती है।

किडनी के मुख्य कार्य क्या है?

Kidney In Hindiकिडनी के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:

1. खून का शुद्धीकरण:

किडनी निरंतर कार्यरत रहकर शरीर में बनते अनावश्यक जहरीले पदार्थों को पेशाब द्वारा बाहर निकालती है।


2. अपशिष्ट उत्पादों को निकलना

अपशिष्ट उत्पादों को हटाकर रक्त की शुद्धि करना किडनी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। हमारे द्वारा जो भोजन लिया जाता है उसमें प्रोटीन होता है। यह प्रोटीन शरीर को आरोग्य रखने और शरीर के विकास के लिए आवश्यक है। प्रोटीन का शरीर द्वारा उपयोग किया जाता है किन्तु इस प्रक्रिया में कुछ अपशिष्ट पदार्थों का उत्पादन होता है। इन अपशिष्ट पदार्थों का संचय हमारे शरीर के अंदर जहर को बनाए रखने के समान है। हमारी किडनी, रक्त से विषाक्त अपशिष्ट उत्पादों को छानकर उसे शुद्ध करती हैं। ये विषाक्त पदार्थ अंततः पेशाब से विसर्जित हो जाते हैं।


क्रीएटिनिन और यूरिया दो महत्वपूर्ण अपशिष्ट उत्पाद हैं। रक्त में इनकी मात्रा का अवलोकन, किडनी की कार्यक्षमता को दर्शाता है। जब दोनों किडनी खराब हो जाती हैं, तो क्रीएटिनिन और यूरिया की मात्रा रक्त परीक्षण में उच्च स्तर पर पहुँच जाते हैं।


3. शरीर में पानी का संतुलन:

किडनी शरीर के लिए जरूरी पानी की मात्रा को रखते हुए अधिक जमा हुए पानी को पेशाब द्वारा बहार निकालती है।


जब किडनी ख़राब हो जाती हैं तो वे इस अतिरिक्त पानी को शरीर से बाहर करने की क्षमता को खो देती हैं, शरीर में अतिरिक्त पानी एकत्रित होने के कारण शरीर में सूजन हो जाती है।


Kidney In Hindi4. अम्ल एवं क्षार का संतुलन:

किडनी शरीर में सोडियम, पोटैशियम, क्लोराइड, मैग्नेशियम, फॉस्फोरस, बाइकार्बोनेट वगैरह की मात्रा यथावत रखने का कार्य करती है। उपरोक्त पदार्थ ही शरीर में अम्ल एवं क्षार की मात्रा के लिए जिम्मेदार होते हैं। सोडियम की मात्रा बढ़ने या घटने से दिमाग पर और पोटैशियम की मात्रा बढ़ने या कम होने से हृदय और स्नायु की गतिविधियों पर गंभीर असर पड़ सकता है।


कैलशियम और फॉस्फोरस को उचित रखना और उनके स्तर को सामान्य रखना हमारे शरीर में स्वस्थ हडिड्यों और स्वस्थ दांतों के लिए अति आवश्यक है।


5. खून के दबाव पर नियंत्रण:

किडनी कई हार्मोन बनाती है जैसे एंजियोटेन्सीन,


एल्डोस्टोरोन, प्रोस्टाग्लेन्डिन इत्यादि। इन हार्मोनों की सहायता से शरीर में पानी की मात्रा, अम्लों एवं क्षारों के संतुलन को बनाए रखती है। इस संतुलन की मदद से किडनी शरीर में खून के दबाव को सामान्य बनाये रखने का कार्य करती है।


किडनी की खराबी होने पर होर्मोन के उत्पादन एवं नमक और पानी के संतुलन में गड़बड़ी से उच्च रक्तचाप हो जाता है।


6. रक्तकणों के उत्पादन में सहायता:

खून में उपस्थित लाल रक्तकणों का उत्पादन एरिथ्रोपोएटीन की मदद से अस्थिमज्जा (Bone Marrow)में होता है। एरिथ्रोपोएटीन किडनी में बनता है किडनी के फेल होने की स्थिति में यह पदार्थ कम या बिल्कुल ही बनना बंद हो जाता है, जिससे लाल रक्तकणों का उत्पादन कम हो जाता है और खून में फीकापन आ जाता है, जिसे एनीमिया (खून की कमी का रोग) कहते हैं।


7. हडिड्यों की मजबूती

स्वस्थ हडिड्यों को बनाए रखने के लिए किडनी, विटामिन डी को सक्रिय रूप में परिवर्तित करती है जो भोजन से कैल्सियम के अवशोषण, हडिड्यों और दांतों के विकास और हडिड्यों को मजबूत और स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक होता है।


किडनी में खून के शुद्धीकरण के बाद पेशाब कैसे बनता है?

किडनी जरूरी पदार्थों को रख कर अनावश्यक पदार्थों को पेशाब द्वारा बाहर निकालती है। यह अनोखी, अद्‍भुत तथा जटिल प्रक्रिया है। आइए हम पेशाब गठन की इस जटिल और अदभुत प्रक्रिया को समझते हैं।


क्या आप जानते हैं? शरीर की दोनों किडनीयों में प्रति मिनट 1200 मिली लिटर खून स्वच्छ होने के लिए आता है जो हृदय द्वारा शरीर में पहुँचनेवाले समस्त खून के बीस प्रतिशत के बराबर है। इस तरह 24 घंटे में अनुमानत: 1700 लिटर खून का शुद्धीकरण होता है।

खून को साफ करके पेशाब बनाने का कार्य करने वाले किडनी की सबसे छोटी एवं बारीक यूनिट को नेफ्रोन कहते हैं, जो एक छन्नी की तरह होती है।

प्रत्येक किडनी में दस लाख नेफ्रोन होते हैं। प्रत्येक नेफ्रोन के मुख्य दो हिस्से होते हैं पहला ग्लोमेरुलस और दूसरा ट्यूब्यूल्स।

किडनी का मुख्य कार्य खून को शुद्ध करना और शरीर में पानी एवं क्षार का संतुलन कर के पेशाब बनाना है।

ग्लोमेरुलस एक प्रकार की छन्नी होती है। इसमें विस्पंदन की विशेषता के साथ छोटे छोटे छेद होते हैं। जल और छोटे आकर के पदार्थ आसानी से उसके माध्यम से छन जाते हैं। लेकिन बड़े आकर की लाल रक्त कोशिकाएँ, सफेद रक्त कोशिकाएँ, प्लेटलेट्स, प्रोटीन आदि इन छिद्रों से पारित नहीं हो सकते हैं। इसलिए इन की कोशिकाओं को स्वस्थ लोगों की पेशाब जांच में सामान्यतः नहीं देखा जा सकता है।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की ग्लोमेरुलस के नाम से जानी जानेवाली छन्नी प्रत्येक मिनट में 125 मिली लिटर प्रवाही बनाकर प्रथम चरण में 24 घंटों में 180 लिटर पेशाब बनाती है। इस 180 लिटर पेशाब में अनावश्यक पदार्थ, क्षार और जहरीले पदार्थ भी होते हैं। साथ हीं इसमें शरीर के लिए उपयोगी ग्लूकोज तथा अन्य पदार्थ भी होते हैं।

ग्लोमेरुलस में बननेवाला 180 लिटर पेशाब ट्यूब्यूल्स में आता है, जहाँ उसमें से 99 प्रतिशत द्रव का अवशोषण (Reabsorption) हो जाता है।

ट्यूब्यूल्स में होने वाले अवशोषण को बुद्धिपूर्वक क्यों कहा जाता है? इस अवशोषण को बुद्धिपूर्वक कहा गया है क्योंकि 180 लिटर जितनी बड़ी मात्रा में बने पेशाब में से जरूरी

पदार्थ एवं पानी पुनः शरीर में वापिस लिया जाता है। सिर्फ़ 1 से २ लिटर पेशाब में पूरा कचरा एवं अनावश्यक क्षार बाहर निकल जाता है।

इस तरह किडनी में बहुत ही जटिल विधि द्वारा की गई सफाई की प्रक्रिया के बाद बना पेशाब मूत्रवाहिनी द्वारा मूत्राशय में जाता है और मूत्रनलिका द्वारा पेशाब शरीर से बाहर निकलता है।

क्या स्वस्थ किडनेवाले व्यकित में पेशाब की मात्रा कम या ज्यादा हो सकती है?

हाँ, पेशाब की मात्रा पिये गये पानी की मात्रा तथा वातावरण के तापमान पर आधारित होती है।

अगर कोई व्यकित कम पानी पीता है तो सिर्फ आधा लिटर (500 मि. ली.) जितना कम किन्तु गाढ़ा पेशाब बनता है। अधिक पानी पीने पर, अधिक तथा पतला पेशाब बनता है।

गर्मी में अधिक पसीना आने से पेशाब की मात्रा कम हो जाती है और सर्दी की ऋतु में कम पसीना आने से पेशाब की मात्रा बढ़ जाती है।

सामान्य मात्र में पानी पीनेवाले व्यकित का पेशाब 500 मि. ली.(आधा लिटर) से कम या 3000 मि. ली. (तीन लिटर) से अधिक बने तो यह किडनी के रोग की शुरुआत की निशानी है।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कैनुला क्या है?कैनुला कैसे लगाते हैं ? Cannulation in Hindi

 कैनुला कैसे लगाते हैं ? Cannulation in Hindi कैनुला क्या है? कैनुला एक पतली ट्यूब है, जिसे शरीर में नसों के जरिए इंजेक्ट किया जाता है, ताकि जरूरी तरल पदार्थ को शरीर से निकाला (नमूने के तौर पर) या डाला जा सके। इसे आमतौर पर इंट्रावीनस कैनुला (IV cannula) कहा जाता है। बता दें, इंट्रावीनस थेरेपी देने के लिए सबसे आम तरीका पेरिफेरल वीनस कैनुलेशन (शरीर के परिधीय नसों में कैनुला का उपयोग करना) है। इंट्रावीनस (नसों के अंदर) प्रबंधन का मुख्य लक्ष्य ऊतकों को नुकसान पहुंचाए बिना, सुरक्षित और प्रभावी ढंग से उपचार प्रदान करना है। जब किसी मरीज का लंबे समय तक उपचार चलता है, तो ऐसे में इंट्रावीनस थेरेपी की विशेष जरूरत पड़ती है। शोध से पता चला है कि जिन मामलों में इंट्रावीनस कैनुला की जरूरत नहीं होती है, उनमें भी इसका प्रयोग किया जाता है, जबकि कुछ मामलों में इसे टाला जा सकता है। जनरल वार्डों में भर्ती 1,000 रोगियों पर हाल ही में एक शोध किया गया, इस दौरान इन सभी मरीजों के नमूने लिए गए। अध्ययन में पाया गया कि लगभग 33% रोगियों में इंट्रावीनस कैनुला का प्रयोग सामान्य से अधिक समय के लिए किया जा रहा है। जबकि

Pleural Effusion in Hindi

 फुफ्फुस बहाव - Pleural Effusion in Hindi प्लूरल इफ्यूजन एक ऐसी स्थिति है, जिसमें फेफड़ों के बाहर असामान्य मात्रा में द्रव इकट्ठा हो जाता है। ऐसे कई रोग हैं जिनके कारण यह समस्या होने लग जाती है और ऐसी स्थिति में फेफड़ों के आस-पास जमा हुऐ द्रव को निकालना पड़ता है। इस इस स्थिति के कारण के अनुसार ही इसका इलाज शुरु करते हैं।  प्लूरा (Pleura) एक पत्ली झिल्ली होती है, जो फेफड़ों और छाती की अंदरुनी परत के बीच में मौजूद होती है। जब फुफ्फुसीय बहाव होता है, प्लूरा की परतों के बीच की खाली जगह में द्रव बनने लग जाता है। सामान्य तौर पर प्लूरा की परतों के बीच की खाली जगह में एक चम्मच की मात्रा में द्रव होता है जो आपके सांस लेने के दौरान फेफड़ों को हिलने में मदद करता है। फुफ्फुस बहाव क्या है - What is Pleural Effusion in Hindi प्लूरल इफ्यूजन के लक्षण - Pleural Effusion Symptoms in Hindi फुफ्फुस बहाव के कारण व जोखिम कारक - Pleural Effusion Causes & Risk Factors in Hindi प्ल्यूरल इफ्यूजन से बचाव - Prevention of Pleural Effusion in Hindi फुफ्फुस बहाव का परीक्षण - Diagnosis of Pleural Effusion in Hind

शीघ्रपतन की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment for Premature Ejaculation in Hindi

 शीघ्रपतन की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment for Premature Ejaculation in Hindi शीघ्र स्खलन एक पुरुषों का यौन रोग है, जिसमें दोनों यौन साथियों की इच्छा के विपरीत सेक्स के दौरान पुरुष बहुत जल्दी ऑर्गास्म पर पहुंच जाता है यानि जल्दी स्खलित हो जाता है। इस समस्या के कारण के आधार पर, ऐसा या तो फोरप्ले के दौरान या लिंग प्रवेश कराने के तुरंत बाद हो सकता है। इससे एक या दोनों साथियों को यौन संतुष्टि प्राप्त करने में परेशानी हो सकती है। स्खलन को रोक पाने में असमर्थता अन्य लक्षणों जैसे कि आत्मविश्वास में कमी, शर्मिंदगी, तनाव और हताशा आदि को जन्म दे सकती है। ज्यादातर मामलों में, हो सकता है कि स्खलन को नियंत्रित करने में असमर्थता किसी जैविक कारण से न पैदा होती हो, हालांकि उपचार के किसी भी अन्य रूप की सिफारिश करने से पहले डॉक्टर इसकी संभावना का पता लगाते हैं। तनाव, चिंता, अवसाद, यौन अनुभवहीनता, कम आत्मसम्मान और शरीर की छवि जैसे मनोवैज्ञानिक कारक शीघ्र स्खलन के सबसे आम कारण हैं। विशेष रूप से सेक्स से संबंधित अतीत के दर्दनाक अनुभव भी शीघ्र स्खलन का संकेत दे सकते हैं। अन्य