सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

DIALYSIS,डायलिसिस क्या है?

 डायलिसिस क्या है?



हमारी किडनी रक्त से अतिरिक्त अपशिष्ट पदार्थ व पानी निकालती है। वे ऐसे हॉर्मोन का स्त्राव भी करती हैं जो रक्त चाप को नियंत्रित करते हैं और शरीर में अम्ल व क्षार का संतुलन बनाए रखती है। जब किडनी ठीक तरह से कार्य नहीं करती है तो शरीर में अपशिष्ट पदार्थों का जमाव हो सकता है जो कि हानिकारक है। डायलिसिस एक ट्रीटमेंट की प्रक्रिया है, जिसमें किडनी के सारे कार्य किए जाते हैं जैसे शरीर से अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त पानी को निकालना। यह दो तरह से की जाती है - हेमोडायलिसिस (इसे हीमोडायलिसिस के नाम से भी जाना जाता है) और पेरिटोनियल डायलिसिस। हेमोडायलिसिस में ए-वी फिस्टुला से शरीर के बाहर लगे डायलिसिस मशीन में रक्त दो सुईओं की मदद से निकाला जाता है जिसमें रक्त फ़िल्टर हो कर वापस शरीर में चला जाता है। पेरिटोनियल डायलिसिस में कैथिटर को पेट के अंदर मौजूद पेरिटोनियल स्पेस में डाला जाता है जो कि पेरिटोनियल मेम्ब्रेन से ढका हुआ होता है। इसके बाद डायलिसिस द्रव को ट्यूब के अंदर डाला जाता है, जिसमें निकाले गए रक्त को फ़िल्टर किया जाता है। डायलिसिस के बाद इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप क्या खाते हैं और क्या पीते हैं। एक डायटीशियन द्वारा आपकी डाइट तय की जाएगी। डायलिसिस के बाद कुछ जटिलताएं भी हो सकती हैं जैसे संक्रमण, वजन बढ़ना, सूजन आदि जिनका ध्यान दवाओं या फिर सर्जरी द्वारा रखा जा सकता है।


किडनी मूत्राशय तंत्र के सबसे महत्वपूर्ण भाग है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में दो किडनी होती हैं जो कि कमर के विपरीत हिस्सों और छाती के नीचे मौजूद होती है। यूरिनरी सिस्टम में अन्य जरूरी भाग युरेटर होते हैं जो कि संख्या में दो होते हैं और किडनी को यूरिनरी ब्लैडर से जोड़ते हैं जहां शरीर का सारा यूरिन संचित होता है। स्वस्थ किडनी शरीर से सारे अपशिष्ट पदार्थ को फ़िल्टर करती है और अतिरिक्त पानी को निकाल कर यूरिन बनाती है। साथ ही किडनी कुछ जरूरी हार्मोन भी बनाती है जैसे एरीथ्रोपोएटिन, कैल्सिट्रिओल और रेनिन जो कि रक्तचाप, हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए कैल्शियम का अवशोषण और लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण को नियंत्रित करते हैं।


जब आपकी किडनी कुछ कारणों से ठीक तरह से कार्य नहीं कर पाती हैं तो इससे शरीर में अपशिष्ट पदार्थ और अत्यधिक पानी जमा हो सकता है। ऐसे मामलों में डायलिसिस किया जाता है जब व्यक्ति के शरीर में अत्यधिक पानी, अपशिष्ट या विषाक्त पदार्थ जमा हो जाते हैं और उन्हें रक्त से  निकालना पड़ता है।


डायलिसिस क्यों किया जाता है - Dialysis kab kiya jata hai

डायलिसिस होने से पहले की तैयारी - Dialysis ki taiyari

डायलिसिस कैसे किया जाता है - Dialysis kaise hota hai

डायलिसिस के बाद देखभाल - Dialysis hone ke baad dekhbhal

डायलिसिस की जटिलताएं - Dialysis me jatiltaye

वैजिनोप्लास्टी 

ओवरी को हटाने के दुष्प्रभाव 

क्रायोसर्जरी 

मोतियाबिंद का ऑपरेशन 

बवासीर का लेजर ऑपरेशन 

सी-सेक्शन (सिजेरियन ऑपरेशन) 


डायलिसिस क्यों किया जाता है - Dialysis kab kiya jata hai

किडनी यूरिन के रूप में शरीर के अतिरिक्त फ़िल्टर हुए पानी को निकालती है। ये नमक और खनिजों को संतुलित करने में भी मदद करते हैं जैसे कैल्शियम, फास्फोरस, सोडियम और पोटेशियम। जब किडनी ठीक तरह से कार्य नहीं कर पाती हैं, जो कि किडनी फेलियर या किसी अन्य किडनी रोग की स्थिति में हो सकता है तो शरीर में अपशिष्ट पदार्थ व पानी जमा होने लगता है। इस समय पर डायलिसिस की जरूरत पड़ती है, जिसे रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी भी कहा जाता है। रीनल फेलियर के कारण रक्त फ़िल्टर नहीं हो पाता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं जैसे एनीमिया, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और खनिज के अवशोषण की प्रक्रिया खराब होने के कारण हड्डियां भी प्रभावित हो सकती हैं।


किडनी रोग भिन्न तरह के हो सकते हैं जैसे एक्यूट (जो तीव्रता से होते हैं) और क्रोनिक (लंबे समय तक रहते हैं) जिनका यदि इलाज नहीं किया जाए तो उनसे किडनी फेलियर भी हो सकता है। डायलिसिस की मदद से किडनी फेल होने से बचाई जा सकती है। एक्यूट किडनी रोगों के ट्रीटमेंट के बाद किडनी वापस सामान्य हो सकती है। एक बार जब यह हो जाता है तो डायलिसिस को बंद किया जा सकता है। हालांकि, अंतिम अवस्था और क्रोनिक किडनी रोगों में व्यक्ति के ठीक होने की संभावना कम होती है और केवल डायलिसिस ही अंतिम उपाय बचता है।


डायलिसिस होने से पहले की तैयारी - Dialysis ki taiyari

डायलिसिस शुरू होने से पहले सर्जन द्वारा एक छोटी सर्जरी की जाती है, जो कि इस बात पर निर्भर करती है कि मरीज को कौन से प्रकार से डायलिसिस दिया जाएगा।


डायलिसिस दो तरह का होता है -


हेमोडायलिसिस - इसमें, ऐ-वी फिस्ट्यूला (एक जोड़ जहां धमनी और नस मिलती हैं) सर्जरी के द्वारा बनाया जाता है।

पेरिटोनियल डायलिसिस - इसमें पेट के अंगों व पेट की दीवार को ढकने वाली मेम्ब्रेन के बीच में सर्जरी द्वारा एक स्पेस बनाया जाता है और उसमें कैथीटर को लगाया जाता है।

सर्जरी करवाने से पहले आपको कुछ टेस्ट करवाने के लिए कहा जाएगा, जैसे -


सर्जरी से पहले किए जाने वाले टेस्ट - इनमें एक्स रे, इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग, कम्पलीट ब्लड काउंट, यूरिन टेस्ट और किडनी से जुड़े अन्य टेस्ट आदि शामिल हैं। एचआईवी टेस्ट, हेपेटाइटिस सी टेस्ट की सलाह भी डॉक्टर द्वारा दी जा सकती है।


सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच - सुन्न करने की दवा का चुनाव सर्जरी के प्रकार पर निर्भर करता है। सुन्न करने की दवा सर्जरी से पहले दी जाती है ताकि मरीज को सर्जरी के दौरान दर्द महसूस न हो। आपको सर्जरी से 6-12 घंटे पहले भूखे रहने को कहा जा सकता है, क्योंकि सर्जरी के दौरान भोजन वापस से भोजन नली में आ सकता है।


सर्जरी से पहले जानने वाली बातें -


आपको डायलिसिस से पहले होने वाली सर्जरी के बारे में डॉक्टर से बातचीत कर लेनी चाहिए। डॉक्टर आपको इससे जुड़े खतरे और जटिलताओं के बारे में बता देंगे। आपको यह भी बताया जाएगा कि सर्जरी किस तरह डायलिसिस के ट्रीटमेंट में मदद करेगी।

डॉक्टर को अपने स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पूरी जानकारी दें। यदि आप हाल ही में कोई दवाएं ले रहे हैं तो इसके बारे में डॉक्टर को बताएं, विशेषकर अगर आप रक्त को पतला करने वाली दवाएं ले रहे हैं। अगर आपने पहले कोई सर्जरी करवाई है जैसे सी-सेक्शन सर्जरी तो इसके बारे में भी डॉक्टर को सूचित करें।

यदि आप शराब पीते हैं, तम्बाकू खाते हैं तो इसके बारे में भी डॉक्टर को बता दें।

जो भी दवाएं डॉक्टर ने सर्जरी से पहले लेने के लिए कहा है, उन्हें नियमित रूप से लेते रहे जैसे पेट में अतिरिक्त एसिड उत्पादन के प्रभावों को बेअसर करने के लिए एंटासिड, संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए और संक्रमण से बचने के लिए  एंटीबायोटिक, सर्जरी से पहले दर्द को कम करने के लिए पेन किलर।

आपको अस्पताल में एक विशेष गाउन जैसी ड्रैस पहनने को कहा जाएगा। सर्जरी के दौरान आपको एक चादर से ढका जाएगा और केवल वही भाग खुला होगा जहां सर्जरी होनी है।

सर्जरी के दिन आप अपने किसी परिवारजन या मित्र को अस्पताल लेकर आएं।

आपको मानसिक व शारीरिक रूप से तनाव मुक्त रहने की सलाह दी जाएगी।

आप सर्जरी से पहले शराब न पिएं और ना ही धूम्रपान या तंबाकू का सेवन करें, क्योंकि इनसे सर्जरी के सफल होने की संभावना कम हो जाएगी।

डायलिसिस कैसे किया जाता है - Dialysis kaise hota hai

डायलिसिस के प्रकारों के अनुसार उन्हें करने के तरीके भी अलग-अलग हो सकते हैं, जैसे -


हेमोडायलिसिस - यह एक प्रक्रिया है जिसमें रक्त को फ़िल्टर कर के उसमें से अपशिष्ट पदार्थों व अतिरिक्त पानी को निकाल दिया जाता है। यह प्रक्रिया निम्न तरह से की जाती है -


इस ट्रीटमेंट में रक्त को शरीर से बाहर एक फ़िल्टर में निकाला जाता है जिसे डायलाइज़र कहा जाता है।

ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले नर्स दो सुईओं को आपकी बांह में से ए-वी फिस्ट्यूला में लगाती है यह वह जोड़ होता है, जहां धमनी और नस जुड़ी हुई होती हैं। यह एक सर्जन द्वारा सर्जरी से पहले मरीज के शरीर में बना दिया जाता है।

इस भाग को नम्बिंग क्रीम या सुन्न करने वाले स्प्रे से सुन्न कर दिया जाता है। 

एक सुई धमनी में लगाई जाती है जहां से धमनी का रक्त बाहर निकलता है और दूसरी सुई एक नस में लगाई जाती है जहां से फ़िल्टर हुआ रक्त शरीर में जाता है।

दोनों ही नसें एक ट्यूब से जुड़ी होती हैं जो कि लंबी व पतली होती है। यह रक्त को शरीर के बाहर लगी हुई डायलिसिस मशीन तक ले जाती हैं।

यह डायलिसिस की मशीन इसके बाद रक्त को फ़िल्टर में भेजकर इसे साफ करती है। डायलिसिस की मशीन में पतले फाइबर लगे होते हैं, जो रक्त से अतिरिक्त पानी और अपशिष्ट पदार्थ निकाल देते हैं।

फ़िल्टर में डायलाइजिंग सोल्यूशन भी होता है। अपशिष्ट पदार्थ डायलाइजिंग सोल्यूशन में जाते हैं और जिस धारा से रक्त ट्यूब में आ रहा होता है उसकी विपरीत धारा में रक्त को भेजता है।

डायलिसिस मशीन में ब्लड प्रेशर को मापने के लिए मॉनिटर भी होते हैं। ये मॉनिटर ट्यूब में आ रहे रक्त के प्रवाह के दबाव की जांच करते हैं।

यह प्रक्रिया पूरी तरह दर्दरहित है, लेकिन इस दौरान आपको बीमार महसूस हो सकता है या फिर आपको मतली हो सकती है।

रक्त के घटकों में बार-बार बदलाव होने के कारण आपको मांसपेशियों में ऐंठन हो सकती है। जब डॉक्टर या नर्सों की मदद से आप एवी फिस्ट्यूला में सुई लगाना सीख जाते हैं तो यह प्रक्रिया घर पर भी की जा सकती है।

कुछ डायलिसिस की मशीनें घर पर प्रयोग के लिए भी बाजार में मौजूद हैं। इससे आपको घर पर आसानी से डायलिसिस करने में मदद मिलती है। ज्यादातर जिन लोगों को हफ्ते में तीन बार तक डायलिसिस करना पड़ता है, उनके लिए यह काफी फायदेमंद हो सकती है।

पेरिटोनियल डायलिसिस -


यह एक ऐसा ट्रीटमेंट है, जिसके द्वारा विषाक्त पदार्थ और अतिरिक्त पानी को हटाकर रक्त को फ़िल्टर किया जाता है। इस प्रकार के डायलिसिस में, रक्त को शरीर के अंदर फ़िल्टर किया जाता है, जिसमें रक्त को पेरिटोनियम नामक प्राकृतिक झिल्ली में से निकाला जाता है। पेरिटोनियम आंतरिक पेट की दीवार के बीच की जगह को रेखाबद्ध करता है और पेट में विभिन्न अंगों को कवर करता है, जैसे लिवर, प्लीहा और आंत। पेरिटोनियम में रक्त का प्रवाह बहुत अधिक होता है। 


पेरिटोनियल डायलिसिस दो तरह का होता है -


कन्टीन्यूअस एम्ब्यूलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस (सीएपीडी)

ऑटोमेटेड पेरिटोनियल डायलिसिस (एपीडी)

पेरिटोनियल डायलिसिस से पहले की तैयारी


पेरिटोनियल परत द्वारा ढके हुए भाग में 0.5 सेमी लंबी एक पतली व चौड़ी ट्यूब (जिसे कैथीटर कहा जाता है) डाली जाएगी। इस पतली ट्यूब का एक भाग शरीर के बाहर ही रखा जाता है, जिसे दो अलग बैग से जोड़ा जाता है। एक बैग में वह विशेष द्रव होता है जिसे ट्यूब में पुश कर के डाला जाता है और रक्त में मौजूद अपशिष्ट पदार्थ इससे निकल कर विशेष द्रव में आ जाते हैं। द्रव को अंदर डालने व वापस लेने की इस प्रक्रिया को एक्सचेंज कहा जाता है। हर बार प्रक्रिया के बाद नए बैग की जरूरत होती है।


कन्टीन्यूअस एम्ब्यूलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस


इस पेरिटोनियल डायलिसिस में रक्त को दिन में कम से कम चार बार फ़िल्टर किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में 30 मिनट का समय लगता है और एक बार ट्रेनिंग मिलने के बाद आप यह खुद भी कर सकते हैं। हर एक्सचेंज प्रक्रिया के बाद आप रोजाना की प्रक्रिया पर लौट सकते हैं और अपनी सामान्य गतिविधियां कर सकते हैं। दिन में भिन्न समय में आप चार बार यह प्रक्रिया दोहरा सकते हैं जैसे एक सुबह, दोपहर में, शाम को और आखिरी रात में। प्रत्येक एक्सचेंज के बाद बैग को हटाना होगा और ट्यूब को ठीक तरह से सील करना होगा।


ऑटोमेटेड पेरिटोनियल डायलिसिस


इस पेरिटोनियल डायलिसिस में रक्त को तब फ़िल्टर किया जाता है, जब आप सो रहे होते हैं इसमें लगभग 8 से 10 घंटे का समय लगता है। पेरिटोनियल स्पेस में लगाई गई पतली ट्यूब को एक मशीन से जोड़ा जाता है। जब आप सो रहे होते हों तो कई सारे एक्सचेंज रात में होते हैं, आमतौर पर तीन से पांच। डायलेट के रूप में जाना जाने वाला एक द्रव अंदर रखा जाता है, जहां अपशिष्ट पदार्थ निकलते जाते हैं। इसके बाद यह द्रव शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।


अस्पताल के ऊपर निर्भर करते हुए डायलिसिस की फीस 30,000 रुपये तक हो सकती है। कुछ अस्पताल यह घर पर भी कर देते हैं, जिसका खर्चा कम आता है जो 20,000 प्रति माह तक हो सकता है।


डायलिसिस के बाद देखभाल - Dialysis hone ke baad dekhbhal

डायलिसिस के बाद देखभाल


डायलिसिस के बाद सबसे अहम है, अपनी डाइट का ध्यान रखना। यह बेहद जरूरी है कि आपको पता हो आपको क्या और कितनी मात्रा में खाना-पीना है। 

डाइट इस बात पर निर्भर करती है कि आपको किस तरह का ट्रीटमेंट दिया जा रहा है। आपके डायटीशियन बताएंगे कि आपको किस मात्रा में कौन से प्रकार के पोषक तत्व कब लेने हैं।

एक अच्छा व संतुलित आहार उन सभी पोषक तत्वों की पूर्ति कर सकता है, जो ट्रीटमेंट के दौरान शरीर से निकल गए हैं। हालांकि, आपको बहुत सारे पोषक तत्व भी नहीं लेने हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत सारे पोषक तत्व शरीर में इकट्ठे हो जाएंगे क्योंकि, किडनी ठीक तरह से कार्य नहीं कर रही है। 

पानी की मात्रा का भी ध्यान रखना होगा। शरीर में अतिरिक्त पानी का जमाव हो सकता है, जिसके कारण आपको उच्च रक्तचाप, सूजन आदि समस्याएं हो सकती हैं। 

आहार में नमक की मात्रा पर भी नियंत्रण रखा जाना चाहिए। 

ऐसे भोज्य पदार्थ जिनमें खनिज, पोटेशियम, फास्फोरस ज्यादा है जैसे मछली, फली, मांस और डेरी पदार्थ जैसे दूध और दही को आहार में शामिल नहीं करना है।

डायलिसिस की जटिलताएं - Dialysis me jatiltaye

हेमोडायलिसिस की जटिलताएं


हेमोडायलिसिस की कुछ जटिलताएं हो सकती हैं, जैसे -


संक्रमण

मांसपेशियों में ऐंठन

निम्न रक्तचाप

द्रव का अत्यधिक बढ़ जाना

हाइपरकैलमिया (पोटैशियम की रक्त में अत्यधिक मात्रा)

डायलाइज़र की प्रतिक्रिया (वह द्रव जो डायलिसिस के लिए प्रयोग किया जाता है)

त्वचा में खुजली

सोने में तकलीफ

चिंता

मुंह में सूखापन

उपरोक्त खतरों के बारे में आप डॉक्टर से ट्रीटमेंट व मैनेजमेंट से पहले बातचीत कर लें। 


पेरिटोनियल डायलिसिस के खतरे


पेरिटोनिटिस - इसे पेरिटोनियम की सूजन कहा जाता है। पेरिटोनियम पेट की दीवार को कहा जाता है। पेरिटोनियल डायलिसिस के दौरान प्रयोग में लाए जा रहे उपकरणों के साफ और कीटाणुरहित न होने के कारण भी पेरिटोनिटिस हो सकता है। इसे एंटीबायोटिक्स (कीटाणुओं को मारने के लिए) और एंटी इंफ्लेमेटरी (सूजन को कम करने के लिए) दवाओं से ठीक किया जा सकता है।

वजन बढ़ना

जिस जगह से द्रव बाहर आ रहा है वहां संक्रमण

कैथिटर (वह ट्यूब जो पेरिटोनियल स्पेस में लगाई जाती है) का ठीक तरह न लग पाना

इंट्रा-एब्डोमिनल ऐडहेसन (पेट की आंतरिक दीवार और पेट के अंगों को ढकने वाली परत पर स्कार टिशू बनना)

ट्यूब में द्रव के लंबे समय तक होने के कारण पेट में अत्यधिक गांठों का बन जाना जिसके कारण पेट की मांसपेशियां खिंच सकती हैं

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कैनुला क्या है?कैनुला कैसे लगाते हैं ? Cannulation in Hindi

 कैनुला कैसे लगाते हैं ? Cannulation in Hindi कैनुला क्या है? कैनुला एक पतली ट्यूब है, जिसे शरीर में नसों के जरिए इंजेक्ट किया जाता है, ताकि जरूरी तरल पदार्थ को शरीर से निकाला (नमूने के तौर पर) या डाला जा सके। इसे आमतौर पर इंट्रावीनस कैनुला (IV cannula) कहा जाता है। बता दें, इंट्रावीनस थेरेपी देने के लिए सबसे आम तरीका पेरिफेरल वीनस कैनुलेशन (शरीर के परिधीय नसों में कैनुला का उपयोग करना) है। इंट्रावीनस (नसों के अंदर) प्रबंधन का मुख्य लक्ष्य ऊतकों को नुकसान पहुंचाए बिना, सुरक्षित और प्रभावी ढंग से उपचार प्रदान करना है। जब किसी मरीज का लंबे समय तक उपचार चलता है, तो ऐसे में इंट्रावीनस थेरेपी की विशेष जरूरत पड़ती है। शोध से पता चला है कि जिन मामलों में इंट्रावीनस कैनुला की जरूरत नहीं होती है, उनमें भी इसका प्रयोग किया जाता है, जबकि कुछ मामलों में इसे टाला जा सकता है। जनरल वार्डों में भर्ती 1,000 रोगियों पर हाल ही में एक शोध किया गया, इस दौरान इन सभी मरीजों के नमूने लिए गए। अध्ययन में पाया गया कि लगभग 33% रोगियों में इंट्रावीनस कैनुला का प्रयोग सामान्य से अधिक समय के लिए किया जा रहा है। जबकि

Pleural Effusion in Hindi

 फुफ्फुस बहाव - Pleural Effusion in Hindi प्लूरल इफ्यूजन एक ऐसी स्थिति है, जिसमें फेफड़ों के बाहर असामान्य मात्रा में द्रव इकट्ठा हो जाता है। ऐसे कई रोग हैं जिनके कारण यह समस्या होने लग जाती है और ऐसी स्थिति में फेफड़ों के आस-पास जमा हुऐ द्रव को निकालना पड़ता है। इस इस स्थिति के कारण के अनुसार ही इसका इलाज शुरु करते हैं।  प्लूरा (Pleura) एक पत्ली झिल्ली होती है, जो फेफड़ों और छाती की अंदरुनी परत के बीच में मौजूद होती है। जब फुफ्फुसीय बहाव होता है, प्लूरा की परतों के बीच की खाली जगह में द्रव बनने लग जाता है। सामान्य तौर पर प्लूरा की परतों के बीच की खाली जगह में एक चम्मच की मात्रा में द्रव होता है जो आपके सांस लेने के दौरान फेफड़ों को हिलने में मदद करता है। फुफ्फुस बहाव क्या है - What is Pleural Effusion in Hindi प्लूरल इफ्यूजन के लक्षण - Pleural Effusion Symptoms in Hindi फुफ्फुस बहाव के कारण व जोखिम कारक - Pleural Effusion Causes & Risk Factors in Hindi प्ल्यूरल इफ्यूजन से बचाव - Prevention of Pleural Effusion in Hindi फुफ्फुस बहाव का परीक्षण - Diagnosis of Pleural Effusion in Hind

शीघ्रपतन की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment for Premature Ejaculation in Hindi

 शीघ्रपतन की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment for Premature Ejaculation in Hindi शीघ्र स्खलन एक पुरुषों का यौन रोग है, जिसमें दोनों यौन साथियों की इच्छा के विपरीत सेक्स के दौरान पुरुष बहुत जल्दी ऑर्गास्म पर पहुंच जाता है यानि जल्दी स्खलित हो जाता है। इस समस्या के कारण के आधार पर, ऐसा या तो फोरप्ले के दौरान या लिंग प्रवेश कराने के तुरंत बाद हो सकता है। इससे एक या दोनों साथियों को यौन संतुष्टि प्राप्त करने में परेशानी हो सकती है। स्खलन को रोक पाने में असमर्थता अन्य लक्षणों जैसे कि आत्मविश्वास में कमी, शर्मिंदगी, तनाव और हताशा आदि को जन्म दे सकती है। ज्यादातर मामलों में, हो सकता है कि स्खलन को नियंत्रित करने में असमर्थता किसी जैविक कारण से न पैदा होती हो, हालांकि उपचार के किसी भी अन्य रूप की सिफारिश करने से पहले डॉक्टर इसकी संभावना का पता लगाते हैं। तनाव, चिंता, अवसाद, यौन अनुभवहीनता, कम आत्मसम्मान और शरीर की छवि जैसे मनोवैज्ञानिक कारक शीघ्र स्खलन के सबसे आम कारण हैं। विशेष रूप से सेक्स से संबंधित अतीत के दर्दनाक अनुभव भी शीघ्र स्खलन का संकेत दे सकते हैं। अन्य