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MALNUTRITION ,कुपोषण क्या है ? HOMOEOPATHY,

 [3/18, 23:23] Dr.J.k Pandey: कुपोषण क्या है ?

कुपोषण के कारण (Malnutrition causes)

किसी भी देश या शहर में यदि बड़े पैमाने पर लोग कुपोषण से ग्रस्त होते हैं, तो इसके कई कारण हो सकते हैं जिनमें आर्थिक,सामजिक और राजनीतिक कारण संभव हैं :-

सामजिक स्थिति

कुपोषण का कारण सिर्फ पोषण की अधिकता या कमी ही नहीं हैं बल्कि यह सामजिक स्थिति से भी  प्रभावित होता हैं. जैसे की जनसंख्या-वृद्धि से भी यह संभव हैं, जिसमे समाज के एक हिस्से को ही सभी पोषण मिलने लगता हैं. और दूसरा पक्ष कुपोषण का शिकार होने लगता हैं. इसी तरह युद्ध के समय भी कुपोषण की संभावना बढ़ जाती हैं और बड़े होते बच्चों में भी यह समस्या दिखना आम हैं. इस तरह वास्तव में कुपोषण  समाज की स्वास्थ सम्बन्धित समस्याओं में मुख्य समस्या बन चुकी हैं क्युकी आज का युवा अपने शरीर को फिट रखने की चाहत में पोषक तत्वों में समझोता करने लगता है,उस पर खाने में जंक फ़ूड की अधिकता भी शरीर में पोषक तत्वों की कमी करती  हैं.

भुखमरी

विश्व खाध्य कार्यक्रम (WFP) के अनुसार लगभग 1.02 बिलियन लोग विश्व भर में कुपोषण और भुखमरी का शिकार है. इसका मतलब हैं कि हर  6 में से 1 व्यक्ति आवश्यक भोजन और स्वस्थ जीवन नहीं जी पाता हैं. इस कारण भुखमरी और कुपोषण विश्व भर में स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्यायों में सबसे ऊपर हैं यहाँ तक की AIDS, मलेरिया और ट्यूबरकुलोसिस तीनों को मिलाकर देखे तो इनसे भी ज्यादा ये गंभीर हैं. प्राकृतिक आपदा, गरीबी, कृषि में कमी और पर्यावण का अत्यधिक शोषण भी एक कारण हैं.

पिछले कुछ समय में कुछ देशों की आर्थिक प्रगति में आने वाली रुकावट भी भुखमरी के लिए जिम्मेदार हैं. भुखमरी के साथ सूक्ष्म और आवश्यक पोषक तत्वों की कमी भी कुपोषण का कारण हैं जो की स्वस्थ व्यक्ति में विभिन्न बीमारियों का कारण बनता हैं और व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक विकास भी अवरुद्ध करता हैं.

कुपोषण और आर्थिक स्थिति

कुपोषण का कारण आर्थिक रूप से कमजोर होना भी हैं. लोगों के पास पोषक भोजन खरीदने को भी पैसे नहीं होते,ऐसे में जो भी खाने को मिलता हैं उससे ही चला लेते हैं और यही असंतुलित आहार कुपोषण को बढाता हैं. इसलिए वास्तविक समस्या पैसा हैं, क्युकी यदि भोजन उपलब्ध हैं तो कुछ लोग इसके लिए पर्याप्त धन नहीं जुटा पाते हैं. इसी कारण गरीब लोग आवश्यक वस्तुओं जैसे रोटी, चाय, शक्कर और चावल पर ही अपना जीवन यापन करते हैं. क्युकी उनके लिए सब्जियां और मीट बहुत महंगा होता हैं.

कुपोषण के प्रकार (types of malnutrition)

कुपोषण का कारण सिर्फ पोषक तत्वों की कमी होना ही नहीं बल्कि अधिक मात्रा में लेना भी हो सकता हैं. कुपोषण निम्न प्रकार के हो सकते हैं:

तीव्र कुपोषण (एक्यूट मालन्यूट्रिशन) –

जब वजन में बहुत ज्यादा कमी आती हैं, तब ये कुपोषण होता हैं. इसके कारण 3 प्रकार के कुपोषण संभव है

1.मरसेमस-

इस बीमारी में शरीर में वसा तेजी से कम होने लगती हैं,और ऊतक(टिश्यू)भयंकर ख़राब होने लगते हैं. इसके कारण शरीर का प्रतिरक्षा तन्त्र कमजोर होने लगता हैं.

2. क्वाशियोरकोर –

इस बीमारी में बॉडी फ्लूइड शरीर से बाहर नहीं निकल पाता हैं, जिस कारण स्किन और बालों के रंग में परिवर्तन आने लगता हैं, मोटापा, डायरिया, मसल मॉस का कम होना,रोग प्रतिरक्षा तन्त्र का कमजोर होना, वजन बढ़ना और विकास अवरुद्ध होना, घुटनों, पैरो और शरीर के निचले हिस्से में सुजनहोना भी इसके लक्ष्ण  है,

3. मर्सेमिक क्वाशियोकोर–

यह मरसेमस और क्वाशियोकोर का मिश्रित रूप हैं जिसमे दोनों रोगों के लक्ष्ण दिखाई देते है.

क्रोनिक कुपोषण–

ये बिमारी उन लोगो में पाई जाती हैं जो लम्बे समय तक कुपोषण से पीड़ित होते है,इसके परिणाम भी काफी लम्बे समय तक परिलक्षित होते हैं.यदि गर्भवती महिला को पूरा पोषण नहीं मिलता, तो यह होने वाले  बच्चे में जन्म के पहले ही शुरू हो जाता हैं,जिसका मतलब यह होता हैं की बच्चा जन्म के समय से ही कमजोर होता हैं.इसके अलावा यदि नवजात को माँ का दूध ना मिले तो भी कुपोषण की सम्भावना बनी रहती हैं.

विकास अवरुद्ध कुपोषण (ग्रोथ फैलियर मालन्यूट्रीशन)–

इसमें रोगी का वजन और लम्बाई उम्र की आवश्यकता अनुसार बढ़ नहीं पाते हैं.

सूक्ष्म पोषक कुपोषण:-

रोगी के शरीर में जब विटामिन A,B,C और D,फोलेट,आयरन,आयोडीन,जिंक और कैल्शियम जैसे खनिज तत्वों की कमी हो जाती है. ये सभी विटामिन्स और खनिज शरीर के लिए बहुत आवश्यक हैं.

आयरन की कमी से एनीमिया हो जाता है, दिमाग का विकास नहीं हो पाता और हृदय की गति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता हैं. आयोडीन की कमी से थायराइड ग्रन्थि पर प्रभाव पड़ता हैं और मानसिक विकृति की संभावना भी बढ़ जाती हैं.

सेलेनियम की कमी से हृदय और परिसंचरण तन्त्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है,इससे ओस्टियोअर्थराइटिस होने की भी संभावना रहती हैं और प्रतिरक्षा तन्त्र भी कमजोर होता हैं.

विटामिन बी12 की कमी से लाल रक्त कणिकाओं का निर्माण कम हो जाता हैं और तंत्रिकाएं भी विकृत होने लगती हैं. विटामिन A की कमी से दृष्टि कमजोर होने लगती हैं,हड्डियों का विकास भी नहीं हो पाता और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होने लगती हैं.

यदि शरीर में विटामिन D की कमी हो जाए,तो रिकेट्स और अन्य हड्डी सम्बन्धित समस्या भी हो सकती हैं. फोलेट या विटामिन बी 9 कम होने पर एनीमिया हो सकता हैं और विकास दर भी कम हो जाती हैं.जिंक की कमी होने पर एनीमिया के साथ संवेदी बोध भी कम हो जाता है

कुपोषण के कारण होने वाली अन्य बीमारियाँ

कुपोषण ही केवल एक बीमारी नहीं हैं इसके कारण भी कुछ अन्य बिमारियां हो सकती हैं. जिन लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता उनको हीं नहीं बल्कि उन्हें भी जिनके भोजन में विटामिन, कार्बोहायड्रेट,प्रोटीन जैसे आवश्यक पोषक तत्व नहीं होते उन्हें भी कुपोषण का सामना करना पड़ सकता हैं. सबसे आम प्रकार का कुपोषण प्रोटीन और उर्जा सम्बन्धित हैं जो कि भोजन में ऊर्जा और प्रोटीन के साथ सभी आवश्यक पोषक तत्वों जैसे कार्बोहायड्रेट,वसा और प्रोटीन की कमी के कारण होता हैं. वास्तव में कुपोषण का कारण व्यक्ति के भोजन की गुणवत्ता पर निर्भर करता हैं. कुपोषण भी कई प्रकार के होते हैं और इसके कारण इस बात पर निर्भर करते हैं कि कितने समय तक और कौनसी उम्र में भोजन में कौनसे पोषक तत्व की कमी रह रही हैं.

शरीर क्षय-

इस रोग में रोगी का कंकाल तंत्र कमजोर होने लगता हैं,विषम परिस्थितियों में यह बीमारी क्वाशियोरकोर नाम की बीमारी में बदल जाती हैं जिसमें शरीर में सुजन आ जाती हैं और चेहरा भी काफी फुला हुआ दिखाई देता हैं इसे “मून फेस” भी कहते हैं.

कुपोषण के अन्य प्रकार भी जीवन के लिए घातक हो सकते हैं क्यूंकि शरीर में विटामिन और खनिज तत्वों की कमी से एनीमिया, स्कर्वी, पेलिग्रा, बेरी-बेरी जैसे रोग हो सकते हैं.

रक्त का मुख्य संघटक लाल रक्त कणिकाए होती हैं जो की हीमोग्लोबिन से बनी होती है, इस हीमोग्लोबिन में आयरन होता हैं. यह हीमोग्लोबिन ही रक्त से ऑक्सीजन का संवहन में मदद करता हैं. इसलिए आयरन की कमी से शरीर को थकान की शिकायत होने लगती हैं.

आयोडीन की कमी होना दुनिया में मानसिक विकृति और दिमागी बिमारियों का सबसे बड़ा कारण है. विश्व भर में 780 मिलियन लोगों को आयोडीन की कमी हैं इसके कारण थाइरोइड सम्बन्धित रोग होते हैं जिसमे थाइरोइड ग्रन्थि में सुजन आ जाती हैं जिसे गोइटर रोग कहते हैं और इसका सबसे बुरा प्रभाव दिमाग पर पड़ता हैं जो की आयोडीन के बिना विकसित नहीं हो सकता हैं. जिंक की कमी से विकास अवरुद्ध होता हैं और इम्युनिटी भी कमजोर होती हैं.यह डायरिया  और निमोनिया की संभावना भी बढाता हैं

विटामिन A की कमी भी शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर करता हैं. जिसके कारण अन्य कई बिमारियां शरीर पर आक्रमण करने लगती हैं,इस कमी से आँखों की रोशनी पर भी प्रभाव पर पड़ता है,

लक्षण और कुपोषण की पहचान (Malnutrition diseases symptoms)

प्रारम्भिक लक्षणों को पहचान कर यदि समय पर उपचार मिल जाए तो कुपोषण की समस्या को कम किया जा सकता है. इसे पहचानने के लिए कई तरीके उपलब्ध हैं जिनमे मालन्यूट्रीशन युनिवर्सल स्क्रीनिंग टूल (MUST) प्रमुख हैं, यह कुपोषण ग्रस्त वयस्कों को पहचानने के लिए बनाया गया हैं यह 5 चरण का प्लान है:

प्रथम चरण :

लम्बाई और वजन को नापकर बॉडी मास इंडेक्स निकालकर स्कोर देखना होता हैं.

दूसरा चरण:

बिना किसी योजना के कम हुए वजन को नोट करते हैं और स्कोर देखते हैं. जैसे की सामन्य जीवन में बिना किसी प्रयास के ही 5 से 10 % तक वजन में कमी आना स्कोर को 1 करता हैं लेकिन 10 % तक वजन कम होना स्कोर को 2 करता हैं.

तीसरा चरण :

मानसिक और शारीरिक स्थिति देखकर स्कोर तय किये जाते हैं. जैसे की यदि व्यक्ति लगतार बीमार है और लगातार 5 दिन से भोजन नहीं ले रहा तो स्कोर 3 होंगे.

चतुर्थ चरण:

ऊपर के तीनों चरणों के स्कोर को जोडकर कुल रिस्क स्कोर निकाला जाता हैं.

पांचवा चरण:

अब देख-रेख का प्लान बनाने के लिए निकटतम गाइडलाइन की मदद लेनी होती हैं. यदि व्यक्ति कुपोषण के न्यूनतम रिस्क पर हैं तो स्कोर 0 होगा लेकिन स्कोर के 1 होने का मतलब हैं कि रोग होने की संभावना हैं और 2 से ज्यादा होने का मतलब है कि रोगी बहुत बड़ी रिस्क में हैं.

MUST का उपयोग केवल कुपोषण को पहचानने के लिए ही किया जाता हैं इससे आगे इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ता हैं. क्युकी यह किसी विशी पोषक तत्व की कमी को नहीं बताता. 

कुपोषण उपचार (malnutrition treatment guidelines in hindi)

MUST की सहायता से स्क्रीनिंग करने के बाद उपचार की प्रक्रिया शुरू होता हैं. कम रिस्क पर अस्पताल या घर पर ही पोषक आहार लेना शुरू किया जा सकता हैं. इससे थोडा ज्यादा होने पर 3 दिन के लिए आहार का निर्धारण किया जाता हैं. और ज्यादा रिस्क होने पर व्यक्ति को आहार विशेषज्ञ से उपचार लेना पड़ता हैं

उपचार का प्रकार कुपोषण की गंभीरता पर निर्भर करता हैं. जो कि संभव हैं  शुरूआती स्तर से लेकर भयंकर गंभीर स्थिति तक हो सकती हैं. इसके लिए डाईटीशियन आहार में कुछ परिवर्तन करता हैं जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता हैं पर्याप्त पोषक तत्वों युक्त आहार हो. इसके लिए संतुलित आहार दिया जाता हैं. फोर्टीफाईड भोजन जिसमें अतिरिक्त पोषक तत्व हो वो दिया जाता हैं, कैलोरी युक्त पेय पदार्थ दिए जाते हैं. रेडी टू यूज फ़ूड (RUTFs) का उपयोग भी कुपोषण के बच्चो के लिए किया जाने लगा हैं,भयंकर कुपोषण की स्थिति में यह भोजन काफी फायदा पहुंचाता हैं.

[3/18, 23:31] Dr.J.k Pandey: कुपोषण की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment for Malnutrition in Hindi

कुपोषण एक गंभीर समस्या है यह तब होती है, जब व्यक्ति के आहार में पोषक तत्वों की सही मात्रा नहीं होती है। भोजन व्यक्ति को स्वस्थ रखने के लिए ऊर्जा और पोषक तत्व प्रदान करता है लेकिन यदि भोजन से उचित प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिलते तो यह कुपोषण का रूप ले सकता है।

कम शब्दों में कहें तो, शरीर में पोषण असंतुलन की स्थिति को कुपोषण कहते हैं। कई बार कैलोरी और कुछ पोषक तत्वों की आवश्यक से ज्यादा मात्रा हो जाने से भी यह स्थिति जन्म ले सकती है। इस (कुपोषण) शब्द का उपयोग अक्सर उन लोगों के लिए भी किया जाता है जो अल्पपोषित हैं।

यह समस्या ज्यादातर ऐसी जगहों पर पाई जाती है, जहां भोजन और स्वच्छ पेयजल की पर्याप्त मात्रा नहीं है। विकासशील देशों में रहने वाली शहरी आबादी और विकसित देशों में कम आय वाले समूहों के बीच यह समस्या होना आम बात है। फिलहाल असंतुलित आहार के अलावा, चिकित्सीय स्थिति जैसे मलएब्जॉर्प्शन सिंड्रोम भी कुपोषण का कारण हो सकता है।

कुल मिलाकर कुपोषण एक गंभीर स्वास्थ्य स्थिति है, जिसका तुरंत और पूरी तरह से इलाज किया जाना चाहिए। कुपोषण से ग्रस्त लोग आमतौर पर वजन कम होना, थकान और चक्कर आने का अनुभव करते हैं। हालांकि, कुछ लोगों में कोई लक्षण नहीं होता है। गंभीर कुपोषण के लक्षणों में एनर्जी कम होना, पेट व पैरों में सूजन और छोटा कद शामिल है।

प्रमाणित उपचार विधियों का लक्ष्य कुपोषण के अंतर्निहित कारणों का इलाज करना है। होम्योपैथिक उपचार एक समान आधार पर काम करता है और कुपोषण के कारणों को ठीक करने में मदद करता है। होम्योपैथी का कोर्स करते समय जीवनशैली में कुछ बदलाव व आहार में परिवर्तन करने की सलाह दी जाती है।

इसके अतिरिक्त कुपोषण के लिए होम्योपैथिक उपचार में कमजोरी को ठीक करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता है। कुपोषण का इलाज करने के लिए उपयोग किए जाने वाले कुछ सामान्य उपाय हैं - एब्रोटेनम, एसिटिकम एसिडम, आर्सेनिकम एल्बम, बैराइटा कार्बोनिका, कैल्केरिया कार्बोनिका, कैल्केरिया फॉस्फोरिका, हेपर सल्फर, हाइड्रैस्टिस कैडेनसिस और आयोडियम।

कुपोषण के लिए होम्योपैथिक दवाएं - Kuposhan ke liye homeopathic medicine

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कुपोषण के लिए होम्योपैथिक दवाएं - Kuposhan ke liye homeopathic medicine

एब्रोटेनम

सामान्य नाम : साउदर्नवुड

लक्षण : एब्रोटेनम को ऐसे व्यक्तियों के लिए अच्छा उपाय माना जाता है जो मरैज्मस (कुपोषण का गंभीर रूप) से ग्रस्त हैं। यह निम्नलिखित लक्षणों को कम करने में भी मदद करता है :

लगातार भूख लगना

भले ही व्यक्ति की भूख अच्छी हो, लेकिन तब भी पतला व कमजोर महसूस करना

रात में पेट में दर्द चुभन वाला दर्द होना

अपच

बिना पचा हुआ भोजन मल के जरिये त्याग करना

मुंह में लसलसापन

मुहासे व चेहरा पतला होना

ठंडी हवा में यह लक्षण बदतर हो जाते हैं, जबकि घूमने से इनमें सुधार होता है।

एसिटिकम एसिडम

सामान्य नाम : ग्लेशियल एसिटिक एसिड

लक्षण : यह उपाय शरीर से कमजोर लोगों के लिए सबसे उपयुक्त है। यह निम्नलिखित लक्षणों को कम करके कुपोषण का इलाज करने में सहाय​क है :

पेट से आवाज आना

पेट का कैंसर

खट्टी डकारें आना

उल्टी

अत्यधिक लार आना (अपच के कारण अचानक लार गिरना)

हाइपरक्लोरहाइड्रिया (पेट में गैस्ट्रिक एसिड सामान्य से अधिक होना)

गैस्ट्रालजिया (पेट या ऊपरी पेट में दर्द)

छाती और पेट में तेज जलन, इसके बाद में त्वचा में ठंडक और माथे पर ठंडा पसीना आना

अल्सर की तरह पेट में जलन होना

किसी भी चीज का सेवन करने के बाद उल्टी होना

कोल्ड ड्रिंक्स का सेवन करने पर गैस संबंधित समस्याएं होना

पेट में जलन के साथ तेज प्यास लगना

कमजोरी व चेहरा पीला पड़ना

आर्सेनिकम एल्बम

सामान्य नाम : आर्सेनिक एसिड, आर्सेनिक ट्राइऑक्साइड

लक्षण : यह उपाय उन लोगों के लिए सबसे उपयुक्त है जो थोड़ी सी भी गतिविधि के बाद बेहद थका हुआ महसूस करते हैं। वे अपने व्यवहार में चिड़चिड़ापन, कमजोरी और जलन का भी अनुभव करते हैं। आर्सेनिकम एल्बम निम्नलिखित लक्षणों को कम करके कुपोषण के इलाज में मदद करता है :

भोजन की गंध महसूस करने में असमर्थता

अत्यधिक प्यास लगना। हालांकि, इस स्थिति में व्यक्ति एक बार में थोड़ी मात्रा में पानी नहीं पी सकता है

पेट में जलन और दर्द

कॉफी, दूध और अम्लीय भोजन करने की इच्छा

जब भी व्यक्ति कुछ खाता या पीता है तो मतली व उल्टी

पेट में गड़बड़ी

लंबे समय तक प्रभावित करने वाला दर्द

पेट में जलन

हरा बलगम, पित्त या खून निकलना

अम्लीय भोजन, आइसक्रीम या बर्फ का ठंडा पानी पीने पर अपच की समस्या

हल्का भोजन करने के बाद भी पेट में समस्या

पेट में दर्द के साथ-साथ थकान व शरीर में तेज ठंडक का अहसास

ऐसा महसूस होना जैसे कुछ भी निगला हुआ फंस गया है। 

ठंडी या नम मौसम में ठंडे भोजन या पेय का सेवन करने और आधी रात को लक्षण बदतर हो जाते हैं। सामान्य रूप से गर्म वातावरण और गर्म पेय लेने के बाद या सिर को थोड़ा ऊंचा रखने पर व्यक्ति बेहतर महसूस करता है।

बैराइटा कार्बोनिका

सामान्य नाम : कार्बोनेट ऑफ बैराइटा

लक्षण : यह उपाय शिशुओं, बूढ़े लोगों और उन लोगों के लिए सबसे उपयुक्त है, जिन्हें अक्सर टॉन्सिल में सूजन की समस्या होती है। यह निम्नलिखित लक्षणों का इलाज करने में मदद करता है :

वाटर ब्रैश (जब कोई व्यक्ति अधिक मात्रा में लार का उत्पादन करता है तो मुंह की लार पेट के एसिड के साथ मिल जाती है और गले में समस्या हो जाती है)

हिचकी

गर्म भोजन करने के बाद पेट के ऊपर दाएं हिस्से में छूने पर दर्द होना

भोजन करने के बाद पेट में भार व दर्द महसूस करना

वृद्ध लोगों में गैस संबंधी समस्याएं

यह सभी लक्षण दर्द वाले हिस्से के बल लेटने और अपनी बीमारी के बारे में अत्यधिक सोचने पर बढ़ जाते हैं। खुली हवा में निकलने पर इन लक्षणों में सुधार होता है।

कैल्केरिया कार्बोनिका

सामान्य नाम : कार्बोनेट ऑफ लाइम

लक्षण : कैल्केरिया कार्बोनिका निम्नलिखित लक्षणों को कम करके कुपोषण के इलाज में मदद करता है :

पेट में जलन

जोर से व खट्टी डकार आना

बहुत अधिक मेहनत करने के बावजूद भूख कम लगना

ठंडा पानी पीने और प्रभावित हिस्से पर दबाव डालने पर पेट में ऐंठन

भूख, जिसमें संतोष न हो

दूध पसंद न करना

पेट के ऊपरी हिस्से में छूने पर दर्द होना

अतिजठराम्लता (पेट में हाइड्रोक्लोरिक एसिड का अत्यधिक स्राव)

यह लक्षण ठंड और नमी वाले मौसम में, थकावट से, खड़े होने पर और पूर्णिमा के दौरान खराब हो जाते हैं। जबकि छींकने, शुष्क मौसम में, दर्द वाले हिस्से के बल लेटने पर इनमें राहत मिलती है।

कैल्केरिया फॉस्फोरिका

सामान्य नाम : फॉस्फेट ऑफ लाइम

लक्षण : कैल्केरिया फॉस्फोरिका एनीमिया से गस्त उन बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त है, जिनका पाचन कमजोर और व्यवहार चिड़चिड़ा होता है। यह उन शिशुओं को भी दिया जाता है, जिन्हें बार-बार उल्टी आ जाती है। यह उपाय निम्नलिखित लक्षणों को कम करके कुपोषण के इलाज में मदद करता है :

अत्यधिक गैस करना

अत्यधिक गैस की समस्या व तेज भूख-प्यास लगना, जिसमें खट्टी डकार से राहत मिलती है।

पेट में जलन

उल्टी, खासकर बच्चों में

यह लक्षण ठंड और नम मौसम में खराब हो जाते हैं, जबकि गर्म और शुष्क वातावरण और गर्मियों में इन लक्षणों से राहत मिलती है

हेपर सल्फर

सामान्य नाम : हैनिमैन कैल्शियम सल्फाइड

लक्षण : यह उपाय ऐसे लोगों के लिए उपयुक्त है, जिन्हें अक्सर झनझनाहट महसूस होती है जैसे कि उनके शरीर के किसी हिस्से पर हवा चल रही हो। यह निम्नलिखित लक्षणों को कम करके कुपोषण का इलाज करने में असरदार है :

वसायुक्त खाद्य पदार्थों को पसंद न करना जबकि तेज गंध वाले, अम्लीय खाद्य पदार्थों और शराब के सेवन की इच्छा करना

बिना गंध या स्वाद के बार-बार डकार आना

पेट का बढ़ना

पेट में जलन

कम या हल्का भोजन करने के बाद भी पेट में दबाव व भारीपन महसूस करना

यह सभी शिकायतें ठंडी और शुष्क हवाओं में, दर्द वाले हिस्से के बल लेटने पर बदतर हो जाते हैं। जबकि नम मौसम, भोजन के बाद, गर्म वातावरण में और जब व्यक्ति अपना सिर लपेटता है तो इनमें सुधार होता है।

हाइड्रैस्टिस कैडेनसिस

सामान्य नाम : गोल्डन सील

लक्षण : यह उपाय उन लोगों में ज्यादातर असरदार है, जिन्हें म्यूकस मेंब्रन (नाक, आंख और मुंह जैसे अंगों की अंदरूनी परत) से मोटे व पीले रंग के स्राव की समस्या होती है। इसके अलावा यह निम्नलिखित लक्षणों को ठीक करके कुपोषण के इलाज में भी सहायता करता है।

पेट की मांसपेशियां कमजोर होने के कारण पाचन कमजोर होना। इसमें व्यक्ति सब्जी या ब्रेड खाने में असमर्थ हो जाता है।

पेट में लगातार दर्द की समस्या

पेट में खालीपन लगना

पेट के ऊपरी और दाईं तरफ धमक वाला दर्द या वाइब्रेट होना

पेट का कैंसर

पेट में अल्सर

पेट की अंदरूनी परतों में सूजन

आयोडियम

सामान्य नाम : आयोडीन

लक्षण : आयोडीन उन लोगों के लिए सबसे उपयुक्त है जो शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हैं और थोड़ा सा काम करने के बाद पसीना आ जाता है। यह निम्नलिखित लक्षणों को कम करके कुपोषण का इलाज करने में मदद करता है :

अत्यधिक भूख और प्यास

किसी समय का भोजन न कर पाने पर परेशान होना

स्वस्थ आहार लेने के बाद भी व्यक्ति का वजन कम होना

पेट में धमक जैसी झनझनाहट

यह लक्षण तब और खराब हो जाते हैं, जब व्यक्ति शांत होता है, गर्म वातावरण में रहता है और दाहिनी तरफ करवट लेकर लेटता है। हालांकि, खुली हवा में चलने के बाद इन लक्षणों में सुधार होता है।

होम्योपैथी के अनुसार कुपोषण के रोगी के लिए आहार और जीवन शैली में बदलाव - Kuposhan ke liye khan pan aur jeevan shaili me badlav

एक स्वस्थ जीवन शैली जीने से न केवल समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि यह होम्योपैथिक उपचार की कार्रवाई को भी बढ़ावा देता है, जिससे व्यक्ति पुन: स्वस्थ हो सकता है। होम्योपैथिक चिकित्सा के जनक डॉ. हैनिमैन ने होम्योपैथिक दवाओं से संपूर्ण चिकित्सीय लाभ प्राप्त करने और अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जीवनशैली में निम्नलिखित बदलाव करने की सलाह दी है :

क्या करना चाहिए

अपने आहार में पौष्टिक खाद्य पदार्थों को शामिल करें।

साफ-सफाई वाले वातावरण में रहें

एक सक्रिय जीवन शैली का पालन करें।

क्या नहीं करना चाहिए

तेज गंध वाली कॉफी, हर्बल चाय, औषधीय जड़ी बूटियों और मसालों से तैयार चीजों का सेवन न करें।

शारीरिक और मानसिक थकान से बचें।

उदासी और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं से खुद को दूर रखें।

कुपोषण के लिए होम्योपैथिक दवाएं और उपचार कितने प्रभावी हैं - Kuposhan ki homeopathic medicine kitni effective hai

होम्योपैथी के समग्र सिद्धांतों (होलिस्टिक प्रिंसिपल) के अनुसार, पोषण संबंधी विकार न केवल पोषक तत्वों की कमी के कारण होते हैं, बल्कि भोजन को अवशोषित और आत्मसात करने में शरीर की अक्षमता के कारण भी होते हैं। ऐसे में होम्योपैथिक उपचार शरीर की प्रणालियों को भोजन से पोषक तत्वों का उपयोग करने में सक्षम बनाते हैं। इसके अलावा होम्योपैथी उपचार लंबे समय तक राहत प्रदान करता है।

हालांकि, कुपोषण के लिए होम्योपैथिक दवाओं के लाभों का अधिक पुष्टिकरण प्रमाण नहीं है, फिर भी कुछ अध्ययन हैं जो ये बताते हैं कि इन उपचारों के जरिए कुपोषण में मदद मिल सकती है।

भारत में किए गए एक पायलट स्टडी (छोटे पैमाने पर किया गया एक शुरुआती अध्ययन, जिसमें मुख्य अध्ययन के महत्वपूर्ण घटकों की जांच की जाती है) से पता चला है कि होम्योपैथिक उपचार एक से चार वर्ष की आयु के बच्चों में कुपोषण के इलाज में प्रभावी हैं, खासकर जब आहार और जीवन शैली में उचित बदलाव कर लिए जाए।

इंडियन जर्नल ऑफ रिसर्च इन होम्योपैथी में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि अल्फाल्फा का उपयोग कुपोषण के साथ-साथ एनीमिया, सिरदर्द, बुखार, अवसाद और सुस्ती जैसी कुछ अन्य स्थितियों के लिए किया जा सकता है।

कुपोषण के लिए होम्योपैथिक दवा के दुष्प्रभाव और जोखिम - Kuposhan ke liye homeopathic medicine ke nuksan

होम्योपैथिक दवाइयां पूरी तरह से प्राकृतिक पदार्थों से अत्यंत घुलनशील रूप में तैयार की जाती हैं। इसलिए इन दवाइयों का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। चूंकि ये दवाएं कम खुराक में ली जाती हैं, इसलिए इन्हें बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, होम्योपैथिक उपचार हमेशा होम्योपैथिक डॉक्टर के अनुसार ही लेना चाहिए तभी इनका सर्वोत्तम लाभ मिल सकेगा।

कुपोषण के होम्योपैथिक उपचार से संबंधित टिप्स - Kuposhan ke liye homeopathic treatment se jude tips

कुपोषण शब्द का प्रयोग पोषक तत्वों की कमी और पोषक तत्वों की अधिकता दोनों के लिए किया जाता है। यह एक ऐसी गंभीर स्थिति है, जिसमें तुरंत उपचार की जरूरत होती है। होम्योपैथिक उपचार के जरिए भूख में सुधार, पाचन समस्याओं को ठीक करने और रोगी के समग्र स्वास्थ्य का ध्यान रखा जा सकता है। होम्योपैथिक उपचार कुपोषण को ठीक करने में न केवल प्रभावी है, बल्कि सुरक्षित भी है। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। कुपोषण के इलाज के लिए होम्योपैथी को अन्य पारंपरिक या प्रमाणित दवाओं के साथ लिया जा सकता है लेकिन, कोशिश करें कि कोई भी उपाय करने से पहले किसी योग्य चिकित्सक से सलाह जरूर लें।


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 KIDNEY STRUCTURE AND FUNCTION किडनी की संरचना किडनी (गुर्दा )मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। किडनी की खराबी, किसी गंभीर बीमारी या मौत का कारण भी बन सकता है। इसकी तुलना सुपर कंप्यूटर के साथ करना उचित है क्योंकि किडनी की रचना बड़ी अटपटी है और उसके कार्य अत्यंत जटिल हैं उनके दो प्रमुख कार्य हैं - हानिकारक अपशिष्ट उत्पादों और विषैले कचरे को शरीर से बाहर निकालना और शरीर में पानी, तरल पदार्थ, खनिजों (इलेक्ट्रोलाइट्स के रूप में सोडियम, पोटेशियम आदि) नियमन करना है। किडनी की संरचना किडनी शरीर का खून साफ कर पेशाब बनाती है। शरीर से पेशाब निकालने का कायॅ मूत्रवाहिनी (Ureter), मूत्राशय (Urinary Bladder) और मूत्रनलिका (Urethra) द्वारा होता है। स्त्री और पुरुष दोनों के शरीर में सामान्यत: दो किडनी होती है। किडनी पेट के अंदर, पीछे के हिस्से में, रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ (पीठ के भाग में), छाती की पसलियों के सुरक्षित तरीके से स्थित होती है । किडनी, पेट के भीतरी भाग में स्थित होती हैं जिससे वे सामान्यतः बाहर से स्पर्श करने पर महसूस नहीं होती। किडनी, राजमा के आकर के एक जोड़ी अंग हैं। वयस्कों में एक...

कैनुला क्या है?कैनुला कैसे लगाते हैं ? Cannulation in Hindi

 कैनुला कैसे लगाते हैं ? Cannulation in Hindi कैनुला क्या है? कैनुला एक पतली ट्यूब है, जिसे शरीर में नसों के जरिए इंजेक्ट किया जाता है, ताकि जरूरी तरल पदार्थ को शरीर से निकाला (नमूने के तौर पर) या डाला जा सके। इसे आमतौर पर इंट्रावीनस कैनुला (IV cannula) कहा जाता है। बता दें, इंट्रावीनस थेरेपी देने के लिए सबसे आम तरीका पेरिफेरल वीनस कैनुलेशन (शरीर के परिधीय नसों में कैनुला का उपयोग करना) है। इंट्रावीनस (नसों के अंदर) प्रबंधन का मुख्य लक्ष्य ऊतकों को नुकसान पहुंचाए बिना, सुरक्षित और प्रभावी ढंग से उपचार प्रदान करना है। जब किसी मरीज का लंबे समय तक उपचार चलता है, तो ऐसे में इंट्रावीनस थेरेपी की विशेष जरूरत पड़ती है। शोध से पता चला है कि जिन मामलों में इंट्रावीनस कैनुला की जरूरत नहीं होती है, उनमें भी इसका प्रयोग किया जाता है, जबकि कुछ मामलों में इसे टाला जा सकता है। जनरल वार्डों में भर्ती 1,000 रोगियों पर हाल ही में एक शोध किया गया, इस दौरान इन सभी मरीजों के नमूने लिए गए। अध्ययन में पाया गया कि लगभग 33% रोगियों में इंट्रावीनस कैनुला का प्रयोग सामान्य से अधिक समय के लिए किया जा रहा है। ...

बिलनी ( गुहेरी ) का होम्योपैथिक मेडिसिन [ Bilni ( Stye )

 बिलनी ( गुहेरी ) का होम्योपैथिक मेडिसिन [ Bilni ( Stye ) Ka Homeopathic Medici बिलनी ( गुहेरी ) का होम्योपैथिक मेडिसिन [ Bilni ( Stye ) Ka Homeopathic Medicine ] ne ] बिलनी ( गुहेरी ) का होम्योपैथिक मेडिसिन  हम सभी की आँखों के ऊपर और नीचे पलकें होती है, इन पलकों में एक ग्रंथि होती है जिसे सिबेसियस ग्रंथि कहा जाता है, जिसका एक बहुत ही महत्वपूर्ण काम होता है। इस ग्रंथि का काम होता है सीबम नमक तेल को बनाये रखना पलकों पर। तेल की वजह से ही हम अपनी पलकें झपका पाते है। इस तेल की कमी से आँखों में सूखापन आ जाता है। यदि इसमें इन्फेक्शन हो जाये तो पलकों में फोड़े-फुंसी बन जाते है इसे ही बिलनी ( गुहेरी ) कहा जाता है। बिलनी आंख के अंदर भी हो सकती है और बाहर भी। यह समस्या बहुत ही आम है और आमतौर पर सभी को हो जाया करती है। यह बिलोनी एक से दो हफ्ते में खुद-ब-खुद ठीक हो जाती है लेकिन कभी-कभी यह ज्यादा दिन तक रह जाता है और कभी-कभी बहुत जल्दी-जल्दी दुबारा होने लगता है। बिलनी होने के कारण बिलनी स्टैफिलोकोकस नामक कीटाणु के कारण होता है। जब यह कीटाणु पलकों के सिबेसियस नामक ग्लैंड से सम्पर्क करती है...