[2/15, 08:08] Dr.J.k Pandey: भारतीय संस्कृति विश्व में जितनी श्रेष्ठ है उससे भी कही अधिक श्रेष्ठ भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति रही है यह उस वक्त की बात है जब न कोई कारखाने थे न मोटर गाड़ी थी यहाँ तक की हॉस्पिटल की जगह औषधालय हुआ करते थे ,इंजेक्शन क्या हुआ करतेहै इससे कोई नहीं जानता था ,अलोपैथिक पद्धति का नामोनिशान नहीं था हम लोग सोच रहे होंगे की मरीज बीमार होते ही स्वर्गवासी हो जाया करते रहे होंगे ,लेकिन ऐसा नहीं था उस समय की चिकित्सा पद्धति विश्व में सर्वश्रेष्ठ थी बीमार लोग बिना ऑपरेशन बिना इंजेक्शन ठीक हो जाया करते थे वे विद्वान लोग ही चिकित्सा किया करते थे .
[2/15, 08:20] Dr.J.k Pandey: उस वक़्त चिकित्सा व्यवसाय नहीं था और चिकित्सक व्यवसाई नहीं थे तत्कालीन चिकित्सको का जंगलो में निवास था जो आश्रम में कुटिया बनाकर रहते थे और समाज के लोगों की चिकित्सा निःशुल्क किया करते थे चिकित्सा सेवा करना केवल जनहित का कार्य था जो केवल अपनी विद्द्वता का प्रयोग जनहित में किया करते थे तत्कालीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति हुआ करती थी जिसमे केवल जड़ी बूटियों वनस्पतियों फल सब्जियों के बल पर ही चिकित्सा की जाती थी
[2/15, 08:30] Dr.J.k Pandey: उस समय के महान चिकित्सको में महर्षि चरक का नाम था जिनका नाम चरक संहिता में मिलता है महर्षि च्यवन का नाम भी तत्कालीन विद्द्वान चिकित्सको में सम्मान के साथ लिया जाता है भारतीय चिकित्सा पद्धति उस समय विश्व में अग्रणीय थी सम्पूर्ण विश्व भारतीय चिकित्सा पद्धति और क्षिक्षा पद्धति को ग्रहण करने के लिए भारत में अध्ययन करने के लिए आते थे वह रामायण काल हो या महाभारत काल या उसके बाद का समय हो सभी में भारतीय चिकित्सा पद्धति का बोलबाला था
[2/15, 09:29] Dr.J.k Pandey: यदि रामायण काल और महाभारत के युद्धों का अध्ययन किया जाये तो तस्वीर कुछ हद तक स्पस्ट हो जाती है जब देखते हैं की युद्ध में घायल योद्धाओं सैनिको को औषधीय लेपो के द्वारा रात रात में ही स्वस्थ कर दिया जाता था और सुबह होते ही घायल सैनिक और योद्धा युद्ध के लिए पुनः तैयार हो जाते थे जिससे प्रमाणित होता है की तत्कालीन चिकित्सा पद्धति अपनी सर्वश्रेष्ठ स्टार पर थी जो किसी भी मायने में आधुनिक चिकित्सा पद्धति से सर्वोपरि ही थी दूसरा जो पहत्वपूर्ण प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति का है वह यह है की तत्कालीन चिकित्सा व्यवसाई न होकर सेवा भाव से समाजहित और जनहित को ही सर्वोपरि मानते थे
[2/15, 09:38] Dr.J.k Pandey: यही कारन था की उस वक्त बीमारिया मानव मात्र को इतना अत्यधिक आर्थिक शारीरिक व मानशिक क्षति नहीं पंहुचा पाती उस समय के लोग किसी भी बीमारी को गंभीरता से नहीं लेते थे बुजुर्गो से प्राप्त जानकारी के अनुसार उस समय के लोग बुखार आदि के होने पर किसी भी प्रकार की दवा का सेवन करने के स्थान पर घरेलु नुस्खों का प्रयोग किय करते थे और बिना किसी दवा के ही स्वस्थ हो जाया करते थे उस समय प्रसूति रोग विशेषज्ञ का भी आभाव था और सो प्रतिशत डिलीवरी घर पर ही ग्रामीण दाई की देख रेख में हुआ करती थी
[2/15, 09:44] Dr.J.k Pandey: जिसके पीछे तर्क था की उस समय ग्रामीण महिलाएं अधिक मेहनती हुआ करती थीं आज का समय है जब प्रत्येक डिलीवरी हॉस्पिटल में हो रही है लेकिन उसके बाद भी देश में नवजात शिशुओं की मृत्यु और उनकी माताओं की मृत्यु में कोई विशेष कमी नहीं देखि जा रही है
[2/15, 09:49] Dr.J.k Pandey: वर्तमान चिकित्सा पद्धति सर्वाधिक खर्चीली है जिसमे आम आदमी को गुणवत्तापरक चिकित्सा लाभ मिलना नामुमकिन है वर्तमान भारतीय चिकित्सा पद्धति का यदि विस्लेशन किया जाये तो वह भी केवल धनाढ्य और अमीरों के पक्ष में ही जाता है
[2/15, 10:02] Dr.J.k Pandey: आमतौर पर गरीब व्यक्ति को यदि MRI, CT SCAN कराना पद जाये तो उसके महीने भर की मजदूरी उसी में चली जाएगी और यदि किसी सदस्य को नर्सिंग होम में साधारण बीमारी में ही रखना पढ़ जाये तो लगभग छह महीने की मजदूरी में भी पूर्ती नहीं होगी वर्तमान चिकित्सा पद्धति और प्राचीन चिकित्सा पद्धति का यदि विश्लेशण कर तुलना की जाये तो वर्तमान एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति प्राचीन चिकित्सा पद्धति के मुकाबले कहीं नहीं ठहर पाती है आज की चिकित्सा पद्धति एक अपंग चिकित्सा पद्धति है जो पैरामेडिकल के बैशाखियों के बिना नहीं चल सकती
[2/15, 10:05] Dr.J.k Pandey: सबसे पहले तो गौर करने का विषय यह है कि जितना अधिक खर्चीली वर्तमान चिकित्सा पद्धति है उसमें तो गरीब आदमी अपने चिकित्सा के विषय में सोच ही नहीं सकता जब उसको अत्यधिक महंगी दर पर चिकित्सा परीक्षण से गुजरना पड़ता है उसमें भी अधिक महंगी दवा और नर्सिंग होम या निजी अस्पतालों द्वारा वसूली जाने वाली मोटी फीस जो आम आदमी की पहुंच से काफी दूर है तो क्या हम आज वह आदमी भारतवर्ष में अपने चिकित्सा लाभ के विषय में विचार कर सकते हैं कदापि नहीं
[2/15, 10:07] Dr.J.k Pandey: वर्तमान चिकित्सा पद्धति में निजी अस्पतालों की आय का सबसे महत्वपूर्ण विभाग आईसीयू है जिसके नाम पर निजी अस्पताल संचालक मरीजों की जेब ढीली करने का कार्य करते हैं आमतौर पर आईसीयू का खर्चा प्रतिदिन के हिसाब से कई हजार रुपए निजी अस्पतालों में वसूला जाता है साथ ही एक अन्य खेल निजी अस्पतालों में होता है वह है आईसीयू में भर्ती मरीज की दवाइयां मंगा कर उनको चोरी करके पुनः अपने ही अस्पताल के मेडिकल स्टोर पर पहुंचाना सभी निजी अस्पतालों में अपने ही अस्पताल परिसर में मेडिकल स्टोर भी होते हैं जिन पर अधिकतम मूल्य पर जेनेरिक दवाओं की बिक्री की जाती है दवाओं में भी दो प्रकार होते हैं एक तो पेटेंट दवा और दूसरी जेनेरिक दवा दोनों दबाए देखने में तो एक जैसी ही हो दी हैं लेकिन उनके अंतर को समझना किसी भी आम नागरिक के बूते की बात नहीं है उनकी कीमत में भी भारी अंतर होता है देश में अधिकतर जेनेरिक दवाओं की बिक्री हो रही है जिसके पीछे मूल कारण है अधिक मुनाफा कमाना क्योंकि पैटर्न में दवा विक्रेताओं को अधिक लाभ 10% मिल पाता है
[2/15, 10:09] Dr.J.k Pandey: वही जेनेरिक दवाओं में 60 से 70% लाभ होता है तो फिर दवा विक्रेता पेटेंट दवाओं की बिक्री क्यों करें जब उनको लाभ तो जेनेरिक दवाओं से होता है और इस व्यवसाय को रोक पाने में विफल है भारतीय चिकित्सा व्यवस्था के संरक्षक जो कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं यही कारण है कि देश की चिकित्सा व्यवस्था लड़खड़ा रही है जब नाम मात्र की शिक्षा पाए लोग क्यों मुश्किल से मैट्रिक पास होते हैं और मेडिकल स्टोर चला रहे हैं तो ऐसा कैसे हो रहा है इसके लिए जवाबदेही अध्यक्ष निरीक्षक की जो पैसे लेकर मेडिकल स्टोर का लाइसेंस दे देते हैं ऐसे मेडिकल स्टोरों पर डिग्री धारक लोगों के कागज मिलते हैं जो बी फार्मा डी फार्मा की होते हैं लेकिन वह अपनी डिग्री का कोई मेडिकल स्टोर को किराए पर दे देते हैं जो अपने घर बैठे ही आमदनी होती रहती है लाभ होता है ऐसे लोगों को जो पढ़े-लिखे नहीं होते लेकिन पढ़े-लिखे लोग ऐसा करते हैं यह दो से ₹3000 प्रतिमाह किराए पर लेते हैं और आते रहते हैं कोई परेशानी आने पर स्वयं उसका हल निकाल देता है क्योंकि वह भी प्रत्येक महीने अपनी करता है जिस कारण मेडिसिन देते रहते हैं चिकित्सा व्यवस्था में व्यवस्था है जो भारतीय जनमानस के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है
[2/15, 10:12] Dr.J.k Pandey: यही कारण है कि देश में नागरिकों की आय का एक बहुत बड़ा भाग चिकित्सा पर खर्च हो रहा है जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परमानंद कटारा बनाम भारत संघ के बाद में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सहायता प्राप्त करने के अधिकार को मूल अधिकार की श्रेणी में सम्मिलित कर लिया गया है उक्त आदेशानुसार प्रत्येक भारतीय नागरिक को चित्रित सलाह लेना उसका मौलिक अधिकार है हमारे देश में शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है भोजन का अधिकार भी मौलिक अधिकार है ऐसा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पीयूसीएल बनाम भारत संघ के बाद में निर्धारित किया जा चुका है लेकिन इस देश की भारतीय नागरिक है तो आखिर कहां रह गई है भारत में सरकारी अस्पताल है समय से पहुंचना अपना कर्तव्य समझते उनके अपने गांव में तो सरकारी अस्पताल आज देश आजाद होने के बाद भी नहीं पहुंच पाए जबकि देश की आबादी गांवों में निवास करती है लेकिन भारत की आबादी का दुर्भाग्य है कि आज 75 वर्ष बाद भी सरकारी चिकित्सा सुविधाओं से महरूम है जबकि देश विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा है तो आखिर विकास को कहां रहा है
[2/15, 10:14] Dr.J.k Pandey: क्या शहरों में अजी अजी इमारत बनाना निजी अस्पताल खुलवाना देश का विकास है तो यह देश की जनता के साथ धोखा है यह धोखा है देश की 75% जनता के साथ जो गांवों में निवास करती है जो आजादी के 75 वर्ष बाद भी आज प्राथमिक शिक्षा और चिकित्सा से में सब मालूम है देश प्रदेश की सरकारी को यह बताने में शर्म अवश्य महसूस होती होगी कि देश के गांवों में कितने सरकारी अस्पताल और हमने कितने प्रतिशत एमबीबीएस या बीएमएस डॉक्टर संख्या संभवत शो मी दर्शित होगी भारत सरकार देश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों को अनुदान देती है तब जाकर एमबीबीएस डॉक्टर तैयार होते हैं देश के लाखों करोड़ों आयकर दाताओं की मेहनत की कमाई से लेकिन उसका वास्तविक लाभ देश की जनता को नहीं मिल पाता डॉक्टर की पढ़ाई करने के बाद वे युवा भी जो गांव में ही पैदा थे गांव में पले बढ़े थे गांव में प्रैक्टिस करने में रुचि नहीं लेते यही कारण है कि देश की चिकित्सा व्यवस्था व्यवस्थित है और सरकार के पास ऐसा कोई समाधान नहीं है जो प्रशिक्षित एमबीबीएस डॉक्टर गांव में प्रैक्टिस करें
[2/15, 10:17] Dr.J.k Pandey: भारतीय व्यवस्था का एक सच यह भी है कि देश की तीन चौथाई आबादी डॉक्टर सुविधाओं से महरूम है और बाकी एक चौथाई आबादी पर प्रत्येक कॉलोनी गली मोहल्लों में नर्सिंग होम क्लीनिक व अस्पताल में ही जाएंगे ऐसी व्यवस्था से भारत में भी दो भारत दिखाई देते हैं एक अमीरों का भारत जहां छींक आने पर भी प्रशिक्षित डॉक्टर उपलब्ध है और एक दूसरा गरीबों का भारत जहां मरणासन्न स्थिति में भी डॉक्टर को नहीं होते और ऐसे लोग चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में स्वर्गवासी हो जाते हैं भारत में अस्पतालों में जो दिल्ली जैसे बड़े शहरों में स्थित हैं चिकित्सा सुविधाओं का लाभ लेने में अमीर नौकरशाह जैसे संस्थानों में गरीब व्यक्ति को तो इलाज के लिए भर्ती कराना दिलाना बहुत बड़ी चुनौती है सरकारी अस्पताल जहां गुणवत्ता परक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है वहां तो गरीब आदमी कोई लाभ नहीं ले पाता और वह मजबूरी बस निजी अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर होते हैं यहां इलाज कराने में गरीब आदमी अपनी सब कुछ चल अचल संपत्ति बेच देता है और घर बेचकर भी लाज में लगे पैसों को नहीं लौटा पाता और वर्तमान समय केवल अमीरों का समय है
[2/15, 10:18] Dr.J.k Pandey: उनको ही देश की शिक्षा चिकित्सा और संतुलित भोजन का मूल अधिकार है हालांकि सरकार द्वारा प्राथमिक शिक्षा के लिए काफी प्रयास किया जा रहा है लेकिन जो भी प्रयास किए जा रहे हैं वे नाकाफी हैं चिकित्सा और भोजन के विषय में तो चर्चा करना अभिव्यक्ति जान पड़ता है एक उदाहरण से भारतीय चिकित्सा व्यवस्था की कलई खोलती दिखाई पड़ती है एक लड़का जो सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो जाता है तो उसको तत्काल एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया जाता है लड़के को कहते हैं उसी में भर्ती कराया जाता है रखते हैं आते हैं और लगभग 3 से 400000 के बीच बनाया जाता है और उसके बाद भी लड़के की जान नहीं बचाई जा सकी बेचारा गरीब पिता जिसका पुत्र भी चला गया तो क्या बाकी का जीवन जी पाएगा अपना सब कुछ कर भी कर्ज नहीं उतार पाएगा क्योंकि भारत में चिकित्सा व्यवस्था सरकार के नियंत्रण से पूर्णता मुक्त है और कोई भी ऐसे दिशा निर्देश सरकार द्वारा तय नहीं है जो निजी अस्पतालों की नियंत्रित कर सके साथ ही व्यवस्था कर सके गरीब लोगों को चिकित्सा सुविधाओं के अभाव के कारण इलाज नहीं करा पाते और चिकित्सा के अभाव में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं
[2/15, 10:21] Dr.J.k Pandey: भारतीय चिकित्सा व्यवस्था के लिए सर्वाधिक शर्मनाक विषय है कि वर्तमान व्यवस्था में भर्ती गरीब जनता चिकित्सा सुविधाओं से वंचित है भारत की महंगी चिकित्सा सुविधा केवल उच्च मध्यमवर्गीय भारतीयों के लिए है भारत के निम्न वर्ग के लोगों के चिकित्सा व्यवस्था ऐसे डॉक्टरों के भरोसे पर एक मुश्किल से मैच किया इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के उपरांत निजी अस्पतालों में वार्ड बॉय कंपाउंडर का कॉल करने के बाद स्वयं ही गांव देहातों में छोटी सी क्लीनिक खोलकर की प्रैक्टिस करना शुरू कर देते हैं और गांव की गरीब जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने के साथ ही उनका आर्थिक शोषण भी करते हैं और भारतीय चिकित्सा व्यवसाय के रक्षक कोई भी कदम गरीब भारतीय जनता के हित में नहीं उठा पाते कि कदम उठाना नहीं चाहते तो आजादी के 75 वर्ष बाद भी भारतीय देश की 75% आबादी निवास करती है मालूम है और देश के राजस्व का बहुत बड़ा भक्त स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्चा हो रहा है इसका लाभ केवल देश की जनता को ही मिल रहा है जबकि जनसंख्या आर्थिक रूप से मजबूत है लेकिन फिर भी वह सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले रही है जो देश की जनता के लिए सरकारी सुविधाओं का उठाने में नाकाम रहा देश की गरीब जनता के कारण लाभार्थियों की कमी है
[2/15, 10:27] Dr.J.k Pandey: यह भारतीय चिकित्सा व्यवसाय की ही कमी है जो देश की जनता के लिए सरकारी चिकित्सा सुविधाओं का संतुलन बिठाने में नाकाम रही है देश की गरीब जनता उक्त व्यवस्था के कारण स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने स्वास्थ्य लाभ से वंचित है तो क्या भारतीय नीति कारों की नीतियों की कमी है या केवल भारतीय चिकित्सा व्यवस्था की कमी जो आज तक देश की गरीब जनता को अधिकतर गांवों में निवास करती है स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है देश की चिकित्सा शिक्षा पर भारत सरकार द्वारा अनुदान दिया जाता है और उनमें से कुछ होनहार डॉक्टर तो सिविल सेवाओं में चले जाते हैं उस विदेश की ओर रुख करते हैं और जाते हैं वह महानगरों में निजी अस्पताल बनाकर देश की जनता का आर्थिक शोषण करते हैं जिनको रोक पाना या कोई दिशानिर्देश जारी करना सरकारों के या तो बोतल की बात नहीं है या फिर सरकार में शक्ति का अभाव है जो देश की जनता महंगी चिकित्सा सुविधाओं के अनियंत्रित मूल्य आधारित स्वास्थ्य सेवाओं से रूबरू पर नियंत्रण करना मुश्किल है क्योंकि सरकार द्वारा ऐसा कोई नहीं है कि संपूर्ण भारतवर्ष में होता है या संपूर्ण भारतवर्ष में संपूर्ण संपूर्ण भारत में की गई है
[2/15, 10:30] Dr.J.k Pandey: अपेंडिक्स दर्द के ऑपरेशन की फीस क्या है आंख के ऑपरेशन की फीस क्या निर्धारित की गई है किडनी के ऑपरेशन की फीस क्या है आधी आधी जब प्रत्येक मनुष्य के अंगो की संरचना एक जैसी है और बीमारियां भी एक जैसी हैं उन बीमारियों का इलाज भी एक जैसा ही है तो फिर एक जैसे मनुष्य की एक जैसी बीमारियों का इलाज अलग-अलग अस्पतालों में कराने पर इलाज का खर्चा अलग अलग होता है इसमें भारी अंतर आता है एक अस्पताल उस बीमारी का इलाज करने का खर्च ₹10000 वसूल करता है तो दूसरा अस्पताल सी बीमारी के इलाज का खर्च ₹20000 चिकित्सा व्यवस्था के अंतर्गत देखा जा सकता है अस्पतालों में होता है और जिस को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा कोई दिशानिर्देश निर्धारित नहीं की तभी तो भारतीय चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े लोग चंद वर्षों में ही करोड़पति अरबपति बन जाते हैं क्योंकि ऐसी कोई व्यवस्था भी निजी अस्पतालों की नहीं होती कि जिससे पता लगाया जा सके कि 1 दिन या 1 सप्ताह है एक महीने में अस्पताल में किस किस बीमारी से ग्रस्त रोगी भर्ती हुए और रोगियों से कितना कितना पैसा वसूल किया गया ऐसा कोई भी आंकड़ा देना या नहीं देना भारतीय चिकित्सा व्यवस्था में किसी भी रूप में शायद ही प्रावधान हो और इस चिकित्सा व्यवस्था के आर्थिक शोषण को रोका जा सके जिसके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है मजबूत कानून की जो चिकित्सा व्यवसाय के इस आर्थिक दोहन को रोक सके
[2/15, 10:32] Dr.J.k Pandey: ऐसे चिकित्सक भी किसी से छुपी नहीं है जो सरकारी सेवा में होने के साथ-साथ निजी क्लीनिक अस्पताल संचालित कर रहे हैं और उन पर नियंत्रण करना मुश्किल ही नहीं जान पड़ता जबकि सरकारी सेवा में कार्यरत चिकित्सक भी अपने कर्तव्य का पालन ईमानदारी के साथ नहीं कर रहे हैं वे अपने कार्य में महत्वपूर्ण लापरवाही का पालन करते हैं और जिसका परिणाम यह होता है कि जिस रोगी को ऑपरेशन की आवश्यकता आज है तो उसको ऑपरेशन की तिथि 1 से 2 महीने उपरांत ही मिलेगी तो क्या ऐसा व्यक्ति जिसको आज ऑपरेशन की आवश्यकता है और उसको आज ऑपरेशन नहीं हो पाता है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा यदि रोगी को समय से उपचार नहीं मिल पाता है तो वह चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में मृत्यु को प्राप्त हो सकता है तो क्या उसकी जिम्मेदारी उठाने के लिए सरकारी अस्पतालों में तैयार होंगे ऐसी चिकित्सा व्यवस्था भारतीय सरकारी अस्पतालों की है जहां न तो सरकार और ना ही अपना कर्तव्य निभा रहे हैं और अपना कर्तव्य निभा रहे हैं उनके अनुभव और योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लगते रहे ऐसे लोग चिकित्सा व्यवसाय में आ गए हैं जो वास्तव में व्यवसाई हैं जबकि चिकित्सा व्यवस्था सही अर्थों में व्यवसाय ना हो सेवा भाव होना चाहिए था लेकिन वह वर्तमान समय में मात्र बनकर रह गया है इसका कारण भी मौजूद है ऐसे लोग जो डॉक्टर बनने की योग्यता रखते नहीं भाभी डॉक्टरों के पास अकूत धन होता है जिसके बल पर भारतीय चिकित्सा व्यवस्था में निजी मेडिकल कॉलेजों में 35 से ₹400000 में एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करके का तमगा हासिल कर लेते हैं
[2/15, 10:34] Dr.J.k Pandey: ऐसी ट्रैक्टर चाहे मरीजों का इलाज कर पाए या नहीं लेकिन डॉक्टरी का तमगा हासिल करके अपना चिकित्सा व्यवसाय तो शुरू कर ही देते हैं जिसके लिए शानदार नर्सिंग होम क्लीनिक भी बनाया जाता है नर से भी रखी जाती है समस्त तकनीकी स्टाफ रखा जाता है तभी तो अपने की मशीनों को लगाया जाता है बेहतर प्रकार से उसका उद्घाटन किया जाता है जोरदार ढंग से नर्सिंग होम का प्रचार प्रसार किया जाता है मरीजों को शुरुआती दौर में सुख में छूट भी दी जाती है मरीजों को उनके गंतव्य तक लाने ले जाने के लिए एंबुलेंस की सुविधा दी जाती है इसके अलावा गांव में जाकर निशुल्क चिकित्सा शिविर लगाया जाता है ताकि गांव गांव के लोगों को नर्सिंग होम से जोड़ा जा सके इसके लिए चिकित्सा शिविर में आयोजित किए जाते हैं क्योंकि लोगों की मानसिकता है गांव में जो कुछ तर्क वितर्क करेंगे गांव की गरीब जनता को बेवकूफ बनाने का कार्य कर रहे हैं लेकिन वास्तव में उगाही करके अपनी तिजोरी भरने के लिए चिकित्सा क्षेत्र में आए हैं उनका सेवा भाव से कोई वास्ता नहीं है इस देश की जनता आ रहे हैं और उनका ऐसा करना उनकी मजबूरी के कारण भी है 4000000 रुपए का आएगा ही और उसके लिए उसे व्यवसाई तो बनना ही पड़ेगा
[2/15, 10:35] Dr.J.k Pandey: क्योंकि प्रकृति का नियम भी है और व्यवसाय का भी की जो पूंजी आप किसी व्यवसाय में निवेश कर रहे हैं सबसे पहले तो व्यवसाई उस निवेश की पूंजी की वापसी करना चाहेगा उसके बाद अपनी आमदनी के लिए प्रयास किया जाएगा कुछ इस तरह भारतीय चिकित्सा व्यवस्था अपना भविष्य तय कर रही है जिसके लिए पूर्णता जोशी है भारतीय चिकित्सा व्यवस्था जिनके लिए मात्र 6 वर्ष का समय और 35 से 40 लाख रुपए की रकम निवेश करनी होती है भारत में उच्च शिक्षा के निजीकरण के साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता के साथ खेल शुरू हुआ अभी तक रुकने का नाम नहीं ले रहा है तभी तो देश के अंदर कुकुरमुत्ता की तरह इंजीनियर कॉलेज और मेडिकल कॉलेज हैं जिनमें अधिकांश लोग इंजीनियर तैयार किए जा रहे हैं उत्पन्न करने वाली उद्योग केवल डॉक्टर की डिग्री दे रहे हैं क्योंकि इन उद्योगों के पास योग्यता डी का अभाव है लेकिन बावजूद इसके फिर भी यह उद्योग बदस्तूर उन्नति कर रहे हैं और देश के लिए डॉक्टरों की फौज तैयार करने में लगे हैं ऐसे डॉक्टर चुके हैं सामाजिक भावना से नहीं है तो केवल अपने लिए ही आवश्यक होना चाहिए था कि व्यवसाय मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत हो
[2/15, 10:37] Dr.J.k Pandey: तो इसके लिए डॉक्टरी पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक मूल्यों पर आधारित डॉक्टर का कर्तव्य मानव मात्र के प्रति क्या होना चाहिए पैसा महत्वपूर्ण होना चाहिए या मानवता भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश होने के साथ ही जो गौरव हासिल किया हुआ है वह बीमारियों से ग्रस्त होने का और कुपोषण का भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय हो या राज्य सरकारों के स्वास्थ्य मंत्रालय किसी को कोई परवाह नहीं होती देश प्रदेशों के स्वास्थ्य मंत्रियों के नाम जप होती है तब कोई बीमारी का प्रकोप देश की जनता को अपनी चपेट में ले लेता है इसका मूल कारण है स्वच्छता देश की 75% जनता जो गांवों में निवास करती गंदगी भरी जिंदगी जीने को मजबूर है लेकिन शहर भी इस सच्चाई से अछूते नहीं हैं जो गंदगी की जिंदगी का सामना कर रहे हैं तो क्या हम कल्पना कर सकते हैं इस देश की जनता का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा जब हम गंदगी भरे वातावरण में रह रहे हैं हम बीमारी की चपेट में भी रहेंगे इसके लिए सरकार द्वारा कोई दिशानिर्देश या कोई जवाबदेही तय नहीं की गई है कि सबसे पहले हमें बीमारियों का इलाज कराने के साथ ही स्वच्छ वातावरण पर ध्यान देना चाहिए
[2/15, 10:50] Dr.J.k Pandey: वैसे बरसात के मौसम में तो कामों में बीमारियों का मेला लग जाता है जिसके पीछे कारण भी मौजूद है गांव में स्वच्छता का भाव गांव का वातावरण से बाइक दृष्टि से शुद्ध होता है लेकिन कामों में जलभराव के कारण गंदगी का वातावरण बन जाता है इस कारण कामों में बीमारियों की भरमार होती है तथा गरीब जनता की मेहनत की कमाई का एक बहुत बड़ा भाग को अपना इलाज कराने के लिए देना पड़ता है लेकिन ग्रामीण भी इस बात से अनभिज्ञ हैं इन बीमारियों की वजह गंदगी का वातावरण है जो बीमारियों को बुलावा देती है इसके अलावा एवं शहरी वातावरण की बात करें तो हम भी कुछ अच्छी स्थिति नहीं है अंतर इतना है कि शहरों की स्थितियां गांव से कुछ बेहतर है जहां साफ सफाई तो है चिकित्सा व्यवस्था बहुत ही बेहतर है शहरों में गरीब के लिए सरकारी अस्पताल साथ ही निजी अस्पताल की सुविधा भी बहुत ही बेहतर है इसलिए सरकार जनता को इलाज कराने के लिए किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता मेडिकल स्टोर भी शहर में आसानी से उपलब्ध है तारों के आसपास ही होते हैं जहां से जनता को सुविधाएं मिल जाती हैं जबकि ग्रामीण जनता को देने के लिए जाना पड़ता है जितने की दवाएं आती हैं उन से अधिक खर्चा शहरों तक आने-जाने में हो जाता है तो ग्रामीणों ने चिकित्सा सुविधाओं का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है जब उनको शहरों तक पहुंचने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ते हैं तदोपरांत शहर की दवाइयां लेकर गांव तक ऑफिस पहुंचना है इस बीच गांव में रोगी को क्या कुछ हो जाए चाय कैसे बचाए सब कुछ भगवान भरोसे होता है वह बताएं भारतीय चिकित्सा व्यवस्था का सबसे कमजोर पहलू यही है देश की आजादी के 75 वर्ष बाद भी वह देश की जनता जो कुल आबादी का 75% है जो चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं करा पाई है
[2/15, 10:52] Dr.J.k Pandey: इसे भारतीय चिकित्सा व्यवस्था का ही दोस्त कह सकते हैं कि भारतीयों में भी चिकित्सा लाभ लेने के लिए भारी असमानता है एक और शहरी जनता है जो सरकारी चिकित्सा लाभ के साथ ही निजी अस्पतालों की सुविधाओं का लाभ भी उठाते हैं और समय से अपना चिकित्सा परीक्षण आदि कल आते रहते हैं जो इस देश की देश की सरकारों को चुनती है और सर्वाधिक उपेक्षा मिलती है वह चाहे शुद्ध पीने के पानी की गुणवत्ता परक शिक्षा की हो या सरकारी सुविधाओं की व्यवस्था में के साथ भेदभाव हो रहा है और इस भेदभाव को करने का कार्य कर रहे हैं देश के आजादी के बाद भी मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं जिनमें से चिकित्सा सुविधा भी एक है एक कहावत है स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है जब देश की जनता का स्वास्थ्य ठीक नहीं होगा उनका मस्तिष्क कैसे ठीक होगा और जब मस्तिष्क ठीक नहीं होगा उनके सोचने की शक्ति भी ठीक नहीं होगी और जब देश की जनता के सोचने की शक्ति ठीक नहीं होगी ऐसा आचरण करेगा जैसा इस देश के नीति और उनसे करवाना चाहेंगे तो इस देश के नेता चाहेंगे कि इस देश की जनता स्वस्थ हो विशेष ग्रामीण जनता क्योंकि ग्रामीण जनता ही तो देश की सरकारों को चुनती है और चुनावों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है
[2/15, 10:54] Dr.J.k Pandey: देश के नीति का उसी ग्रामीण जनता के साथ धोखा करते हैं और ग्रामीण जनता भी कितनी भोली है जो ऐसा सहन करते करते 75 वर्ष हो गए और आज तक ऊपर तक नहीं कि आज तक उस तक नहीं की संपूर्ण भारतवर्ष इस बात से भलीभांति परिचित है कि देश की 75% ग्रामीण आबादी के बल पर ही देश के 25 पर सारी जनता के घरों में चूल्हे जलते हैं यहां तक कि देश की सीमाओं की रक्षा करने में भी सारी हवाओं की अपेक्षा ग्रामीण हुआ ही बढ़-चढ़कर योगदान दे रहे हैं सरकारी आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि शहरी युवाओं के अपेक्षा ग्रामीण पुलिस फोर्स में जाना अधिक पसंद करते हैं और शादी हुआ संस्कृत से प्रभावित होकर प्रबंधन क्षेत्र में जाना अधिक पसंद करते हैं लेकिन ग्रामीण जनता को केवल वोट बैंक के रूप में प्रयोग करते आ रहे हैं ग्रामीण जनता भी अज्ञानता और अशिक्षा और गरीबी के कारण प्रयोग होती है तभी तो आजादी के 75 वर्ष बाद भी आज देश के चिकित्सा सुविधाओं से महरूम है और अफसोस होता है साथ ही दुख भी
[2/15, 10:56] Dr.J.k Pandey: देश के उन जनप्रतिनिधियों पर जिन्हें विशेष का देश की ग्रामीण जनता प्रत्येक 5 वर्ष बाद चुनती है चुनाव जीत आती है संसद में पहुंचा देती है और वे जनता के प्रतिनिधि जनता का भला करने के स्थान पर अपना भला करके अगले 5 वर्ष तक जमे रहने की जुगत लगाते रहते हैं उनको जनता की समस्याओं उनकी भावनाओं उनके स्वास्थ्य शिक्षा चिकित्सा आज से कोई वास्ता नहीं है जो वह केवल स्वयं का भला करके अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए आयोजित कर रख कर जाते हैं यही कारण है कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी आज देश की जनता चिकित्सा सुविधाओं की बाट जोह रही है और देश के नीति का राष्ट्रीय स्तर की चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं देश की जनता का क्या है सरकार द्वारा किए जा रहे हैं काफी है इस देश की जनता को संतुष्ट करने के लिए समय नहीं आया जब इस देश की जनता स्वयं उठकर अपने अधिकारों की मांग करेगी और वह मांग करेगी उस भेदभाव को मिटाने का जो चिकित्सा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं में शहरी व ग्रामीण जनता के बीच पनप गया है जिसके लिए उत्तरदाई है भारतीय राजव्यवस्था जो अपनी जनता के लिए बाद भी चिकित्सा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में नाकाम रही है केवल 25% शहरी जनता के बल पर देश के विकास की कल्पना करना मूर्खता पूर्ण है
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