मानव शरीर जिन 5 तत्वों से मिलकर बना है, उसमें जल प्रमुख है। हमारे शरीर का दो तिहाई हिस्सा जल से बना है पर क्या आपको पता है कि आज जलजनित रोग ही हमारे शरीर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचा रहे हैं? ये सही है कि हर कदम पर इंसान इन रोगों की वजह से बेबस हो रहा है। पर इंसान को ये भी सोचना चाहिए कि अगर जल आज जीवन की जगह मृत्यु बाँट रहा है तो उसके लिये जवाबदेह भी तो हम इंसान ही हैं।यूँ तो कहावतों में भी है, ‘जल ही जीवन है।’ जल के बिना धरती पर मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मनुष्य चाँद से लेकर मंगल तक की सतह तक पानी तलाशने की कवायद में लगा है, ताकि वहाँ जीवन की संभावनाएँ तलाशी जा सकें लेकिन, क्या धरती पर रहने वाले हम पानी के वास्तविक मूल्य को समझते हैं?
2011 की जनगणना के अनुसार राष्ट्रीय स्वच्छता कवरेज 46.9 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह औसत केवल 30.7 प्रतिशत है। अभी भी देश की 62 करोड़ 20 लाख की आबादी यानि राष्ट्रीय औसत 53.1 प्रतिशत लोग खुले में शौच जाते हैं। इन आँकड़ों में सिर्फ ग्रामीण ही नहीं, बल्कि शहरी क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है। ये जल प्रदूषण की अहम वजह है। हालाँकि सरकार की ओर से स्वच्छता अभियान के तहत इस समस्या के समाधान का प्रयास किया जा रहा है। वास्तव में जल का शुद्ध होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके माध्यम से ही पूरे शरीर में पोषक तत्व जैसे कि विटामिन, मिनरल और ग्लूकोज प्रभावित होते हैं। ऐसे में अगर शरीर को स्वच्छ जल न मिले तो शरीर स्वस्थ कैसे रहेगा?
वैसे भी स्वस्थ मनुष्य को हर दिन कम से कम 12 गिलास शुद्ध जल ग्रहण करना चाहिए। कई लोगों की नजर में पानी की शुद्धता जरूरी नहीं होती। लेकिन आपकी यह सोच आपके और आपके परिवार के लिये खतरनाक साबित हो सकती है। नहाने के पानी से लेकर पीने के पानी तक की शुद्धता मायने रखती है। जहाँ अशुद्ध पानी से त्वचा सम्बन्धी बीमारियों को न्यौता मिलता है। अगर आँकड़ों की मानें, तो पीने के पानी में लगभग 2100 विषैले तत्व मौजूद होते हैं। ऐसे में बेहतरी इसी में है कि पानी का इस्तेमाल करने से पहले इसे पूरी तरह से शुद्ध कर लिया जाए, क्योंकि सुरक्षा में ही सावधानी है।
स्वास्थ्य से सम्बन्धित एक रिपोर्ट के मुताबिक हर आठ सेकेंड में एक बच्चा पानी से सम्बन्धित बीमारी से मर जाता है। हर साल 50 लाख से अधिक लोग असुरक्षित पीने के पानी, अशुद्ध घरेलू वातावरण और मलमूत्र का अनुचित ढंग से निपटान करने से जुड़ी बीमारियों से असमय काल का ग्रास बन जाते हैं। दुनिया भर में लगभग एक अरब लोगों को अभी स्वच्छ जल नहीं मिल रहा है और दो अरब से भी अधिक लोगों के पास मलमूत्र निपटान की पर्याप्त सुविधा नहीं है। ऐसी स्थिति में शुद्ध पेयजल संकट एक चुनौती भी है। इस चुनौती से निबटने के लिये सभी को अपने स्तर पर भागीदारी निभानी होगी।
सन 1992 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से एक दशक की स्थिति पर पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1981-1990 की अवधि में जल और स्वच्छता पर 133.9 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का निवेश किया गया, जिसमें से 55 प्रतिशत जल पर और 45 प्रतिशत स्वच्छता पर खर्च किया गया। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि शहरी क्षेत्रों में जल की आपूर्ति उपलब्ध कराने पर औसतन प्रतिव्यक्ति 105 अमेरिकी डॉलर और ग्रामीण क्षेत्रों में 50 अमेरिकी डाॅलर का खर्चा आता है, जबकि स्वच्छता पर शहरी क्षेत्रों में औसतन 145 अमेरिकी डालर और ग्रामीण क्षेत्रों पर 30 अमेरिकी डालर की लागत आती है।
पेयजल की गुणवत्ता
हम पेयजल की गुणवत्ता की बात करें तो इसे दो हिस्से में बाँटा गया हैः एक रासायनिक, भौतिक और दूसरा सूक्ष्म जीवविज्ञानी। रासायनिक व भौतिक मानदंडों में भारी धातुएं कार्बनिक यौगिकों का पता लगाकर ठोस पदार्थ (टीएसएस) और टर्बिडिटी (गंदलापन) को दूर करना है, तो सूक्ष्म जीव विज्ञान में कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया, ई कोलाई और जीवाणु की विशिष्ट रोगजनक प्रजातियाँ वायरस और प्रोटोजोन परजीवी को खत्म करता है। रासायनिक रूप से देखें तो नाइट्रेट, नाइट्राइट और आर्सेनिक की मात्रा अगर तय समय सीमा से अधिक हुई तो स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे ही विषैले तत्व भी पानी के माध्यम से हमारे शरीर में पहुँचकर स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
इन विषैले तत्वों में प्रमुख हैं- कैडमियम, लेड, मरकरी, निकल, सिल्वर, आर्सेनिक आदि। जल में लोहा, मैंगनीज, कैल्शियम, बेरियम, क्रोमियम, कॉपर, सीलियम, यूरेनियम, बोरान के साथ ही नाइट्रेट, सल्फेट, बोरेट, कार्बोनेट आदि की अधिकता से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जल में मैग्नीशियम व सल्फेट की अधिकता से आँतों में जलन पैदा होती है। नाइट्रेट की अधिकता बच्चों में मेटाहीमोग्लाबिनेमिया नाम की बीमारी हो जाती है। मेटाहीमोग्लाबिनेमिया आँतों में पहुँचकर नाइट्रोसोएमीन में बदलकर पेट का कैंसर पैदा करता है, वहीं, प्लोरीन से फ्लोरोसिस नाम की बीमारी हो जाती है। इसी तरह कृषि क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली कीटनाशी दवाइयों एवं उर्वरकों के अंश हमारे जलस्रोतों को प्रदूषित करते हैं।
पेयजल का मानक
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पेयजल ऐसा होना चाहिए जो स्वच्छ, शीतल, स्वादयुक्त तथा गंधरहित हो। पीएच मान 7 से 8.5 के मध्य हो।
जल में मौजूद हानिकारक पदार्थः पारा, तांबा, सीसा, कैडमियम, सेनीनियम, बेरियम, नाइट्राइड्स, फ्लोराइड्स एवं सल्फाइड्स।
जल में आर्सेनिक स्तर का मान्य स्तरः भारतीय मानक ब्यूरो ने प्रति लीटर 0.05 मिलीग्राम तक को मानव जीवन के लिये उपयुक्त माना है, जबकि डब्ल्यूएचओ यानि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पीने के पानी के प्रति एक लीटर में अधिकतम 0.01 मिलीग्राम आर्सेनिक की मौजूदगी को एक हद तक सुरक्षित मानक माना है।
आर्सेनिक से खतरेः जल में आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक होने पर कैंसर, लीवर फाइब्रोसिस, हाइपर पिगमेंटेशन जैसी लाइलाज बीमारियाँ हो जाती हैं। संसदीय समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ पिछले एक दशक में आर्सेनिक युक्त भूजल के कारण एक लाख से ज्यादा लोग मौत के मुँह में चले गए।
जलभराव से होने वाले रोगः आनकोसेरसियासिस, ट्रिपैनोसोमाइसिस और पीत ज्वर जैसे रोगों को बढ़ावा मिलता है।
गंदे पानी का भराव तमाम बीमारियों को बढ़ावा देता है। गंदे पानी में मच्छर पैदा होते हैं। डेंगू, फाइलेरिया, मलेरिया आदि ऐसी बीमारियाँ हैं, जो गंदे पानी की वजह से मच्छरों को बढ़ावा देती हैं और ये मच्छर हमें बीमार करते हैं। इसी तरह दूषित जलभराव से आस-पास का पानी भी संक्रमित होता है।
भावी पीढ़ी पर प्रभाव
सिर्फ अपने ही देश की बात करें तो 14 साल की उम्र के बच्चों में से 20 फीसदी से अधिक बच्चे असुरक्षित पानी, अपर्याप्त स्वच्छता या अपर्याप्त सफाई के कारण या तो बीमार रहते हैं या मौत का शिकार हो जाते हैं। इसी तरह सफाई के अभाव के कारण होने वाले डायरिया से मौतों में 90 फीसदी पाँच साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं। साल 2013-14 की रिपोर्ट के मुताबिक देश के करीब 20 प्रतिशत प्राथमिक स्कूलों में लड़कियों के लिये अलग से शौचालय नहीं थे। हालाँकि मौजूदा सरकार का दावा है कि अब सभी स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था हो चुकी है। पर इनमें से कितने प्रतिशत शौचालय का इस्तेमाल होता है, इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। सबसे जरूरी बात तो ये है कि स्कूलों में शौचालयों का संचालन सही तरीके से नहीं होता और गंदगी की वजह से वो खुले में शौचालय से भी बदतर स्थिति में होता है।
हर वर्ष 13 लाख बच्चों की मौत
भारत में हर साल 13.6 लाख बच्चों की मौत होती है। इसमें करीब दो लाख बच्चों की मृत्यु डायरिया के कारण होती है। हालाँकि भारत में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) और पाँच वर्ष से कम आयु के शिशु मृत्यु दर में निरंतर कमी आ रही है। डब्ल्यूएचओ के 2012 के आँकड़ों के अनुसार, प्रत्येक वर्ष पाँच वर्ष से कम आयु के शिशुओं की मृत्यु में 11 प्रतिशत मृत्यु डायरिया के कारण होती हैं। एक अनुमान को ध्यान में रखते हुए स्वच्छ पेयजल और बेहतर सफाई व्यवस्था मुहैया कराई जाए, तो हरेक 20 सेकेंड में एक बच्चे की जान बचायी जा सकती है। साथ ही, तेजी से बढ़ती शिशु मृत्युदर को घटाया जा सकता है।
रोग जनक जीवों से उत्पन्न रोग
1. विषाणुः पीलिया, पोलियो, गैस्ट्रो-इंटराइटिस, जुकाम, चेचक।
2. जीवाणुः अतिसार, पेचिश, मियादी बुखार, अतिज्वर, हैजा, कुकुर खाँसी, सूजाक, उपदंश, जठरांत्र, शोथ, प्रवाहिका, क्षय रोग।
3. प्रोटोजोआः पायरिया, पेचिश, निद्रारोग, मलेरिया, अमिबियोसिस रूग्णता, जियार्डियोसिस रूग्णता।
4. कृमिः फाइलेरिया, हाइड्रेटिड सिस्ट रोग तथा पेट में विभिन्न प्रकार के कृमि का आ जाना जिसका स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
पेयजल की अनुपलब्धता के दुष्परिणाम
भारत की स्थिति देखें तो यहाँ हर साल दूषित पानी से औसतन 3 करोड़ 77 लाख व्यक्ति जलजनित बीमारियों यानि कॉलरा, पोलियो, पेचिश, टायफाइड एवं हेपेटाइटिस से प्रभावित होते हैं और करीब 15 लाख बच्चों की अकेले डायरिया के कारण मृत्यु हो जाती है। इसके अतिरिक्त पानी में मिले फ्लोराइड एवं आर्सेनिक आदि से होने वाली बीमारियाँ जैसे कि फ्लोरोसिस से 6 करोड़ 60 लाख, कैंसर से 1 करोड़ तथा बड़ी संख्या में लोग त्वचा रोगों से प्रतिवर्ष प्रभावित होते हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2005-06 के अनुसार करीब आधे शहरी परिवारों के घर में अंदर पाइप के पानी की आपूर्ति होती है। 80 प्रतिशत से अधिक शहरी गरीब परिवारों में पानी नल, हैंडपम्प या अन्य स्रोतों से भरकर रखा जाता है जोकि अधिकांशतः पहले से ही दूषित होता है। भारत जल की गुणवत्ता के मामले में 122 देशों में से 120वें स्थान पर आता है। पेयजल उपलब्ध कराने की दिशा में जल संसाधन मंत्रालय, शहरी विकास एवं गरीबी उपशमन मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नगर निकाय एवं राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय विकास संस्थाएँ विभिन्न भूमिकाएँ निभाती हैं। इसके बाद भी लोगों को शुद्ध एवं मानकयुक्त पानी उपलब्ध कराना चुनौती है।
पानी को शुद्ध करने के प्रमुख उपाय
घरेलू तरीके से जल का शोधनः जल में जीवाणु का नाश करने के लिये 15 लीटर में 2 क्लोरीन की गोलियाँ (500 मिलीग्राम) या हर 1000 लीटर पानी में 3 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर का घोल बनाकर डाले एवं आधे घंटे बाद उपयोग में लें।
आरओ सिस्टमः तकनीक के क्षेत्र में हुए विकास के तहत आरओ प्रणाली का भी पेयजल स्वच्छता में अहम प्रयोग हुआ है। आरओ सिस्टम द्वारा साफ पानी में बैक्टीरिया होने की आशंका बहुत कम हो जाती है। यह पेयजल को साफ करने का उच्चस्तरीय तरीका है। आरओ सिस्टम 220 से 240 पीपीएम युक्त पानी को स्वच्छ कर 25 पीपीएम तक ले आता है। यह गंदगी, धूल, बैक्टीरिया आदि से पानी को मुक्त कर शुद्ध व मीठा बनाता है।
यूवी रेडिएशन सिस्टमः यूवी रेडिएशन सिस्टम से पानी में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया के डीएनए अव्यवस्थित हो जाते हैं। साथ ही हानिकारक बैक्टीरिया भी मर जाते हैं। यूवी प्यूरीफायर्स तीन-चार प्यूरीफिकेशन चरणों में आते हैं जिनमें सेडीमेंट फिल्टर यानि प्री फिल्टर प्रक्रिया और सक्रिय कार्बन कार्टिरेज प्रमुख हैं। यह पानी से काई, कार्बनिक कणों, घुलनशील सॉलिड, बैक्टीरिया, विषाणु और भारी तत्वों को बाहर करता है।
पानी को उबालनाः पानी को साफ और पीने योग्य बनाने के लिये अब ढेरों तरीके मौजूद हैं, पर पानी को साफ करने का सबसे पुराना तरीका है उसे उबालना। दुनिया भर में इस परम्परागत तरीके को लाखों लोग अपनाते हैं। पानी को पूरी तरह से स्वच्छ और कीटाणुरहित बनाने के लिये कम-से-कम उसे 20 मिनट उबालना चाहिए और उसे ऐसे साफ कंटेनर में रखना चाहिए, जिसका मुँह संकरा हो ताकि उसमें किसी प्रकार की गंदगी न जाये। उबले हुए पानी को सबसे बेहतर माना गया है।
कैंडल वाटर फिल्टरः पानी को साफ करने के लिये दूसरा मुफीद तरीका है, कैंडल वाटर फिल्टर। इसमें समय-समय पर कैंडल बदलने की जरूरत होती है, ताकि पानी बेहतर तरीके से साफ हो सके।
ऊर्जा ज़रूरतों के लिये नदियों और जलस्रोतों पर बोझ भी बढ़ेगा। नदियों पर बड़े-बड़े और भी बाँध बनाए जाएंगे। विशाल बाँधों पर बनी पनबिजली योजनाओं से लाभ मिलेगा, तो इसका बुरा प्रभाव नदियों की पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ेगा।मल्टीस्टेज प्यूरीफिकेशनः मल्टीस्टेज प्यूरिफिकेशन पानी को साफ करने का एक बेहतर तरीका है। इसमें पानी कई चरणों में साफ होता है। पहले प्री-फिल्टर प्यूरिफिकेशन होता है, उसके बाद एक्टीवेटेड कार्बन प्यूरीफिकेशन किया जाता है, फिर पानी से हानिकारक बैक्टीरिया खत्म किए जाते हैं और सबसे अंत में पानी की गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिहाज से उसका स्वाद बेहतर किया जाता है।
क्लोरीनेशनः क्लोरीनेशन के जरिये भी पानी साफ किया जा सकता है। विभिन्न नगरों एवं सरकारी उपक्रमों में जलापूर्ति के दौरान यह प्रक्रिया अपनाई जा रही है। इससे पानी शुद्ध होने के साथ उसके रंग और सुगंध में भी परिवर्तन आ जाता है। यह पानी में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया से बचाता है।
हैलोजन टैबलेटः आकस्मिक परिस्थितियों में पानी साफ करने के लिये हैलोजन टेबलेट उपयोगी होता है। पानी में इसे कितनी मात्रा में डाला जाए, यह पानी की मात्रा और हैलोजन टैबलेट के ब्रांड के ऊपर निर्भर करता है। यह गोलियाँ पानी में पूरी तरह घुलनशील होती हैं।
भविष्य में जल संकट
बढ़ती हुई जनसंख्या प्रदूषण बढ़ने का कारक है, इसमें कोई दो राय नहीं। आने वाले समय में बढ़ती जनसंख्या की माँग के अनुसार पेयजल की समस्या बढ़ती चली जाएगी। वहीं, बाँधों से एक तरफ पानी को रोका जाएगा, तो टिहरी जैसी समस्याओं को जन्म देगा, तो बड़ी आबादी के विस्थापन से पूरा पारिस्थितिकी तंत्र ही प्रभावित होगा। एक विशेष इलाके में जल जमाव होने से तमाम जलजनित बीमारियाँ होंगी। तो जलभराव से होने वाली तमाम रोगों से निपटना भी चुनौती होगी।
भविष्य की राह
भविष्य को बचाना है, तो तैयार अभी से होना पड़ेगा। सभी तरह के प्रदूषण एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। ऐसे में भविष्य को ध्यान में रखते हुए आने वाले समय में जो भी कल-कारखाने स्थापित किये जाएं, वो आबादी से दूर हों। इन कल-कारखानों से निकले दूषित जल को हमारे जलस्रोतों, नदियों, नालों, तालाबों में मिलने से पहले भली-भाँति नष्ट करना होगा।
जल प्रदूषण से बचाव के लिये सभी को आगे आना होगाः पानी में प्रदूषण न हो इसके लिये सामुदायिक स्तर पर उपाय हों। हैंडपम्प के आस-पास प्रदूषित जल का ठहराव न होने दें। खुले कुएँ के पानी में नियमित तौर पर ब्लीचिंग पाउडर डालें। पानी की टंकी के आस-पास स्वच्छता रखें।
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