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मोटापे की होम्योपैथिक दवा

 मोटापे की होम्योपैथिक दवा  विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने शरीर के ऊतकों में असामान्य रूप से वसा इकट्ठा होने की स्थिति को अधिक वजन और मोटापे के रूप में परिभाषित किया है। यह दोनों ही स्थितियां स्वास्थ्य को खराब कर सकती हैं। इसे बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) की मदद से मापा जाता है। बीएमआई शरीर की ऊंचाई और वजन के आधार पर शरीर में अनुमानित फैट होता है। बीएमआई यह निर्धारित करने में मदद करता है कि व्यक्ति का वजन सही है या नहीं। ऐसे लोग जिनका BMI 25 से अधिक या इसके बराबर है, उन्हें अधिक वजन की श्रेणी में गिना जाता है और जिनका BMI 30 या इसके बराबर है वे मोटापे की श्रेणी में आते हैं। अधिक वजन का मुख्य कारण कैलोरी की खपत और इसके उपयोग के बीच असंतुलन है। यदि कोई व्यक्ति अपने शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी का सेवन कर रहा है, तो वह धीरे-धीरे मोटापे की चपेट में आ रहा है। अधिक वजन और मोटापे से जूझ रहे लोगों को मस्कुलोस्केलेटल और कुछ कैंसर जैसे एंडोमेट्रियल, स्तन, डिम्बग्रंथि, प्रोस्टेट, लिवर, पित्ताशय की थैली, किडनी और कोलन होने का खतरा अधिक होता है। मस्कुलोस्केलेटल विकार ऐसी स्थितियों को कहते है

फिमोसिस या फाइमोसिस क्या है?

 फिमोसिस या फाइमोसिस क्या है? फिमोसिस या फाइमोसिस एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें लिंग की त्वचा की ऊपरी चमड़ी जिसे फोरस्किन (Foreskin) कहा जाता है, अत्यधिक टाइट हो जाती है और शिश्नमुंड (लिंग का आगे वाला हिस्सा जिसे अंग्रेजी में Glans कहा जाता है) से पीछे नहीं हट पाती। ज्यादातर बच्चे व शिशु जिनका खतना (Circumcision) नहीं किया गया होता है उनको आगे जाकर फिमोसिस की समस्या हो जाती है, मतलब आगे जाकर उनके लिंग की ऊपरी चमड़ी पूरी तरह से या बिलकुल ही पीछे नहीं हट पाती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शिश्नमुंड और ऊपरी चमड़ी शिशु के पहले कुछ सालों तक आपस में जुड़ी होती है। चमड़ी पीछे ना हट पाने के कारण उसके नीचे के क्षेत्र की ठीक से सफाई नहीं हो पाती और खराब स्वच्छता के कारण वहां पर बार-बार संक्रमण होने होने लगता है। शिश्नमुंड में बार-बार संक्रमण होने से स्कारिंग (गहरे निशान पड़ना) होने लगती है और जिसके परिणाम से अंत में फिमोसिस रोग विकसित हो जाता है। जिन लोगों को फिमोसिस है उनमें लिंग में संक्रमण के संकेत महसूस होते ही उनको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए, संक्रमण के संकेत व लक्षणों में लिंग की ऊपरी चमड़ी म

कलर ब्लाइंडनेस (वर्णान्धता) -

 कलर ब्लाइंडनेस (वर्णान्धता) -  कलर ब्लाइंडनेस एक ऐसी स्थिति है जिसमें कुछ रंगों में अंतर करने की क्षमता सामान्य से काम हो जाती है। इसका अर्थ है कि कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित व्यक्ति को लाल, हरे, नीले या इनका मिश्रण देखने में परेशानी होती है। ऐसा बहुत कम होता है कि किसी व्यक्ति की रंग देखने की क्षमता ही चली जाए (इसे कहते मोनोक्रोमसी हैं)। बहुत से लोग यह हैं कि कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित व्यक्ति को केवल काले और सफेद रंग ही दिखते हैं। यह एक गलत धारणा है। कलर ब्लाइंडनेस के कई अलग-अलग प्रकार और स्तर हैं। भारत में कलर ब्लाइंडनेस का प्रचलन पुरुषों में 8% और महिलाओं में केवल 0.5% है। हम रंग कैसे देखते हैं? मानवीय आँख रेटिना (आंख के अंदर की ओर झिल्ली) को हल्का सा उत्तेजित करके रंग देखती है। रेटिना रॉड और कॉन्स कोशिकाओं से बनी होती है। रॉड कोशिकाएं (Rod Cells) - रॉड कोशिकाएं रेटिना के घेरे में स्थित होती हैं। यह हमें रात को देखने में मदद करती हैं, लेकिन यह रंगों में अंतर नहीं कर सकती। कॉन्स कोशिकाएं (Cones Cells) - कॉन्स कोशिकाएं रेटिना के केंद्र में स्थित होती हैं, यह रात में देखने में मदद नहीं करत

अंडकोष में सूजन

 ओरकाइटिस का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Orchitis In Hindi ] ओरकाइटिस का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Orchitis In Hindi  टेस्टिस (Testis) में कीटाणु और जीवाणु के कारण जो प्रभाव पड़ता है, जिससे वहाँ पर सूजन हो जाती है और दर्द होने लगता है, इसी समस्या को मेडिकल की भाषा में Orchitis कहा जाता है। Orchitis की समस्या में दोनों Testis भी प्रभावित हो सकते है और एक Testis भी। Orchitis ( ओरकाइटिस ) के कारण Orchitis कई वायरस के कारण होते हैं, सबसे अधिक Mumps Virus के कारण Orchitis होता है, अगर Testis में खून का संचार कम या बंद हो जाये तो भी यह समस्या हो जाती है, यदि आपको हर्निया की समस्या है तो भी आपको Orchitis हो जाता है। Orchitis ( ओरकाइटिस ) के लक्षण अंडकोष में सूजन हो जाएगी, वह थोड़ा सूज जायेगा और उस कारण उसमे बहुत दर्द भी होगा। दर्द के कारण चलने, बैठने और लेटने में भी समस्या होगी। सूजन के साथ यदि आप उस स्थान पर छुएंगे तो वहाँ गर्म भी महसूस होगा। पेशाब में आपको हल्का खून भी आ सकता है, और बुखार भी हो सकता है। Orchitis में बुखार, सिर दर्द, बदन दर्द भी हो सकता है। य

Nasal Polyps Homeopathic Treatment in Hindi

 इन होम्योपैथिक दवाओं से करें नासल पॉलीप्स का इलाज | Nasal Polyps Homeopathic Treatment in Hindi Nasal Polyps Homeopathic Treatment in Hindi - जब किसी की नाक के श्वाश मार्ग अंदरूनी भाग में मांस बढ़ जाता ही तो यह स्थिति नासल पॉलीप्स(Nasal Polyps) हो सकती है। नाक का मांस बढ़ना / नासल पॉलीप्स (Nasal Polyps) में उपयोग होने वाली Top होम्योपैथिक दवाएं 1. Lemna Minor 2. Teucrium Marum 3. Sanguinaria Nitricum 4. Thuja Occidentalis 5 . Phosphorus 2 min read   इन होम्योपैथिक दवाओं से करें नासल पॉलीप्स का इलाज / Nasal Polyps Homeopathic Treatment in Hindi नाक का मांस बढ़ना / नासल पॉलीप्स (Nasal Polyps) क्या  है?  जब किसी की नाक के श्वाश मार्ग अंदरूनी भाग में मांस बढ़ जाता ही तो यह स्थिति नासल पॉलीप्स(Nasal Polyps) हो सकती है।  नाक के अंदर यह एक कैंसर रहित (Non Cancerous)और बिना दर्द (Painless) का मॉस होता है । यह एक मस्से की तरह की  अंगूर की शक्ल की ग्रोथ होती है जो की ऊपर से नहीं दीखता है जैसी आप नाक के अंदर झांक कर अथवा दूरबीन से देख सकता हैं . यह नाक के अंदर  नाक के श्वाश मार्ग अथवा साइनस में भ

साइनस की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment for Sinusitis in Hindi

 साइनस की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment for Sinusitis in Hindi साइनस की होम्योपैथिक दवा और इलाज - Homeopathic medicine and treatment for Sinusitis in Hindi साइनस हवा से भरी गुहाएं होती हैं जो गाल की हड्डी, आंखों और नाक के आसपास मौजूद होती हैं। इन गुहाओं में बलगम होता है, जो सांस लेने वाली हवा को गर्म करने और छानने में मदद करता है। हालांकि, इन गुहाओं में मौजूद ब्लॉकेज स्वाभाविक रूप से बलगम के निकास को रोकती है और इससे आसपास के ऊतकों में सूजन हो सकती है। इस स्थिति को साइनसाइटिस के रूप में जाना जाता है। साइनसाइटिस एक्यूट (अचानक या तेज प्रभावित करने वाली स्थिति) या क्रोनिक (धीरे-धीरे या लंबे समय से प्रभावित करने वाली स्थिति) हो सकती है। एक्यूट साइनसाइटिस के लक्षण चार सप्ताह से कम समय तक रहते हैं और अक्सर 10 दिनों के भीतर दूर हो सकते हैं। दूसरी ओर, क्रोनिक साइनसाइटिस (जिसे क्रोनिक राइनोसाइनिटिस भी कहा जाता है) में, चिकित्सा हस्तक्षेप के बाद भी लक्षण 12 सप्ताह से अधिक समय तक बने रह सकते हैं। एक्यूट साइनसाइटिस अक्सर वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन का परिणाम हो सकता

हकलाने का होम्योपैथिक ट्रीटमेंट

 Homeopathic Medicine And Treatment In Hindi Stammering | हकलाने का होम्योपैथिक ट्रीटमेंट रुक-रुक के बोलने का इलाज | बच्चों के बोलने की होम्योपैथिक दवा | हकलाने का क्या कारण है Stammering | हकलाने का होम्योपैथिक ट्रीटमेंट अक्सर हकलाहट की समस्या 2 से 7 वर्ष की उम्र के बीच में शुरू होता है और लड़कों में लड़कियों की अपेक्षा यह समस्या अधिक पाई जाती है, लगभग 4 गुणा ज्यादा। रोगी को दवा और निरंतर अभ्यास से इस समस्या से निजाद दिलाया जा सकता है। मैं यहाँ कुछ मुख्य होम्योपैथिक दवा की चर्चा करूँगा कि कौन सी दवा से हकलाहट की समस्या पूरी तरह से ठीक हो जाती है। Bovista 30 – यह दवा विशेष रूप से बच्चों और अधिक उम्र की कुंवारी स्त्री के हकलाहट में अच्छा काम करती है। ऐसे में इस दवा की 2 बून्द दिन में 3 बार लेना है। Bufo rana 30 – अगर अधिक गुस्सा आने के समय हकलाहट की समस्या होती है तो आपको बूफो राना का सेवन करना है। 2 बून्द दिन में 3 बार लेना है। Cuprum Met 30 – इसमें हकलाहट तो रहती है साथ में एक विशेष लक्षण है कि रोगी का जीभ सांप के जीभ की तरह अंदर-बाहर हुआ करती है। ऐसे लक्षण पर Cuprum Met 30 का सेवन करान