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एनीमिया की होम्योपैथिक दवा और इलाज -

 एनीमिया की होम्योपैथिक दवा और इलाज - एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें खून में लाल रक्‍त कोशिकाओं (आरबीसी) की कमी हो जाती है। इस वजह से शरीर की ऑक्‍सीजन की जरूरत पूरी नहीं हो पाती है। गंभीर रूप से रक्‍त की हानि या कमी या आरबीसी के खत्‍म होने पर एनीमिया हो सकता है। निम्‍न स्थितियों के कारण एनीमिया हो सकता है : प्रेगनेंसी और स्‍तनपान आयरन की कमी फोलिक एसिड या विटामिन बी12 की कमी पीरियड्स में ज्‍यादा खून आना पाचन मार्ग में अल्‍सर और लंबे समय से सूजन थैलासीमिया सिकल सेल एनीमिया (अनुवांशिक एनीमिया) अनुवांशिक विकार जैसे कि अप्लास्टिक एनीमिया बोन मैरो से जुड़े विकार जैसे कि ल्‍यूकेमिया संक्रमण जैसे कि मलेरिया और डेंगू आंतों का कैंसर एनीमिया के सामान्‍य लक्षणों में थकान, कमजोरी, पीली त्‍वचा, भूख में कमी, दिल की धड़कन अनियमित होना, बार-बार सिरदर्द होना, ध्‍यान लगाने में दिक्‍कत, परेशान रहना, सांस लेने में दिक्‍कत, जीभ फटना और बैठने या लेटने से उठने पर अचानक ब्‍लड प्रेशर गिरना शामिल हैं। इन लक्षणों को नियंत्रित करने और एनीमिया के इलाज में जो होम्‍योपैथिक दवाएं मदद कर सकती हैं, उनका नाम है - पल्सेट

कान में दर्द की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Ear pain

 कान में दर्द की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Ear pain homeopathic medicine and treatm  कान में दर्द की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Ear pain homeopathic medicine and treatment in Hind कान में दर्द को ओटाल्जिया भी कहा जाता है। बता दें, यह एक सामान्य लक्षण है, जो कि कई संभावित कारणों की वजह से हो सकता है। कान के अंदर या बाहरी हिस्से में दर्द होने से अक्सर सुनने में दिक्कत हो सकती है। हालांकि, जब कान के अंदर किसी समस्या की वजह से दर्द होता है और टेस्ट में इसका कारण पता चल जाता है तो इसे प्राइमरी ओटाल्जिया कहते हैं, लेकिन जब इसके विपरीत होता है यानी कान के अंदर बिना किसी समस्या के दर्द होता है तो इसे सेकंडरी ओटाल्जिया कहते हैं। प्राइमरी ओटाल्जिया के सबसे सामान्य कारणों में ओटाइटिस मीडिया (इयरड्रम के पीछे हवा से भरे स्थान में संक्रमण), ओटाइटिस एक्सटर्ना (बाहरी कान और इयरड्रम के बीच की नलिका की सूजन), कीट की तरह कान में कोई बाहरी हानिकारक चीजें होना और बेरोट्रॉमा (पर्यावरणीय दबाव में बदलाव होने की वजह से चोट आना, अक्सर यह दबाव फ्लाइट उड़ने के दौरान या स्कूबा डाइविंग के दौरान होता है) शामिल है। से

टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है ?

टेस्ट ट्यूब बेबी क्या है ? कभी-कभी ऐसा भी होता है कि पुरुष का शुक्राणु महिला के शरीर में भ्रूण का निर्माण करने के लिए पूरी तरह से ऊपजाउ (fertile) नहीं होता है इस स्थिति में बच्चा पैदा करने के लिए एक कृत्रिम विधि का सहारा लिया जाता है जिसे टेस्ट ट्यूब बेबी कहते हैं। ज्यादातर मामलों में पुरुष का शुक्राणु महिला के अंडे के साथ निषेचित होने से लिए पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं होता है। बच्चे को जन्म देने के लिए शुक्राणु का मजबूत होना जरूरी होता है लेकिन जब यह नहीं होता है तो दुनिया में कई दंपति आजीवन बिना बच्चे के ही रह जाते हैं। शुक्राणु कमजोर होने की हालत में बच्चे के जन्म से वंचित रहने की समस्या को दूर करने के लिए वर्ष 1978 में बच्चा पैदा करने की टेस्ट ट्यूब बेबी विधि की खोज की गई। यह विधि अब तक कायमाब रही है और दुनियाभर में इस विधि से लोग बच्चा पैदा करते हैं। टेस्ट ट्यूब बेबी की प्रक्रिया – Test tube baby टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक से बच्चा पैदा करने के लिए इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (in vitro fertilization) का प्रयोग किया जाता है। आईवीएफ बच्चा पैदा करने की एक कृत्रिम चिकित्सा विधि है जो टेस्ट ट्य

मोटापे की होम्योपैथिक दवा

 मोटापे की होम्योपैथिक दवा  विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने शरीर के ऊतकों में असामान्य रूप से वसा इकट्ठा होने की स्थिति को अधिक वजन और मोटापे के रूप में परिभाषित किया है। यह दोनों ही स्थितियां स्वास्थ्य को खराब कर सकती हैं। इसे बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) की मदद से मापा जाता है। बीएमआई शरीर की ऊंचाई और वजन के आधार पर शरीर में अनुमानित फैट होता है। बीएमआई यह निर्धारित करने में मदद करता है कि व्यक्ति का वजन सही है या नहीं। ऐसे लोग जिनका BMI 25 से अधिक या इसके बराबर है, उन्हें अधिक वजन की श्रेणी में गिना जाता है और जिनका BMI 30 या इसके बराबर है वे मोटापे की श्रेणी में आते हैं। अधिक वजन का मुख्य कारण कैलोरी की खपत और इसके उपयोग के बीच असंतुलन है। यदि कोई व्यक्ति अपने शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी का सेवन कर रहा है, तो वह धीरे-धीरे मोटापे की चपेट में आ रहा है। अधिक वजन और मोटापे से जूझ रहे लोगों को मस्कुलोस्केलेटल और कुछ कैंसर जैसे एंडोमेट्रियल, स्तन, डिम्बग्रंथि, प्रोस्टेट, लिवर, पित्ताशय की थैली, किडनी और कोलन होने का खतरा अधिक होता है। मस्कुलोस्केलेटल विकार ऐसी स्थितियों को कहते है

फिमोसिस या फाइमोसिस क्या है?

 फिमोसिस या फाइमोसिस क्या है? फिमोसिस या फाइमोसिस एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें लिंग की त्वचा की ऊपरी चमड़ी जिसे फोरस्किन (Foreskin) कहा जाता है, अत्यधिक टाइट हो जाती है और शिश्नमुंड (लिंग का आगे वाला हिस्सा जिसे अंग्रेजी में Glans कहा जाता है) से पीछे नहीं हट पाती। ज्यादातर बच्चे व शिशु जिनका खतना (Circumcision) नहीं किया गया होता है उनको आगे जाकर फिमोसिस की समस्या हो जाती है, मतलब आगे जाकर उनके लिंग की ऊपरी चमड़ी पूरी तरह से या बिलकुल ही पीछे नहीं हट पाती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शिश्नमुंड और ऊपरी चमड़ी शिशु के पहले कुछ सालों तक आपस में जुड़ी होती है। चमड़ी पीछे ना हट पाने के कारण उसके नीचे के क्षेत्र की ठीक से सफाई नहीं हो पाती और खराब स्वच्छता के कारण वहां पर बार-बार संक्रमण होने होने लगता है। शिश्नमुंड में बार-बार संक्रमण होने से स्कारिंग (गहरे निशान पड़ना) होने लगती है और जिसके परिणाम से अंत में फिमोसिस रोग विकसित हो जाता है। जिन लोगों को फिमोसिस है उनमें लिंग में संक्रमण के संकेत महसूस होते ही उनको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए, संक्रमण के संकेत व लक्षणों में लिंग की ऊपरी चमड़ी म

कलर ब्लाइंडनेस (वर्णान्धता) -

 कलर ब्लाइंडनेस (वर्णान्धता) -  कलर ब्लाइंडनेस एक ऐसी स्थिति है जिसमें कुछ रंगों में अंतर करने की क्षमता सामान्य से काम हो जाती है। इसका अर्थ है कि कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित व्यक्ति को लाल, हरे, नीले या इनका मिश्रण देखने में परेशानी होती है। ऐसा बहुत कम होता है कि किसी व्यक्ति की रंग देखने की क्षमता ही चली जाए (इसे कहते मोनोक्रोमसी हैं)। बहुत से लोग यह हैं कि कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित व्यक्ति को केवल काले और सफेद रंग ही दिखते हैं। यह एक गलत धारणा है। कलर ब्लाइंडनेस के कई अलग-अलग प्रकार और स्तर हैं। भारत में कलर ब्लाइंडनेस का प्रचलन पुरुषों में 8% और महिलाओं में केवल 0.5% है। हम रंग कैसे देखते हैं? मानवीय आँख रेटिना (आंख के अंदर की ओर झिल्ली) को हल्का सा उत्तेजित करके रंग देखती है। रेटिना रॉड और कॉन्स कोशिकाओं से बनी होती है। रॉड कोशिकाएं (Rod Cells) - रॉड कोशिकाएं रेटिना के घेरे में स्थित होती हैं। यह हमें रात को देखने में मदद करती हैं, लेकिन यह रंगों में अंतर नहीं कर सकती। कॉन्स कोशिकाएं (Cones Cells) - कॉन्स कोशिकाएं रेटिना के केंद्र में स्थित होती हैं, यह रात में देखने में मदद नहीं करत

अंडकोष में सूजन

 ओरकाइटिस का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Orchitis In Hindi ] ओरकाइटिस का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Orchitis In Hindi  टेस्टिस (Testis) में कीटाणु और जीवाणु के कारण जो प्रभाव पड़ता है, जिससे वहाँ पर सूजन हो जाती है और दर्द होने लगता है, इसी समस्या को मेडिकल की भाषा में Orchitis कहा जाता है। Orchitis की समस्या में दोनों Testis भी प्रभावित हो सकते है और एक Testis भी। Orchitis ( ओरकाइटिस ) के कारण Orchitis कई वायरस के कारण होते हैं, सबसे अधिक Mumps Virus के कारण Orchitis होता है, अगर Testis में खून का संचार कम या बंद हो जाये तो भी यह समस्या हो जाती है, यदि आपको हर्निया की समस्या है तो भी आपको Orchitis हो जाता है। Orchitis ( ओरकाइटिस ) के लक्षण अंडकोष में सूजन हो जाएगी, वह थोड़ा सूज जायेगा और उस कारण उसमे बहुत दर्द भी होगा। दर्द के कारण चलने, बैठने और लेटने में भी समस्या होगी। सूजन के साथ यदि आप उस स्थान पर छुएंगे तो वहाँ गर्म भी महसूस होगा। पेशाब में आपको हल्का खून भी आ सकता है, और बुखार भी हो सकता है। Orchitis में बुखार, सिर दर्द, बदन दर्द भी हो सकता है। य