पक्षाघात (स्ट्रोक)
पक्षाघात तब लगता है जब अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे रक्त की आपूर्ति रुक जाती है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है। जिस तरह किसी व्यक्ति के हृदय में जब रक्त आपूर्ति का अभाव होता तो कहा जाता है कि उसे दिल का दौरा पड़ गया है उसी तरह जब मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है या मस्तिष्क में अचानक रक्तस्राव होने लगता है तो कहा जाता है कि आदमी को "मस्तिष्क का दौरा’’ पड़ गया है।
पक्षाघात में आमतौर पर शरीर के एक हिस्से को लकवा मार जाता है। सिर्फ़ चेहरे, या एक बांह या एक पैर या शरीर और चेहरे की पूरी एक ओर लकवा मार सकता है या दुर्बलता आ सकती है।
स्थानिकारकतता (इस्कीमिक स्ट्रोक): मस्तिष्क में अपर्याप्त रक्त आपूर्ति की स्थिति में मस्तिष्क की कोशिकाओं के लिए आक्सीजन और पोषण के अभाव को स्थानिकारक्तता (इस्कीमिक स्ट्रोक) कहा जाता है। स्थानिकारक्तता की वजह से अंततः व्यत्तिक्रम आ जाता है, यानी मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती है; और अंततः क्षतिग्रस्त मस्तिष्क में तरल युक्त गुहिका (भग्न या इंफ़ैक्ट) उनकी जगह ले लेती है। जिस व्यक्ति के मस्तिष्क के बाएं गोलार्द्ध (हेमिस्फीयर) में पक्षघात लगता है उसके दाएं अंग मे लकवा मारता है या अर्धांग होता है और जिस व्यक्ति के मस्तिष्क के दाएं हेमिस्फीयर में आघात लगता है उसका बायां अंग अर्धांग का शिकार होता है।
जब मस्तिष्क में रक्तप्रवाह बाधित होता है तो मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं तुरंत मर जाती हैं और शेष कोशिकाओं के मरने का खतरा पैदा हो जाता है। समय पर दवाइयां देकर क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को बचाया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने पता लगा लिया है कि आघात के शुरू होने के तीन घंटे के भीतर खून के थक्कों को घोलने वाले एजेंट टिश्यू प्लाज़्मिनोजेन एक्टिवेटर (टी-पीए) देकर इन कोशिकाओं में रक्त आपूर्ति बहाल की जा सकती है। शुरुआती हमले के बाद शुरू होने वाली क्षति की लहर को रोकने वाली बहुत-सी न्यूरोप्रोटेक्टव दवाइयों पर परीक्षण चल रहे हैं।
मस्तिष्काघात को हमेशा से लाइलाज समझा जाता रहा है। इस नियतिवाद के साथ एक और धारणा जुड़ी थी कि मस्तिष्काघात सिर्फ़ उम्रदराज़ लोगों को ही होता है इसलिए चिंता का विषय नहीं है।
इन भ्रांतियों का ही नतीजा है कि मस्तिष्काघात के औसत मरीज बारह घंटे के इंतज़ार के बाद आपात चिकित्सा कक्ष में पहुंचते हैं। स्वास्थ्य सुरक्षा सेवाओं के प्रदाता आपात चिकित्सकीय स्थिति मानकर पक्षाघात का इलाज करने के बजाय "सतकर्तापूर्ण प्रतीक्षा’’ का रवैया अख़्तियार करते हैं।
"मस्तिष्क का आघात’’ जैसे शब्द के इस्तेमाल के साथ पक्षाघात को एक निश्चयात्मक-विवरणात्मक नाम मिल गया है। पक्षाघात के शिकार व्यक्ति और चिकित्सकीय समुदाय दोनों की तरफ से आपात कार्रवाई मस्तिष्क के दौरे का उपयुक्त जवाब है। जनता का पक्षाघात को मस्तिष्क के दौरे के रूप में लेने और आपात चिकित्सा का सहारा लेने की शिक्षा देना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि पक्षाघात के लक्षण दिखने शुरू होने के क्षण से आपात संपर्क के क्षण तक बीतने वाला हर पल चिकित्सकीय हस्तक्षेप की सीमित संभावना को कम करता जाता है।
लक्षण
पक्षाघात के लक्षण आसानी से पहचान में आ जाते हैं: आकस्मिक स्तब्धता या कमज़ोरी, ख़ासतौर से शरीर के एक हिस्से में; आकस्मिक उलझन या बोलने, किसी की कही बात को समझने, एक या दोनों आंखों से देखने में आकस्मिक तकलीफ़, अचानक या सामंजस्य का अभाव, बिना किसी ज्ञात कारण के अचानक सिरदर्द या चक्कर आना। चक्कर आने या सिरदर्द होने के दूसरे कारणों की पड़ताल के क्रम में भी पक्षाघात का निदान हो सकता है। ये लक्षण संकेत देते हैं कि पक्षाघात हो गया है और तत्काल चिकित्सकीय देखभाल प्राप्त करने की ज़रूरत है। जोखिम के कारक उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, डाइबिटीज और धूम्रपान पक्षाघात का जोखिम पैदा करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं। इनके अलावा शराब का अत्यधिक सेवन, उच्च रक्त कॉलेस्टेराल स्तर, नशीली दवाइयों का सेवन, आनुवांशिक या जन्मजात परिस्थितियां, विशेषकर रक्त परिसंचारी तंत्र के विकार।
शीध्र स्वास्थ्यलाभ
इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं थी कि मस्तिष्क पक्षाघात या मस्तिष्क के दौरे से होने वाली क्षति की भरपाई कर लेता है। मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं मरी नहीं होती बल्कि क्षतिग्रस्त हुई होती हैं और फिर से काम करना शुरू कर सकती हैं। कुछ मामलों में मस्तिष्क खुद ही अपने काम-काज का पुनर्संयोजन कर सकता है। कभी-कभार मस्तिष्क का कोई हिस्सा क्षतिग्रस्त हिस्से का काम संभाल लेता है। पक्षाघात के पर्यवेक्षक कई बार उल्लेखनीय और अनपेक्षित स्वास्थ्य लाभ होते देखते हैं जिनकी व्याख्या नहीं की जा सकती।
स्वास्थ्यलाभ के सामान्य सिद्धांत दर्शाते हैं:
पक्षाघात के 10 प्रतिशत उत्तरजीवी लगभग पूरी तरह भले-चंगे हो जाते हैं
25 प्रतिशत कुछ मामूली विकृति के साथ भले-चंगे हो जाते हैं
40 प्रतिशत हल्की से लेकर गंभीर विकलांगता के शिकार हो जाते हैं और उन्हें विशेष देख-रेख की ज़रूरत पड़ती है
10 प्रतिशत की नर्सिंगहोम में, या दीर्घकालिक देख-रेख करने वाली दूसरी सुविधाओं में रख कर उनकी देखभाल करनी पड़ती है
15 प्रतिशत पक्षघात के उत्तरजीवी कुछ ही समय बाद मर जाते हैं।
पुनर्सुधार
पुनर्सुधार पक्षाघात होने के तुरंत बाद जितनी जल्दी संभव होता है, अस्पताल में ही शुरू हो जाता है। ऐसे मरीजों का पुनर्सुधार पक्षाघात के दो दिन बाद शुरू होता है जिनकी हालत स्थिर होती है। और अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी ज़रूरत के लिहाज़ से उसे जारी रखा जाना चाहिए। पुनर्सुधार के विकल्पों में किसी अस्पताल की पुनर्सुधार इकाई, कोई सबएक्यूट केयर यूनिट, कोई पुनर्सुधार अस्पताल, घरेलू चिकित्सा, अस्पताल के बहिरंग विभाग में देख-रेख, किसी नर्सिंग फैसिलिटी में लंबे समय तक परिचर्या शामिल हो सकती है।
पुनर्सुधार का मकसद क्रिया-कलापों में सुधार लाना होता है ताकि पक्षाघात का उत्तरजीवी जहां तक संभव हो स्वतंत्र जीवन जी सके। पक्षाघात के उत्तरजीवी को फिर खाना खाने, कपड़े पहनने और चलने जैसे मूलभूत काम सिखाने का काम इस तरह किया जाना चाहिए ताकि व्यक्ति की मानवीय गरिमा बनी रहे। हालांकि पक्षाघात शरीर का रोग है लेकिन वह व्यक्ति के पूरे शरीर को प्रभावित कर सकता है। पक्षाघात जन्य विकलांगताओं में लकवा, संज्ञानात्मक कमियां, बोलने में परेशानी, भावानात्मक परेशानियां, रोज़मर्रा के जीवन की समस्याएं और दर्द शामिल होता है।
पक्षाघात सोचने, समझने, एकाग्रता सीखने, फैसले लेने, और याददाश्त संबंधी समस्या पैदा कर सकता है। पक्षाघात का मरीज अपने परिवेश से अनजान हो सकता/सकती है या पक्षाघात जन्य मानसिक एकाग्रता से भी अनजान हो सकता/सकती है।
पक्षाघात पीड़ितों को प्रायः किसी की कही बात को समझने या अपनी बात कहने में भी परेशानी हो सकती है। भाषा संबंधी समस्याएं प्रायः मस्तिष्क के बाएं टेंपोरल और पेरिएटल खंडों को पक्षाघात से लगे आघात का नतीज़ा होती हैं।
पक्षाघात भावनात्मक समस्याएं भी पैदा कर सकता है। पक्षाघात के मरीज़ों को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में परेशानी होती है या वे खास स्थितियों में अनुचित भावनाएं व्यक्त कर सकते हैं। बहुत-से पक्षाघात पीड़ितों में होने वाली एक आम विकलांगता है अवसाद...... पक्षाघात की घटना से उत्पन्न आम उदासी से कहीं ज़्यादा पक्षाघात के मरीज दर्द सहते हैं। कष्टकर अवसन्नता या अजीब-सी अनुभूति का अनुभव कर सकते हैं। ये अनुभूतियां मस्तिष्क के संवेदी हिस्सों को पहुंची क्षति, जोड़ों की जकड़न या हाथ-पैरों की विकलांगता-जैसे बहुत-से कारकों का नतीजा हो सकती हैं।
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